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राजपताने के जैन-वीर भाषा के विद्वान्, न्यायवैशेषिक, वेदांत, सांख्य भाट्ट प्राभाकर तथा बौद्धमत के अद्वितीय विद्वान् उपस्थित होते थे । गणित भूगोल ज्योतिष,वैद्यक, साहित्य और संगीतशास्त्र के बड़े बड़े पंडित इसकी सभा को सुशोभित करते थे। यह विद्वानों को बहुतसा धन, वस्त्र और आभूषण बाँटा करता था । उत्तम उत्तम गायक, गायिकाएँ, और नर्तकिएँ, इसके यहाँ आया करती थीं और इसकी संगीतशास्त्र में अनुपम चोग्यता देख कर अवाक रह जाती थीं। उन्हें.. भी यह द्रव्य आदि से संतुष्ट करता था। यह जैसा विद्वान था. वैसा ही धनी भी था । एक जगह इसने स्वयं लिखा है कि "एक दूसरे की सौत होने के कारण महालक्ष्मी और सरस्वती में परस्पर वैर है, इसलिए इस (मंडन) के घर में इन दोनों को बड़ी जोरों से बदाबदी होतीहै अर्थान् लक्ष्मी चाहती है कि मैं सरस्वती से अधिक बर्दू और सरस्वती लक्ष्मी से अधिक बढ़ने का प्रयत्न करती है। ___ मालवे के बादशाह का इस पर बहुत ही प्रेम था। ऐसे ऐसे विद्वानों की संगति से वादशाह को भी संस्कृत साहित्य का अनुराग हो गया था। एक दिन सायंकाल के समय वादशाह वैग था। विद्वानों की गोष्ठी हो रही थी। उस समय बादशाह ने मंडन से कहा कि "मैंने कादंबरी की बहुत प्रसंशा सुनी है और उसकी कथा सुनने को बहुत जी चाहता है । परन्तु राजकार्य में लगे रहने से इतना समय नहीं कि ऐसी बड़ी पुस्तक सुन सकूँ ! तुम बहुत बड़े विद्वान् हो, अतः यदि इसे संक्षेप में बनाकर कहो, तो बहुत ही अच्छा हो" । मंडन ने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि "वाण ने
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