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जीवन आभा
उपवन में फूल खिले हो, महक बिखर रही हो, मकरन्द फूट रहा हो तो भंवरे मंडरायेंगे ही, रात्रि में चांद उदित हो, निर्मल शुभ्र शीतल चांदनी चारों ओर बिखरी हो तो कुमुद विकसित होगा ही उषा (लालिमा) को फैलाता हुआ सूर्य उदयमान हो तो कमल खिलेगा ही।
इसी तरह व्यक्ति का व्यक्तित्व जब निखरता है, यशः सुरभि चारों दिशाओं में फैलती है तो जनमानस आकर्षित होता ही है, इसी कड़ी में बनाया है विलक्षण जिन्होंने अपने व्यक्तित्व को; बहुमुखी प्रतिभा के धनी, समता विभूति, सरल स्वभावी, महानमनीषी, ओजस्वी वक्ता परम पूज्य राजयश सूरीश्वरजी म.सा. जो जिन भक्ति प्रणेता है, युवा शक्ति के संबल है, वीतरागीता जिनका परम लक्ष्य है। आकृष्ट
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