Book Title: Vruttabodh
Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha
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(प्रति०) परतः= अनन्तरम् । दशमान्तिमम्= एकादशम् । अन्त्ययुग्मम्= त्रयोदशचतुर्दशे । स्फुटमन्यत् ॥
(भाषा) तगण भगण जगण जगण और दो गुरुओं से युक्त होने के कारण जिस के प्रत्येक चरण में आठवें और छठे. अक्षर पर विश्राम हो तथा मादि के दो और चौथा आठवा ग्यारहवा एवम् अन्तिम दो अक्षर गुरु हों वह वसन्ततिलका छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में स्वान्यास (SSISHISISIS इस प्रकार जानना चाहिये ॥ ३३ ॥ .
मालिनी प्रतिवरणमुदीर्यं षट्कमाद्य लघु स्या,
दपिच दशममेवं द्वादशान्यं च यस्याः। वसुभिस्थ तुम लब्धविश्रामयोगा,
न-न-म-यय-युनासा मालिनी सुप्रसिद्धा॥ (मन्वया)यस्याः प्रतिवरणम् श्राई षट्कम् अपि च दशमम् एवं द्वादशान्त्यं च लघु उदीय स्यान, वसभिः अथ तुर. लब्धविश्रामयोगान-न-म-य-य-गुता सामालिनी सुप्रसिद्धा ॥
(टीका) यस्याः प्रतिचरणमादितः षटकं किञ्च दशममेवं द्वादशान्त्यमर्थात् त्रयोदशं चाक्षर लघु उदार्थ स्यात्, आदितोऽष्टाभिस्तदने सप्तभिश्वाक्षरविश्रान्तिमती नगण-नगण-मगण-वाण यगणैर्युक्ता सा मालिनी ख्याता । अत्र प्रतिचरणम् (155. SSSISS) इत्येवमवगन्तव्यो न्यासः ।।
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