Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 230
________________ २२२-सम्यक्त्वपराक्रम (३/ गणसघ की स्थापना की गई थी। जिस समय की यह घटना है उस समय चम्पा नगरी मे कोणिक राजा राज्य करता था । कोणिक राजा श्रेणिक का पुत्र था । कोणिक के बारह भाई थे, जिनमे सब से छोटे भाई का नाम बहिलकुमार था । बहिलकुमार के पास एक कीमती हार और एक हाथी था। यह हार और हाथी उसके पिता ने उसे पुरस्कार दिया था। वहिलकुमार को राज्य में कोई हिस्सा नहीं मिला था। उसने हार और हायी पाकर ही सतोष मान लिया था । बहिलकुमार हाथी पर सवार होकर आनन्दपूर्वक क्रीडा करता था । लोग उसकी प्रशसा करते हुए कहते थे- राज्य के रत्लो का उपभोग तो बहिल कुमार ही करते हैं। कोणिक के लिए तो केवल राज्य का भार ही है । लोगो का यह कथन कोणिक की रानी पद्मा के कानो तक पहुचा । रानी ने विचार किया- किसी भी उपाय से वह हार और हाथी राज्य मे मगवाना चाहिए।' यह सोचकर रानी ने कोणिक से कहा-'नाथ ! राजा आप हैं मगर राज्य के रत्नों का हार और हाथी का-उपभोग बहिलकुमार करता है। तुम्हारे पास तो केवल निस्सार राज्य ही है।" कोणिक ने कहा - स्त्रियों की बुद्धि बहुत ओछी होती है। इसी कारण तू ऐसा कहती है । बहिलकुमार के पाम तो सिर्फ हार और हाथी है, मगर मैं तो सारे राज्य का स्वामी हू । इसके अतिरिक्त बहिलकुमार के पास हार और हाथी है तो कोई गैर के पास थोड़े ही है ! आखिर है तो मेरे भाई के पास ही न ? रानी पद्मा ने सोचा- मेरी यह युक्ति काम नहीं आई।

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