Book Title: Naishadh Mahakavyam Purvarddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 699
________________ 630 नैषधमहाकाव्यम् / च्छतः, अनङ्गशरान् अनुसरतीति तदनुसारी तत्सदृशः, भृङ्गवर्गः अवनीन्द्रचयस्य राजलोकस्य, चन्दनं चन्द्रः कर्पूरञ्च 'अथ कर्पूरमस्त्रियां घनसारः चन्द्रसंज्ञः' इत्यमरः / तयोलेपः, स एव नेपथ्यम् अलङ्कारः, तस्य यो गन्धस्तन्मयस्य तत्प्रचुरस्य, गन्ध. वहस्य वायोः, प्रवाहं संरुध्य मध्ये मार्गमावृत्य, अथवा-आलीभिः स्वीयश्रेणीभिः, तादृशवायुप्रवाहं संरुध्य अन्यत्र कुत्रचित् गन्तुमदत्त्वा इत्यर्थः, सौरभम् आमोदम् , अगाहत विलोडितवान् उपभुक्तवान् वा। सौगन्ध्यलोभात् भ्रमराः श्रेणीभूताः सन्तः सभायां विचरन्ति स्म इति भावः // 5 // ___ उस स्वयंवर में राज-समूहके चन्दनाधिक कर्पूर के लेप ( अङ्गराग ) रूप भूषणसे गिरते ( या आते हुए ) कामबाणके सदृश भ्रमर समूह ने भोग किया / ( अथवा-पतियों में अर्थात् पतिबद्ध होकर गिरते हुए....")। [ अन्य भी कोई व्यक्ति बहते हुए किसी पदार्थ को वस्त्रादिसे रोककर उसका उपभोग करता है। पंक्तिबद्ध भ्रमर-समूह की अधिक लम्बाई तथा कामोद्दीपक होनेसे कामबाण की उत्प्रेक्षा की गयी है। सुगन्धिकी अधिकतासे सर्वत्र भ्रमर-समूह उड़ रहे थे। ] // 5 // उत्तुङ्गमङ्गलमृदङ्गनिनादभङ्गीसर्वानुवादविधिबोधितसाधुमेधाः / सौधनजःप्लुतपताकतयाऽभिनिन्युर्मन्ये जनेषु निजताण्डवपण्डितत्वम्॥ __उत्तङ्गेति / उत्तङ्गाः अतिताराः, ये मङ्गलमृदङ्गनिनादाः माङ्गलिकविवाहमुरजध्वनयः, तद्भङ्गीनां तत्प्रकारविशेषाणां, सर्वानुवादविधिना प्रतिध्वनिरूपेण कृत्स्नप्रत्युशारणेन, बोधिता निवेदिता, साध्वी उत्कृष्टा, मेधा धारणाशक्तिः यासां ताः तथोक्ताः 'धीर्धारणावती मेधा' इत्यमरः, परोक्तसर्वविशेषानुवादस्य मेधाकार्यत्वात् तस्याः तल्लिङ्गत्वमिति भावः; सौधस्रजः प्रासादपङक्तयः, प्लुतपताकतया चलन्पताकतया, चलत्कररूपपताकयेति भावः, जनेषु सभास्थितेषु विषये, समीपे वा, निजताण्डव. पण्डितत्वं स्वस्य नृत्यकौशलं, 'ताण्डवं नटनं नाट्यं लास्यं नृत्यञ्च नर्त्तने' इत्यमरः; अभिनिन्युः व्यञ्जयन्ति स्म, मन्ये वाक्यार्थः कर्म / मृदङ्ग प्रतिध्वानात् पताका. चलनाच्च नर्तकीवत् वाक्यानुवादं हस्ताभिनयं चऋरिवोत्प्रेक्षा, सौधपङक्तिषुः नर्तकीव्यवहारसमारोपात् समासोक्तिः अलङ्कारश्च // 6 // ऊँचे मङ्गलमय मृदङ्गके स्वरों की भङ्गो के सम्पूर्ण अनुवाद करने ( प्रतिध्वनित होने के कारण ज्यों का त्यों कहने ) से श्रेष्ठ बुद्धिका प्रदर्शन किये हुए महलों के समूहोंने चञ्चल ध्वजाओंसे लोगों के सामने अपने नृत्य के पाण्डित्य अर्थात् नृत्यकला चातुर्यको दिखलाया। [विवाहार्थ मङ्गलमय मृदङ्ग बज रहे थे उनका उच्च स्वर महलों में प्रतिध्वनित हो रहा था तथा ऊपर में पताकाएं वायुसे हिल रही थी तो ऐसा मालूम पड़ता था कि ये महल मृदङ्ग के स्वरोंको अनुवाद करते ( दुहराते ) हुए अपनी नृत्यकला का चातुर्य लोगों को दिखला

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