________________ 302 नैषधमहाकाव्यम् / दुर्लभं दिगधिपैः किममीभिस्तादृशं कथमहो मदधीनम् | ईदृशं मनसिकृत्य विरोधं नैषधेन समशायि चिराय // 50 // दुर्लभमिति / दिगधिपैरमीभिरिन्द्रादिभिः, दुर्लभं किं तादृशं दुर्लभ वस्तु कथं मदधीनं मदायत्तम्, अहो, ईशं विरोध मनसिकृत्य निधाय / 'अनत्याधान उरलि. मनसी' इति गतिसंज्ञापने 'कुगतिप्रादयः' इति समासे वो ल्यबादेशः / नैषधेन नलेन, चिराय चिरं समशायि संशयितम् / विद्यारितमित्यर्थः / भावे लुङ् // 8 // ('मेरे याचक बननेवाले ) इन दिक्पालों को क्या दुर्लभ है ? अर्थात् कुछ नहीं, (क्योंकि अपने प्रमावसे या स्वर्गस्थ कल्पवृक्षादिके द्वारा सब कुछ इनको सुझम ही है ) और वैसी (इन देवताओंसे दुर्लभ ) वस्तु मेरे अधीन कैसे है ?' ऐसी विरुद्ध बातों को मनमें रखकर बहुत देर तक नक संशय में पड़े रहे // 80 // जीवितावधि वनीपकमात्रैर्याच्यमानमखिलैः सुलभं यत् / अथिने परिवृढाय सुराणां किं वितीय 'परितुष्यतु चेतः / / 81 // विचारप्रकारमेवाह द्वादशरलोक्या-जीवितेत्यादि / यद्यस्मादखिलैवनीपकमा. त्रैय कैरिधाचकैः। 'वनीपको याचनको मार्गणो याचकार्थिनी' इत्यमरः। जीवि. तावधि प्राणपर्यन्तं, याच्यमानं वस्तु सुलभम् / सुराणां परिवृढाय प्रभवे अर्थिने, किं वस्तु वितीयं दवा, चेतः परितुष्यतु सन्तुष्येत् / प्राणान्तं वस्तु सर्वार्थिसाधा. रणं ततोऽधिकमिन्द्राय देयं किमस्तीति विचारितमित्यर्थः / वितरणे चेतसः कर्तृत्व विवचया वितरणपरितोषयोः समानकर्तृकत्वसिद्धिः // 8 // ___ बासप याचकों को मांगे गये ( मेरे ) प्राणतक सुलम है ( योग्य एवं अयोग्य पात्रका बिना विचार किये ही में सामान्य याचकों को भी सरलतासे अपने प्राण भी दे सकता हूँ) तब याचक देवराज (इन्द्र ) के लिये क्या (पाणोंसे भी अधिक कौन-सा पदार्थ ) देकर (मेरा) चित्त सन्तुष्ट होवे ? [ संसारमें जीवन ही सर्वश्रेष्ठ पदार्थ माना गया है, उसे बब मैं सामान्य याचकको भी अनायास ही दे सकता हूँ, तब अत्यन्त उत्तम पात्र याचक देवराज इन्द्र के लिये प्राणोंसे भी उत्तम वस्तु देना उचित है, किन्तु प्राणाधिक कोई वस्तु देने योग्य नहीं दीख पड़नेसे नल संशयमें पड़े रहे ] // 81 // भीमजा च हृदि मे परमास्ते जीवितादपि धनादपि गुर्वी / न स्वमेव मम सार्हति यस्याः षोडशीमपि कलां किल नोर्वी / / 2 / / नन्वस्ति लोकोत्तरं वस्तु भैमी, सा दीयतामित्यत आह-भीमजेति / उर्वी भूषस्या भैम्याः षोडशीमपि कलां नार्हति षोडशाशसाग्यमपि न प्राप्नोतीत्यर्थः। 1. 'मम तुष्यतु' इति पाठान्तरम् /