Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवा वितं नमसंति --देवता भी उसे नमस्कार करते हैं। देवा तित्थयरं जाणन्ति -देव तीर्थंकर को जानते हैं। समणो नयरे विहरइ -श्रमण नगर में घूमता है। पमायबहुलो जीवो संसरइ -प्रमादयुक्त जीव भ्रमण करता है। संवरविहीणस्स मोक्खो ण होइ -संयमहीन को मोक्ष नहीं होता है। दसणसुद्धो पुरिसो णिण्वाणं लहेइ -दर्शनशुद्ध पुरुष निर्वाण पाता है। जीवाणं रक्खणं धम्मो अत्थि --जीवों की रक्षा धर्म है। वीयरागा लोगमलोग मुणेइरे --वीतराग लोक-अलोक को जानते हैं। रामो मोक्खं अहिलहइ -राम मोक्ष की कामना करता है। अभ्यास हिन्दी में अनुवाद कीजिये___रामो देवे पणमइ। पुरिसो देवं नमइ । पुत्तो पइदिणं पिअरं पणमइ । आयासे मेहा संति । अग्गि उण्हं होइ। माहणो कोहं कुणइ । णरयम्मि अइ दुक्खा संति । वाराणसीए जण। णिवसंति । जो एगं जाणेइ सो सव्वं जाणइ । पावा नरा सुहं न पावेन्ति । धणं दाणेण सहल होइ। आयारो परमो धम्मो। अईव णेहो दुक्खस्स मूलं अस्थि । हे खमासमण ! मत्थएण वंदामि। प्राकृत में अनुवाद कीजिये वन में सिंह गरजता है। राम जिनवचन पढ़ता है। श्रमण आत्मा को जानता है। अलोभ अपरिग्रह है। आचार्य मरण से नहीं डरता है। वीतराग को सब जानते हैं। हरिभद्र ग्रन्थ लिखता है। इकारान्त और उकारान्त शब्द प्राकृत में पुल्लिग इकारान्त और उकारान्त शब्दों का भी प्रयोग होता है। इनकी रूप-रचना के उदाहरण इस प्रकार हैं। मुणि (मुनि) एकवचन बहुवचन मुणी मुणउ, मुणओ, मुणिणो मुणि मुणी, मुणिणो प्राकृत सीखें: २३ For Private and Personal Use Only

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