Book Title: Margparishuddhi Prakaranam
Author(s): Kulchandrasuri
Publisher: Bhidbhanjan Parshwanath Jain Sangh
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________________ एवतिएण कालेण जइ पत्तो जुगवमुवट्ठावणा, अओ परं थेरे अणिच्छेवि खुड्डो उवट्ठाविज्जइ, अहवा ‘वत्थुसहावेण जाधीतंति वत्थुस्स सहावो वत्थुसहावो-माणी, अहं पुत्तस्स ओमयरो कज्जामित्ति उण्णिक्खिमिज्जा, गुरुस्स खुड्डस्स वा पओसं गच्छिज्जा, ताहे तिण्ह वि पंचाहाणं परओऽविसंचिक्खाविज्जइ जाव अहीयंति गाथार्थः / / 623 / / अत: परं वृद्धसम्प्रदाय: - 'अह दोऽवि पियापुत्तजुगलगाणि तो इमो विही - दो थेर खुड्ड थेरे, खुड्डग वोच्चत्थ मग्गणा होइ / रन्नो अमच्चमाई, संजइमज्झे महादेवी / / 633 / / दो थेरा सपुत्ता समयं पव्वाविया, एवं 'दो थेर'त्ति दोऽवि थेरा पत्ता ण ताव खुड्डगा, थेरा उवट्ठावेयव्वा, 'खुड्डग'त्ति दो खुड्डा पत्ता ण थेरा, एत्थवि पण्णवणुवेहा तहेव, 'थेरे खुड्डग'त्ति दो थेरा खुड्डगो य एगो एत्थ उवट्ठावणा, अहवा दो खुड्डगाथेरो य एगो पत्तो, एगे थेरे अपावमाणम्मि एत्थ इमं गाहासुत्तं / / 633 / / - दो पुत्तपिआ पुत्ता, एगस्स पुत्तो पत्त न उ थेरो। गाहिउ सयं व विअरइ, रायणिओ होउ एसविआ / / 634 / / पुव्वद्धं कण्ठ्यं, आयरिएण वसभेहिं वा पण्णवणं गाहिओ विअरइ सयंवा वियरइ ताहे खुड्डगो उवट्ठाविज्जउ, अणिच्छे रायळिंतपण्णवणा तहेव, इमो विसेसो - सो य अपत्तथेरो भण्णइ - एस ते पुत्तो परममेधावी पुत्तो उवट्ठाविज्जइ, तुमंण विसज्जेसि तो एए दोऽवि पियापुत्ता राइणिया भविस्संति, तं एवं विसज्जेहि, एसविता होउ एएसिं रातिणिउत्ति, अओ परमणिच्छे तहेव विभासा, इयाणि पच्छद्धं - ‘रण्णो अमच्चाइ'त्ति राया अमच्चो यसमगं पव्वाविया, जहा पियापुत्ता तहा असेसंभाणियव्वं,आदिग्गहणेणं सिटिसत्थवाहाणं रण्णा सह भाणियव्वं, संजइमज्झवि दोण्हं मायाधितीणं दोण्ह य मायाधितीजुवलयाणं महादेवीअमच्चीण य एवं चेव सव्वं भाणियव्वं / / 634 / / राया रायाणो वा, दोण्णिवि सम पत्त दोसु पासेसु। ईसरसिट्ठिअमच्चे, निअम घडा कुला दुवे खुड्डे / / 635 / / _ 'राया रायाणो'त्ति एगो राया बितिओ रायराया समं पव्वइया, एत्थवि जहा पियापुत्ताणं तहा दट्ठव्वं, एएसिं जो अहिगयरोरायादि इअरंमि अमच्चाइए ओमे पत्ते उवट्ठाविज्जमाणे अपत्तियं करिज्ज पडिभज्जेज्ज वा दारुणसहावो वा उदुरुसिज्जा ताहे सो अपत्तोऽवि इयरेहि सममुवट्ठाविज्जइ, अहवा 'राय'त्ति जत्थ एगोराया जो अमच्चाइयाण सव्वेसिं रायणिओ कज्जइ. 'रायाणो'त्ति जत्थ पण दुप्पभितिरायाणो समं पव्वइया समं च पत्ता उवाविज्जंता समराइणिया कायव्वत्ति दोसु पासेसु ठविज्जंति, एसेवत्थो भण्णइ / / 635 / / समयं तु अणेगेसुं, पत्तेसुंअणभिओगमावलिया। एगदुहओऽवि ठिआ, समराइणिआजहासन्नं / / 636 / / दारं / / - पुव्वं पियापुत्तादिसंबंधेण असंबद्धेसु बहुसु समगमुवट्ठाविज्जमाणेसु गुरुणा अण्णेण वाअभिओगो ण कायव्वो इओ ठाहत्ति, एवमेगओ दुहओ वा ठाविएसु जो जहा गुरुस्स आसण्णो सो तहा जेट्ठो, उभयपासट्ठिया समा महामहोपाध्याय श्री यशोविजय विरचितं 35 मार्गपरिशुद्धिप्रकरणंसटीकम्

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