Book Title: Samaysar Natak
Author(s): Banarsidas Pandit
Publisher: Banarsidas Pandit
View full book text
________________
(२६) ..कारनरस सुभावफलन्यारोएकअनिष्टलगैइकप्यारे३९. .. सबैया इकतीसा-संकिलेस परिनामनिसों पाप वैध होई, विशुद्धसों पुन्य बंधु हेतु भेद मानिये । पापके उदे असाता ताको है कटुक स्वाद,पुन्य उदे सातामिष्ट रसभेद जानिये।। पाप संकिलेस रूप पुन्यहिं विशुद्ध रूप, दुहूंको सुभाउ भिन्न भेदयों बखानिये । पापसों कुगति होय पुन्यसों सुगतिहोय, ऐसा फल भेद परतक्ष परवानिये ॥ ४०॥ ..सवैया इकतीसा-पाप बंध पुन्य बंध दुहूमें मुगति नाहि कटुक मधुर स्वाद पुद्गलको पेखिये । संकिलेस विशुद्धि ‘सहज दोउ कर्म चालि, कुगति सुगति जग जालमें विशेखिये । कारनादि भेद तोहि सूझत मिथ्यातमाहि, प्रेसो द्वैत भाव ज्ञानदृष्टिमें न लेखिये । दोउ महा अंधकूप दो कर्म बंध रूप, दुहको विनास मोष मारगमें देखिये ॥११॥ . सर्वया इकतीसा--सीलतप संजमविरति दान पूजादिक, अथवा असंजम कषाय विषै भोग है । कोउ शुभरूप कोउ... अशुभ सरूप भूल, वस्तुके विचारत दुविध कर्म रोग है ॥ ऐसी बंध पद्धति बखानी वीतराग देव, आतम धरम में करम त्यांग जोग है । भौजल तरैया राग दोषको हरैया महा मोषको करैया एक शुद्ध उपयोग है ॥ ४२ ॥ सबैया इकतीसा-शिष्य कहै स्वामी तुम. करनी शुभ , कीनी है निषिद्ध मेरे संसो मनमाहि है। मोषके सज्ञाता. देस विरती मुनीस, तिन्हकी अवस्था तो निराव है. कहै. गुरु करमको न्यास अनुभौ । उन्हहीको उनमाहि है । निरुपाधि आतम

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122