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. अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त परापुराण
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वह महानदी पुष्करमें पहुंची और ब्रह्माजीने जिन-जिन रहकर श्रेष्ठ फलका उपभोग करता है। इसलिये पुरुषको कुण्डोंमें हवन किया था, उन सबको जलसे आप्लावित उचित है कि वह पूरा प्रयत्न करके पुष्कर तीर्थकी करके प्रकट हुई। इस प्रकार पुष्कर क्षेत्रमें परम पवित्र प्राप्तिके लिये-वहाँकी यात्रा करनेके लिये अपना सरस्वती नदीका प्रादुर्भाव हुआ। जगत्को जीवनदान विचार स्थिर करे। मति, स्मृति, प्रज्ञा, मेधा, बुद्धि और देनेवाली वायुने भी उसका जल लेकर वहाँके सब शुभ वाणी-ये छः सरस्वतीके पर्याय बतलाये गये हैं। तीर्थोंमें डाल दिया। उस पुण्यक्षेत्रमें पहुँचकर जो पुष्करके वनमें, जहाँ प्राची सरस्वती है, जाकर उसके पुण्यसलिला सरस्वती मनुष्योंके पापोंका नाश करनेके जलका दर्शन भर कर लेते हैं, उन्हें भी अश्वमेध यज्ञका लिये स्थित हो गयी। जो पुण्यात्मा मनुष्य पुष्कर तीर्थमें फल मिलता है तथा जो उसके भीतर गोता लगाकर विद्यमान सरस्वतीका दर्शन करते हैं, वे नारकी जीवोंकी स्नान करता है, वह तो ब्रह्माजीका अनुचर होता है। जो अधोगतिका अनुभव नहीं करते। जो मनुष्य उसमें मनुष्य वहाँ विधिपूर्वक श्राद्ध करते हैं, वे पितरोंको भक्ति-भावके साथ स्रान करते हैं, वे ब्रह्मलोकमें दुःखदायी नरकसे निकालकर स्वर्गमे पहुँचा देते हैं। जो पहुँचकर ब्रह्माजीके साथ आनन्दका अनुभव करते हैं। सरस्वतीमें स्नान करके पितरोंको कुश और तिलसे युक्त जो मनुष्य ज्येष्ठ पुष्करमें स्नान करके पितरोंका तर्पण जल दान करते हैं, उनके पितर हर्षित हो नाचने लगते करता है, वह उन सबका नरकसे उद्धार कर देता है तथा है। यह पुष्कर तीर्थ सब तीर्थोंसे श्रेष्ठ माना गया है; स्वयं उसका भी चित्त शुद्ध हो जाता है। ब्रह्माजीके क्षेत्रमें क्योंकि यह आदि तीर्थ है। इसीलिये इस पृथ्वीपर यह पुण्यसलिला सरस्वतीको पाकर मनुष्य दूसरे किस समस्त तीर्थोंमें विख्यात है। यह मानो धर्म और मोक्षकी तीर्थकी कामना करे-उससे बढ़कर दूसरा तीर्थ है ही क्रीडास्थली है, निधि है। सरस्वतीसे युक्त होनेके कारण कौन ? सम्पूर्ण तीर्थोमें स्नान करनेसे जो फल प्राप्त होता इसकी महिमा और भी बढ़ गयी है। जो लोग पुष्कर है, वह सब-का-सब ज्येष्ठ पुष्करमें एक बार डुबकी तीर्थमें सरस्वती नदीका जल पीते हैं वे ब्रह्मा और लगानेसे मिल जाता है। अधिक क्या कहा जाय- महादेवजीके द्वारा प्रशंसित अक्षय लोकोंको प्राप्त होते जिसने पुष्कर क्षेत्रका निवास, ज्येष्ठ कुण्डका जल तथा हैं। धर्मके तत्त्वको जाननेवाले मुनियोंने जहाँ-जहाँ उस तीर्थमें मृत्यु-ये तीन बातें प्राप्त कर ली, उसने सरस्वतीदेवीका सेवन किया है, उन सभी स्थानोंमें वे परमगति पा ली। जो मनुष्य उत्तम काल, उत्तम क्षेत्र परम पवित्ररूपसे स्थित हैं; किन्तु पुष्करमें वे अन्य तथा उत्तम तीर्थमें स्रान और होम करके ब्राह्मणको दान स्थलोंकी अपेक्षा विशेष पवित्र मानी गयी हैं। पुण्यमयी देता है, वह अक्षय सुखका भागी होता है। कार्तिक और सरस्वती नदी संसारमें सुलभ है; किन्तु कुरुक्षेत्र, वैशाखके शुभ पक्षमें तथा चन्द्रमा और सूर्यके ग्रहणके प्रभासक्षेत्र और पुष्करक्षेत्रमें तो वह बड़े भाग्यसे समय स्रान करनेयोग्य कुरुजाङ्गलदेशमें जितने क्षेत्र और प्राप्त होती है। अतः वहाँ इसका दर्शन दुर्लभ बताया तीर्थ मुनीश्वरोंद्वारा बताये गये हैं, उन सबमें यह पुष्कर गया है। सरस्वती तीर्थ इस भूतलके समस्त तीथों में तीर्थ अधिक पवित्र है-ऐसा ब्रह्माजीने कहा है। श्रेष्ठ होनेके साथ ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन
जो पुरुष कार्तिककी पूर्णिमाको मध्यम कुण्ड चारों पुरुषार्थीका साधक है। अतः मनुष्यको चाहिये कि (मध्यम पुष्कर)-में स्रान करके ब्राह्मणको धन देता है, वह ज्येष्ठ, मध्यम तथा कनिष्ठ-तीनों पुष्करोंमें उसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है। इसी प्रकार कनिष्ठ यापूर्वक स्नान करके उनकी प्रदक्षिणा करे। तत्पश्चात् कुण्ड (अन्त्य पुष्कर)-में एकाग्रतापूर्वक स्नान करके जो पवित्र भावसे प्रतिदिन पितामहका दर्शन करे। ब्रह्मब्राह्मणको उत्तम अगहनीका चावल दान करता है, वह लोकमें जानेकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको अनुलोमक्रमसे अग्निलोकमें जाता है तथा वहाँ इक्कीस पीढ़ियोंके साथ अर्थात् क्रमशः ज्येष्ठ, मध्यम एवं कनिष्ठ पुष्करमें