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छब्बीसवां बोल-५६
मानना चाहिए कि यह महल किसी के मस्तिष्क की ही उपज है । मस्तिष्क से यह महल बना है, लेकिन यदि मस्तिष्क ही विगड जाये तो कितनी बडी खराबी होगी ? तो फिर सुन्दर महल देखकर मैं अपना दिमाग क्यो विगाडूं? अगर मैंने अपना मन और मस्तिष्क स्वच्छ रखकर सयम का पालन किया तो मेरे लिए देवो के महल भी तुच्छ बन जाएंगे।
महाभारत मे व्यास को झौंडो और युधिष्ठिर के महल की तुलना का गई है और युधिष्ठिर के महल से व्यास की झोपडो अधिक अच्छी बतलाई गई है । इसका कारण यह है कि जहा निवास करके आत्मा अपना कल्याणसाधन कर सके वही स्थान ऊचा है और जहाँ रहने से आत्मा का अकल्याण हो वह स्थान नोचा है । जहाँ रहने से भावना उन्नत रहे वह स्थान ऊचा है और जहाँ रहने से भावना नीची हो जाये वह स्थान नोचा है । अगर तुम इस बात पर विचार करोगे तो तुम्हारा विवेक जागृत हो जायेगा।
गुरु के प्रताप से हम लोग सहज ही अनेक पापो से बचे हुए हैं । जो श्रावक अपना श्रावकपन पालन करता है वह भी पहले देवलोक से नीचे नही जाता । मगर एक-एक पाई के लिए भी झूठ बोलना कोई श्रावकपन नही है। क्या मैं तुमसे यह आशा रखू कि तुम असत्य भापण न करोगे? अगर कोई यह कहता है कि झूठ बोले बिना काम नही चलता तो उससे कहना चाहिए कि असत्य के बिना काम नही चलता होता तो तीर्थङ्कर भगवान ने असत्य बोलने का निषेध क्यो किया होता? क्या वे इतना भी नही सम