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सृष्टिखण्ड]
तीर्थमहिमाके प्रसङ्गमें वामन-अवतारकी कथा .
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उस दिन स्वच्छ वायु बहने लगी। सम्पूर्ण प्राणी बिना भगवान् सब तरहसे देवताओंका कार्य सिद्ध करेंगे।' किसी उपद्रवके अपने-अपने इच्छित पदार्थ प्राप्त करने शुद्ध चित्तवाले देवगण जब इस प्रकार सोच रहे लगे। वृक्षोंसे फूलोंकी वर्षा होने लगी, समस्त दिशाएँ थे, उसी समय भगवान् वामन इन्द्रके साथ बाष्कलिके निर्मल हो गयीं तथा सभी मनुष्य सत्य-परायण हो गये। घर गये। उन्होंने दूरसे ही बाष्कलिकी नगरीको देखा, जो देवी अदितिने एक हजार दिव्य वर्षातक भगवान्को परकोटेसे घिरी थी। सब प्रकारके रत्नोंसे सजे हुए गर्भ धारण किया। इसके बाद वे भूतभावन प्रभु ऊँचे-ऊँचे सफेद महल, जो आकाशचारी प्राणियोंके वामनरूपमें प्रकट हुए । उनके अवतार लेते ही नदियोंका लिये भी अगम्य थे, उस पुरीकी शोभा बढ़ा रहे थे। जल स्वच्छ हो गया। वायु सुगन्ध बिखेरने लगी। उस नगरकी सड़कें बड़ी ही सुन्दर एवं क्रमबद्ध बनायी गयी तेजस्वी पुत्रके प्रकट होनेसे महर्षि कश्यपको भी बड़ा थीं। कोई ऐसा पुष्प नहीं, ऐसी विद्या नहीं, ऐसा शिल्प आनन्द हुआ। तीनों लोकोंमें निवास करनेवाले समस्त नहीं तथा ऐसी कला नहीं, जो बाष्कलिकी नगरीमें मौजूद प्राणियोंके मनमें अपूर्व उत्साह भर गया। भगवान् न रही हो। वहीं रहकर दानवराज बाष्कलि चराचर जनार्दनका प्रादुर्भाव होते ही स्वर्गलोकमें नगारे बज उठे। प्राणियोंसहित समस्त त्रिलोकीका पालन करता था। वह अत्यन्त हर्षोल्लासके कारण त्रिलोकीके मोह और दुःख धर्मका ज्ञाता, कृतज्ञ, सत्यवादी और जितेन्द्रिय था। नष्ट हो गये। गन्धर्वोने अत्यन्त उच्च स्वरसे संगीत आरम्भ सभी प्राणी उससे सुगमतापूर्वक मिल सकते थे। किया। कोई ऊँचे स्वरसे भगवान्की जय-जयकार करने न्याय-अन्यायका निर्णय करनेमें उसकी बुद्धि बड़ी ही लगे, कोई अत्यन्त हर्षमें भरकर जोर-जोरसे गर्जना करते कुशल थी। वह ब्राह्मणोंका भक्त, शरणागतोंका रक्षक हुए बारम्बार भगवान्को साधुवाद देने लगे तथा कुछ तथा दीन और अनाथोपर दया करनेवाला था। मन्त्रलोग जन्म, भय, बुढ़ापा और मृत्युसे छुटकारा पानेके शक्ति, प्रभु-शक्ति और उत्साहशक्ति-इन तीनों लिये उनका ध्यान करने लगे। इस प्रकार यह सम्पूर्ण शक्तियोंसे वह सम्पन्न था। सन्धि, विग्रह, यान, आसन, जगत् सब ओरसे अत्यन्त प्रसन्न हो उठा। द्वैधीभाव और समाश्रय-राजनीतिके इन छ: गुणोंका
देवतालोग मन-ही-मन विचार करने लगे-'ये अवसरके अनुकूल उपयोग करनेमें उसका सदा उत्साह साक्षात् परमात्मा श्रीविष्णु हैं। ब्रह्माजीके अनुरोधसे रहता था। वह सबसे मुसकराकर बात करता था । वेद जगत्की रक्षाके लिये इन जगदीश्वरने यह छोटा-सा और वेदाङ्गोंके तत्त्वका उसे पूर्ण ज्ञान था। वह यज्ञोंका शरीर धारण किया है। ये ही ब्रह्मा, ये ही विष्णु और ये अनुष्ठान करनेवाला, तपस्या-परायण, उदार, सुशील, ही महेश्वर हैं। देवता, यज्ञ और स्वर्ग-सब कुछ ये ही संयमी, प्राणियोंकी हिंसासे विरत, माननीय पुरुषोंको हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। यह सम्पूर्ण चराचर आदर देनेवाला, शुद्धहदय, प्रसन्नमुख, पूजनीय पुरुषोंका जगत् भगवान् श्रीविष्णुसे व्याप्त है। ये एक होते हुए भी पूजन करनेवाला, सम्पूर्ण विषयोंका ज्ञाता, दुर्दमनीय, पृथक् शरीर धारण करके ब्रह्माके नामसे विख्यात हैं। सौभाग्यशाली, देखने में सुन्दर, अत्रका बहुत बड़ा संग्रह जिस प्रकार बहुत-से रंगोवाली वस्तुओका सानिध्य रखनेवाला, बड़ा धनी और बहुत बड़ा दानी था। वह होनेपर स्फटिक मणि विचित्र-सी प्रतीत होने लगती है, धर्म, अर्थ और काम-तीनोंके साधनमें संलग्न रहता वैसे ही मायामय गुणोंके संसर्गसे स्वयम्भू परमात्माकी था। बाष्कलि त्रिलोकीका एक श्रेष्ठ पुरुष था। वह सदा नाना रूपोंमें प्रतीति होती है। जैसे एक ही गार्हपत्य अग्नि अपनी नगरी में ही रहता था। उसमें देवता और दानवोंके दक्षिणाग्नि तथा आहवनीयाग्नि आदि भिन्न-भिन्न भी घमंडको चूर्ण करनेकी शक्ति थी। ऐसे गुणोंसे संज्ञाओंको प्राप्त होती है, उसी प्रकार ये एक ही श्रीविष्णु विभूषित होकर वह त्रिभुवनकी समस्त प्रजाका पालन ब्रह्मा आदि अनेक नाम एवं रूपोंमें उपलब्ध होते हैं। ये करता था। उस दानवराजके राज्यमें कोई भी अधर्म नहीं