Book Title: Moksh marg prakashak Author(s): Todarmal Pandit Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust View full book textPage 5
________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates विषय-सूची प्रकाशकीय, सम्पादकीय, प्रस्तावना पहला अधिकार [ पीठबंध प्ररूपण] मंगलाचरण १, अरहंतोंका स्वरूप २, सिद्धोंका स्वरूप २, आचार्य-उपाध्याय-साधुका सामान्य स्वरूप ३, आचार्यका स्वरूप ३, उपाध्यायका स्वरूप ४, साधुका स्वरूप ४, पूज्यत्वका कारण ४, अरहंतादिकसे प्रयोजनसिद्धि ६, मंगलाचरण करनेका कारण ८, ग्रन्थकी प्रामाणिकता और आगम-परम्परा ९, अपनी बात ११, असत्यपद रचना प्रतिषेध ११, वांचने-सुनने योग्य शास्त्र १४, वक्ताका स्वरूप १४, श्रोताका स्वरूप १७, मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रन्थकी सार्थकता १८ दूसरा अधिकार [संसार अवस्थाका स्वरूप] कर्मबन्धका निदान २२ -३२ कर्मोंके अनादिपनेकी सिद्धि २२, जीव ओर कर्मोंकी भिन्नता २३, अमूर्तिक आत्मासे मूर्तिक कर्मोंका बंधान किस प्रकार होता है ? २४, घाति-अघाति कर्म और उनका कार्य २४, निर्बल जड़कर्मों द्वारा जीव के स्वभावका घात तथा बाह्य सामग्री मिलना २५ नवीन बन्ध विचार योग और उससे होनेवाले प्रकृतिबन्ध, प्रदेशबन्ध २६, कषायसे स्थिति और अनुभागबन्ध २७, ज्ञानहीन जड़-पुद्गल परमाणुओंका यथायोग्य प्रकृतिरूप परिणमन २८ सत्तारूप कर्मोंकी अवस्था २९, कर्मोंकी उदयरूप अवस्था २९, द्रव्यकर्म व भावकर्मका स्वरूप और प्रवृत्ति ३०, नोकर्मका स्वरूप और प्रवृत्ति ३१, नित्यनिगोद और इतरनिगोद ३१ कर्मबन्धनरूप रोगके निमित्तसे होनेवाली जीवकी अवस्था ३२-४४ ज्ञानावरण-दर्शनावरणकर्मोदयजन्य अवस्था ३२ मतिज्ञानकी पराधीन प्रवृत्ति ३३, श्रृतज्ञानकी पराधीन प्रवृत्ति ३४, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवलज्ञानकी प्रवृत्ति ३५ , चक्षु-अचक्षु-अवधि-केवलदर्शनकी प्रवृत्ति ३५ मोहनीयकर्मोदयजन्य अवस्था ३७ दर्शनमोहरूप जीवकी अवस्था ३८, चारित्रमोहरूप जीवकी अवस्था ३८ अंतरायकर्मोदयजन्य अवस्था ४१, वेदनीयकर्मोदयजन्य अवस्था ४१, पोदयजन्य अवस्था ४२, नामकर्मोदयजन्य अवस्था ४३. गोत्र कर्मोदयजन्यअवस्था ४४ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.comPage Navigation
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