Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
कारण के बिना केवल एक ध्रौव्यरूप वस्तु में उत्पाद नहीं होता है । इसी माफिक सर्वदा भी उत्पाद का प्रभाव ही है ।
[ ५/३०
अध्रुव से
इसलिए वस्तु-पदार्थ को उत्पाद, व्यय, ध्रुवशील माने बिना उसका पर्यायबोध नहीं कर सकते हैं, यही सत् का लक्षण है । अन्यथा असत् रूप है ।
अब यहाँ पर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि उपर्युक्त सूत्र द्वारा माना हुआ सत् नित्य है या अनित्य है ।
इसके उत्तर के लिए ही यह सूत्र है, ऐसा ही जानना ।
वस्तु स्थिर रहती है, इसलिए नित्य है तथा वस्तु उत्पन्न होती है और विनाश पामती है, इसलिए अनित्य है । यह एक ही वस्तु नित्य भी है और अनित्य भी है। यह कथन स्थूल दृष्टि से विचारते हुए निश्चय नहीं होता है, इसलिए विशेष स्पष्ट करने की आवश्यकता होने से अब नित्यता व्याख्या आगे के सूत्र में सूत्रकार करते हैं ।। ५-२६ ।।
* नित्यस्य लक्षणः
5 मूलसूत्रम्
तद्भावाव्ययं नित्यम् ।। ५-३० ॥
* सुबोधिका टीका *
"नेवेत्यप् " [ सि. अ. ६ पा. ३ सूत्र - १७ ] स चासौ भावश्च तद् भावस्तस्याव्ययम् । अथवा प्रयो- गमनं, विरुद्धोऽयो व्ययः न व्ययोऽव्ययः । सतो भावात् यो न नष्टः, न च नष्टं भविष्यति नित्यं वा, यत् सतो भावान्न व्येति न व्येष्यति तन्नित्यम्
।। ५-३० ।।
* सूत्रार्थ - जो सत् के भाव से नष्ट नहीं हुआ है और न होगा, उसको 'नित्य' कहते हैं । अर्थात् जो अपने स्वभाव ( सत्) से च्युत नहीं, वह नित्य है ।। ५-३० ।। 5 विवेचनामृत फ
जो वस्तु उसके अपने भाव से अव्यय रहे, अर्थात् अपने भाव से रहित न बने, वह 'नित्य' है ।
पूर्व सूत्र में यह कह आये हैं कि वस्तु उत्पाद, व्यय और धौव्यात्मक है । अर्थात् स्थिर तथा अस्थिर उभयरूप है । किन्तु यहाँ पर शंका होती है कि जो वस्तु स्थिर है वह अस्थिर कैसे हो सकती है ? और जो वस्तु प्रस्थिर है वह भी स्थिर कैसे हो सकती है ? क्योंकि एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी भाव कैसे रह सकता है । जैसे- शीत और उष्ण दोनों विरोधी भाव एक वस्तु में एक समय हो ही नहीं सकता । इस विरोधी भाव का परिहार करना ही इस सूत्र का उद्देश्य है । 'जो वस्तु अपने भाव से रहित न बने, वह नित्य है ।'