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मगन जूठहिकों दारे, जूठं बात मानै पै न जाने कहा सांच है ॥ मनीको परखि जान जोहरी जगत् मांहि, साचकी समुझी ज्ञान लोचनकी जाच है, जहांको जु वासीसो तो तहांको मरम जाने, जाको जैलो स्वांग ताको तैसरूप नाच है ॥ ४७ ॥ दोहा-बंध बंधावे अंध व्हे, ते आलसी अजान ।
मुक्ति हेतु करनी करें, ते नर उद्यमवान ॥४८॥ सवैया इकतीसा-जवलगुजीव शुद्ध वस्तुको विचारै ध्या तवलगु भोगसों उदासीसरवंग है । भोगमें मगन तब ज्ञानकी जगन नाहि, भोग अभिलाषकी दशा मिथ्यात अंग है ॥ ताते विपै भोगमें भगन तो मिथ्याति जीव, भोग सों उदासि सो समकिति असंग है। ऐसी जानि भोगसों उदासि है मुगति साथै, यह मन चंग तो कठोतमांहि गंग है ॥१९॥ दोहा-धरम अरथ अरु काम शिव, पुरुषारथ चतुरंग।
कुधी कलपना गहि रहै, सुधी गहै सरवंग ॥५०॥ सबैया इकतीसा-कुलको आचार ताहि सूरख धरम कहै पंडित धरम कहै वस्तुके सुभाउको । खेहको अज्ञानी अरथक है, ज्ञानीकहै अरथ दरन दरताउको ॥दंपति को भोग ताहि दुरवुद्धि काम कहै, सुधी कास कहै अभिलाप चित आउको, इन्द्रलोक थानको अजानलोक कहै मोक्ष, मतिमान मोक्ष कहे बंधके अभाउको ॥ ५१ ॥ __ सवैया इकतीसा-धरमको साधन जुबस्तुको लुभाउ लाथै,
अरथको साधन विलेछ दर्वषटमें।यह काम साधनाजु संगहै निरास पद, सहज स्त्ररूपमोख सुद्धता प्रगटमें ॥ अंतर सु.