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रयणी+अर=रयणीअर; एगे+आया=एगेआया।
अव्यय स्वरसन्धि अ का लोप-- केण+अपि =केण वि;
मरणं + अपि =मरणं वि; इका लोप--- नत्थि+ इति=नत्थि ति;
किं + इति=किं ति; चन्दो+इव = चन्दो व्व।
व्यंजन सन्धि अनुस्वार-जलम् -:: जलं, गिरिम् =गिरि।
विकल्प---उसभम् - अजिअम् =उसभं अजिअं; उसभमजिअं (ऋषभमजितम्)
अन्तिम व्यंजन का अनुस्वार-यत्--जं, तत्=तं, सम्यक् --सम्म, साक्षात् == सक्खं ।
अनुस्वार का आगम-वक्रम् == वकं, उपरि=उवरि।
अनुस्वार का लोप---विंशतिः ==बीसा, सिंधो-सीहो, वं---एवं कथं=कह।
अन्त्य व्यंजन का मेल-किम् + इहं= किमिहं, यद् + अस्ति =यदत्थि।
प्राकृत में संधि का विचार सदैव प्रसंग तथा शब्द के अर्थ को ध्यान में रख कर करना चाहिये क्योंकि यह वैकल्पिक व्यवस्था है।
समास थोड़े शब्दों में अधिक अर्थ बताने वाली प्रक्रिया को समास कहते हैं। समास के प्रयोग से वाक्य-रचना में सौन्दर्य आ जाता है। प्राकृत में सरल समासों का ही प्रयोग हुआ है। प्राकृत-व्याकरणकारों ने इसके लिए नियम नहीं बनाये हैं; अतः प्रयोग के अनुसार प्राकृत के समासों को समझा जा सकता है। समास के निम्न छह भेद हैं
प्राकृत सीखें : ६२
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