Book Title: Prakrit Sikhe
Author(s): Premsuman Jain
Publisher: Hirabhaiya Prakashan

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाती है), एअं फलं महुरं अत्थि (यह फल मीठा है), एगो बालओ भणइ (एक बालक कहता है), एगा बालिआ गच्छइ (एक लड़की जाती है), तिणि मित्ताणि निवसत्ति (तीन मित्र रहते हैं), तुमं ममत्तो कणीअसो अत्थि (तुम मुझ से छोटे हो), सईसु सीया सेट्ठा अत्थि (सतियों में सीता श्रेष्ठ है), पुण्णस्स मग्गो सेयसो होई (पुण्य का मार्ग कल्याण का होता है), कच्छाए तस्स दुइयं थाणं अत्थि (कक्षा में उसका दूसरा स्थान है), इम कण्णा सत्ताराहण्हं वरिसाणं अत्थि (यह सत्रह वर्ष की कन्या है), गिरीसु हिमालयो उच्चअमो अत्थि (पर्वतों में हिमालय सबसे ऊँचा है), वत्थुसहावो धम्मो (वस्तु-स्वभाव धर्म है), लोभा-इट्ठोजीवो सब जगेण विन तिप्पेदि (लोभ से आकृष्ट जीव सारे जग से भी संतुष्ट नहीं होता), गामिल्लो चउरो अत्थि (ग्रामीण चतुर हैं), गव्विरो उण्णतिं ण लहइ (घमंडी उन्नति नहीं कर सकता है), एत्तिअं अहियं संचयं वरं णत्थि (इतना अधिक संचय अच्छा नहीं है) । हिन्दी में अनुवाद कीजिये हत्थिणाउरे नयरे सूरनामा राययुत्तो गुण-रयणसंजुत्तो वसइ । तस्स भारिया गंगाभिहाणा । सीलालंकिया सुमइनामा तेसिं धूया । सा कम्मपरिणामवसओ जणअ-जणणी-भाया-माउलेहिं पुढो-पुढो (अलगअलग) वराणंदिन्ना। चउरो वि ते वरा एगम्मि चेव दिण्णे परिणेउं आगया। परस्परं कलहं कुणंति । तओ तेसि विसमे संगामे जायमाणे बहुजणक्खयं दट्ठ ण अग्गिम्मि पविटा सुम इकन्ना। नीए समं निविडमोहेण एगो वरो वि पविट्ठो। एगो अत्याणि गंगप्पवाहे खिविउ गओ। एगो चिआरक्खं तत्थेव जलपूरे खिविऊण तदुक्खेण मोहगहिओ महीयले हिंडइ । चउत्थो तत्थेव ठिओ ताणं रक्खंतो पइरिणं एगमन्नपिंडं मुअन्तो कालं गमइ। प्राकृत में अनुवाद कीजिये - कर्मों के निमित्त से चारों दुलहे फिर एक साथ मिल गये। उस कन्या के साथ विवाह करने के विवाद को लेकर वे राज दरबार गये। चारों ने प्राकृत सीखें : ६७ For Private and Personal Use Only

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