________________ नषधीयचरिते अन्वयः-स: अपर: सुरः अपः प्रति स्वामितया नैषधधा यदि ताः निषेघेत् , ( तर्हि ) ते पिता लोभात् तत-पाणये अपि नलाय त्वाम् कथम् संप्रदास्यते ? (इति) वद / टीका-सः प्रसिद्धः अपरः अन्यः सुरः वरुणदेवः अपः जलम् प्रति लक्ष्यीकृत्य स्वामितया प्रभुत्वेन जलेऽधिकृत वादित्यर्थः नैषधे नलं प्रति क्रुधा क्रोधेन (स० तत्पु० ) त्वयाऽहं न वृतः, नलं च वृणुषे इति त्वयि नलाय क्रुद्धीभूयेत्यर्थः यदि चेत् ताः अपः जलमित्यर्थः निषेधेत् स्वकार्यदेहभू मूर्तं जलं मा त्वया कन्यादानसंकल्प-निमित्तं स्वयंवरे गन्तव्यमिति कृत्वा निवारयेदिति भावः, तहि ते तव पिता भीमः लोभात् लिप्सायाः कारणात् मा भवतु जलम्, एतेन विनाऽपि कन्या. महं प्रतिग्रहीष्यामीति लुब्धीभूयेत्यर्थः ततः प्रसारितः पाणिः हस्तः ( कर्मधा० ) येन तथाभूताय ( ब० वी० ) अपि नलाय त्वाम् कथम् केन प्रकारेण संप्रदास्यते दास्यति ? न कथमपीति काकुः / काम नलः त्वयि अत्यासक्तया जलमन्तरेणापि त्वां प्रतिग्रहीतुमनुरोधं कुर्यात् किन्तु तव पिता शास्त्रोक्त जलसंकल्पे विना नैव त्वां 'दास्यतीति भावः // 82 // ___व्याकरण-सुरः इसके लिए पीछे 5-34 देखिए। क्रुधाV क्रुध + विप् ( भावे ) तृ० / पिता पातीति/पा + तृच, आ को इत्व / कथम् किम् + थम् / अनुवाद-"वह दूसरे देवता ( वरुण ) जल के अधिष्ठातृदेव होने के कारण नल के प्रति क्रोध में यदि उस ( जल) को रोक दें तो तुम्हारे पिता ( तुम्हारे ) लोभ में ( विना जल के ) हाथ पसारे होते हुए भी नल को तुम्हें दान में कैसे दे देंगे?" // 82 // टिप्पणी-शास्त्रानुसार दान देने के लिए हाथ में संकल्प-जल लेना पड़ता है / विना संकल्प-जल के दान नहीं होता है। श्रीहर्ष ने पीछे 'यत्प्रदेयमुपनीय वदान्यैर्दीयते सलिलमथिजनाय ( 5 / 85 ) में इसका उल्लेख किया है। शास्त्रवचन यह है -'कुशवत्सलिलोपेतं दानं संकल्पपूर्वकम्'। सलिल वरुण देवता का मूर्त कार्य देह होता है, यह हम पीछे स्पष्ट कर चुके हैं। वे जल को ही रोक देते हैं, तो कन्यादान कैसे हो सकेगा? ध्यान रहे कि गान्धर्वादिविवाहों में कन्यादान हेतु संकल्प-जल वाली शास्त्रीय विधि लागू नहीं होती है, तथापि नल ऐसा कहकर यहाँ दमयन्ती के साथ ठगी ही कर रहे हैं / यहाँ काव्यलिङ्ग है / 'निषेध, नैषध, "पिते, पिता, में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है /