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जोधपर - राजवंश के जैन-वीर
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सामने उन्हें हमेशा मुँह की खानी पड़ी। सं० १८६१ में स्वर्गासीन
हुये ।
८. मेहता अचलोजी:
(मोहाजी की १८ वीं पीढ़ी में उत्पन्न महता अर्जुनजी के बड़े भाई ) राव चन्द्रसेनजी पौष सुदी ६ सं० १६१९ को जोधपुर के राज्य - सिंहासन पर बैठे। तब इन्होंने राज्य का काम किया । अनेक युद्धों में जोधपुर नरेश के साथ रहे। महाराजा साहब के डूंगरपुर से जोधपुर आते समय सोजत परगने के सवराड़ गाँव में मुग़लों से लड़ाई हुई, इस युद्ध में भी यह साथ थे । श्रावण बदी ११ सं० १६३५ में युद्ध में लड़ते हुये वीर गति को प्राप्त हुये । इन की पवित्र स्मृति में राज्य की ओर से छत्री बनवाई गई जो कि अब तक मौजूद है।
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६. मेहता जयमल्लजी:--
(अचलोजी के पौत्र ) संवत् १६७१ व सं० १६७२ में महाराज सूरसिंहजी के राज्य में गुजरात में बड़नगर के सूबेदार रहे। सं० १६७२ में ही फलौदी पर अधिकार होने पर वहाँ के हाकिम नियत हुये । सं० १६७४ में जहाँगीर बादशाह ने बीकानेर के राजा सूरतसिंह को फलौदी का परगना (जो जोधपुर के अधिकार में था) दे दिया । तब अपना अधिकार जमाने के लिये जो बीकानेर-राज्य ने सेना भेजी थी, उससे इन्होंने युद्ध करके उसे भगादिया और फलौदी पर उनका अधिकार नहीं होने दिया । सं० १६७९ के भाद्रपद सुदी १० को महाराज गजसिंहजी ने जालोर परगने पर अपना अधि