Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् जो सासयं जाण असासयं च,
जाइं च मरणं च जणोक्वायं ॥२०॥ 'छाया-आत्मानं यो जानाति य श्च कोकं, गतिं च यो जानात्यनागतिं च
या शाश्वतं जानात्यशाश्वतं च, जातिं च मरणं च जनोपपातम् ॥२०॥ • अन्वयार्थ:-(जो) यः कश्चित् (अत्ताण) आत्मानम् (जाणइ) जानाति तथा (जो य लोग) यश्च लोकम्-पञ्चास्तिकायात्मकम् च शब्दाद् अलोकम्-अनन्ता'अत्ताण जो जाणइ जोयलोग' इत्यादि ।
शाब्दार्थ- 'जो-य:' जो कोई 'अत्ताण-आस्मानं' आत्माको 'जाणा-जानाति जानता है तथा 'जो-या-जो कोई 'लोग-लोकम्' पंचास्तिकायात्मक लोक एवं अलोक को जानता है तथा 'जो-य: जो कोई 'गई-गर्ति' परलोक गननरूप गति को 'च-च' और 'णागई ध-अनागर्ति च' अनागतिको 'जाणइ-जानाति' जानता है तथा 'जोया जो 'सासर्य-शाश्वतम्' सर्व वस्तुसमूह को द्रव्यार्थिक नय से नित्य 'च-च' तथा 'असासयं-अशाश्वतम्' पर्यायार्थिक नय से अशाश्वत-अनित्य 'जाण-जानाति' जानते हैं, तथा 'जाई-जाति' जीवों की त्पत्ति को 'च-च' तथा 'मरणं-मरणम्' जीवों के मरणगति को 'च' और 'जणोक्वायं-जनोपपातम्' प्राणियों के अनेक गतियों में जाना जानता है ॥२०॥ ___ अन्वयार्थ जो पुरुष आत्मा को जानता है, जो लोक को जानता
'अत्ताण जो जाणइ जो य लोग” त्यात
शाय-जो-यः' ने 'अत्ताण-आत्मानम्' आत्माने 'जाणईजानाति' त छ. तथा जो-च.' 'लोग-लोकम्' ५ यास्तिया alk तथा भ ने छ. तथा 'जो-यः' ने 'गई-गतिम्' परसा। समान ३५ गतिन 'च-च' भने 'णागइ च-अनागतिच' मनातिने 'जाणइजानाति' तो छ तथा 'जो-यः' रे 'सासय-शाश्वतम्' सर्व पतु समझने द्रव्याथिनयथा नित्य 'च-च' मन 'असासय-अशाश्वतम' पर्यायाथि नयथा भशाक्त-भनित्य 'जाण-जानाति' nी छे तथा 'जाई-जातिम्' वानी उत्पत्तिने, 'च-च' तथा 'मरण-मरणम्' वानी भर गतिने 'च-च' भने 'मणोववाय-जनोपपातम्' प्राणियोनी भने गतियामा पानु छ ॥२०॥