Book Title: Sutra Vyakhayan Vidhi Shatakam
Author(s): Dharmsagar Gani, Labhsagar
Publisher: Mithabhai Kalyanchand Pedhi

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ नमो जिनाय आगमोद्धारक-आचार्य-श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः । महोपाध्यायश्रीधर्मसागरगणिप्रवरप्रणीतं स्वोपज्ञवृत्तिविभूषितं व्याख्यानविधिशतकम्। ॥ श्री गुरुभ्यो नमः ।। इह हि तावत् जैनप्रवचनमात्रस्य व्याख्यानविधेर्दिशं दर्शयितं सूत्रव्याख्यानविधिशतकाभिधानस्य प्रकरणस्य निर्विघ्नपरिसमाप्त्यर्थ मंगलं, श्रोतुः प्रवृत्त्यर्थ चाभिधेयं दिदर्शयिषः प्रथमगाथामाह-- णमिऊण महावीरं, जिणवयणं अत्थवायगं गहिउँ । सुत्तरयणाइ रइयं, जह णायं तह पवक्खामि ॥ १ ॥ व्याख्या--महावीर-श्रीमहावीरनामानं तीर्थकरं, नत्वाप्रणम्य, जिनवचनं-तीर्थकृभाषितं, अर्थवाचकं -जीवाजीवादिपदार्थवाचकं शब्दसमूह, गृहीत्वा-आदाय तीर्थकृन्मुखान्निशम्य, सूत्ररचनया-गद्यपद्यबन्धुररचनया ( रचितं ) निबद्धं सत् यथा ज्ञातं-गुरुपारम्पर्यागतेनाऽऽगमेनावगतं तथा वक्ष्यामीति । अत्र प्रथमपादेन मंगलमुत्तरपादत्रिकेण चाभिधेयं दर्शितमिति गाथार्थः ॥ १ ॥ अथ यथा ज्ञातं तथाऽऽगमोक्तामेव गाथामाह-- अत्थं भालइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं । सासणस्स हिअट्ठाए, तो सुत्तं पवत्तइ ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only

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