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उनतीसा बोल-११३
रहता है वह सुखशय्या पर शयन करने वाला है। कितने ही लोग कहते हैं कि पहले कषायो का मुडन करना चाहिए और फिर शिरोमु डन करना चाहिए । अगर कषायो का भलीभाति मुडन कर लिया हो तो शिरोमु डन न करने पर भी काम चल सकता है। इस प्रकार कहने वाले लोगो से पूछना चाहिए कि कपाय का मु डन हुआ है अथवा नही, इस बात का निर्णय किस प्रकार हो सकता है ? कषाय का मु डन होना अन्तरग-भाववस्तु है। इसे व्यवहार में किस तरह जान सकते हैं ? अतएव यहा मुड होने का सम्बन्ध शिरोमु डन के साथ ही है
सर्वप्रथम व्यवहार साधा जाता है और उसके बाद निश्चय साधा जाता है । लोग अपने व्यवहार मे तो यह बात भूलते नहीं किन्तु धर्म के काम मे व्यवहार को ताक मे रखकर निश्चय को ही प्रधान पद देते हैं। ऐसा करना एक प्रकार से धर्म को भूल जाना है। छद्मस्थ के लिए तो व्यवहार ही जानने योग्य है । निश्चय तो ज्ञानीजन ही जानते हैं । अतएम एकदम निश्चय को ही मन पकड बैठो, पहले व्यवहार की रक्षा करो ।
मान लो कि किसी मनुष्य में साधता के सभी गुण मौजूद हैं, किन्तु उसका लिंग (वेष) साधु का नही है । तो क्या तुम उसे साधु मानकर वन्दना करोगे ? साधु का वेष न होने के कारण तुम उसे वन्दना नही करोगे । व्यवहार मे वेष से ही साधु पहचाना जाता है । श्रीभगवतीसूत्र में कहा है-'असुच्चा केवली' अर्थात् केवलज्ञान तो हो गया है, पर वह अन्तरंग है । वाह्य वेष बदला नही है अथवा अवसर न होने के कारण बदला नहीं जा सका है, ऐसे