Book Title: Naishadhiya Charitam 03
Author(s): Mohandev Pant
Publisher: Motilal Banarsidass

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Page 565
________________ 562 नैषधीयचरिते येषामहं लोककृतामीश्वराणां महात्मनाम् / न पादरजसस्तुल्यो मनस्तेषु प्रवर्तताम् // 14 // विप्रियं ह्याचरन् मया देवानां मृत्युमिच्छति / / त्राहि मामनवद्याङ्गि वरयस्य सुरोत्तमान् // 15 // विरजांसि च वासासि दिव्यश्चित्राः स्रजस्तथा। भूषणानि तु मुख्यानि देवान प्राप्य तु भुक्ष्व वै // 16 // य इमां पृथिवीं कृत्स्नां संक्षिप्य असते पुनः / हुताशमीशं देवानां का तं न वरयेत् पतिम् // 97 // यस्य दण्डभयात् सर्वे भूतग्रामाः समागताः।। धर्ममेवानुरुध्यन्ति का तं न वरयेत् पतिम् // 98 // धर्मात्मानं महात्मानं दैत्यदानवमर्दनम् / महेन्द्रं सर्वदेवानां का तं न वरयेत् पतिम् // 19 // क्रियतामविशङ्कन मनसा यदि मन्यसे / वरुणं लोकपालानां सुहृद्-वाक्यमिदं शृणु" // 10 // नैषधेनैवमुक्ता सा दमयन्ती वचोऽब्रवीत् / समाप्लुताभ्यां नेत्राभ्यां शोकजेनाथ वारिणा // 101 // "देवेभ्योऽहं नमस्कृत्य सर्वेभ्यः पृथिवीपते / / वृणे त्वामेव भर्तारं सत्यमेतद् ब्रवीमि ते" // 102 // तामुवाच ततो राजा वेपमानां कृताञ्जलिम् / "दौत्येनागत्य कल्याणि तथा भद्रे विधीयताम् // 103 // कथमहं प्रतिश्रुत्य देवतानां विशेषतः / परार्थे यत्नमारभ्य कथं स्वार्थ मिहोत्सहे // 104 // एष धर्मों यदि स्वार्थों ममापि भविता ततः / एवं स्वार्थ करिष्यामि तथा भद्रे विधीयताम्" // 105 // ततो बाष्पाकुलां वाचं दमयन्ती शुचिस्मिता। प्रत्याहरन्ती शनकैनलं राजानमब्रवीत् // 106 // "उपायोऽयं मया दृष्टो निरपायो नरेश्वर। येन दोषो न भविता तव राजन् कथञ्चन // 107 //

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