________________
तेईसवाँ बोल - ३९
आराधना है । ज्ञान की प्राराधना द्वारा ज्ञानपचमी की आराधना करने मे ही आत्मकल्याण है । ज्ञान आत्मा का प्रकाश है । यह प्रकाश जितना अधिक प्रकाशित करोगे, आत्मा उतना ही अधिक प्रकाशित होगा ।
धर्मदेशना का फल प्रकट करते हुए आगे कहा गया हैजीवे श्रागमिसस्स भद्दत्ताए कम्म निबंवइ ।
अर्थात् - धर्मदेशना देने से जीव को आगामी काल में प्राप्त होने वाला कल्याण प्रप्त होता है । अर्थात् धर्मदेशना से भविष्य मे क्ल्याण होता है ।
ऊपर के पाठ मे ' भद्दत्ता' शब्द आया है । इस भद्दत्ता' के बदले 'भद्द' शब्द ही लिखा गया होता तो क्या हर्ज था ? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए कहा गया है - व्याकरण के नियमानुसार यह भाववाची शब्द है । उसे भाषासौन्दय के लिए भाववाचक प्रत्यय लगा दिया गया है ।
<
आने वाला काल आगामीकाल कहलाता है । और जो श्रागामीकाल है वह वर्तमान मे आता है । आगामीकाल की कभी समाप्ति नही होती इस प्रकार भविष्यकाल आगामीक'ल कहा जाता है । धर्मदेशना देने से आगामीकाल मे आत्मा का कल्याण होता है ।
जैसे काल का अन्त नही है वैसे ही आत्मा का भी अन्त नही है यह बात जानते हुए भी दो दिन टिकने लिए तो प्रयत्न करना और जिसका कभी आत्मा के लिए कुछ भी प्रयत्न न करना
वाली चीज के अन्त नही, उस