Book Title: Mahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Author(s): Darbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
Publisher: Mahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP

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Page 15
________________ - ८ रूपमें इस सत्रमें पधारे थे। इस महत्त्वपूर्ण पत्रका संचालन किया मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमीके सचिव डॉ० भागचन्द भागेन्दु ने। मंगलाचरण, दीप प्रज्वलन एवं पंडितजीके चित्रपर माल्यार्पणके बाद पं० जीके अनुज श्री धन्यकुमार जैन वाराणसी, पुत्र श्री पद्मकूमार तथा अरविन्दकुमार जैन बम्बई, दामाद श्री रतन पहाड़ी, कामठी, श्री न्तोष भारती, दमोह. डॉ० अभय चौधरी. अम्बिकापर एवं समाजके पदाधिकारियोंने गोष्ठी में पधारे विद्वानों एवं अतिथियोंका स्वागत किया। डॉ० सत्यप्रकाश दिल्लीने पंडित महेन्द्रकुमारजी का परि. चय प्रस्तुत करते हुए उनके जन्म, अध्ययन-अध्यापन, सम्पादन, लेखन आदिकी जानकारी दी। संयोजक डॉ. कासलीवाल द्वारा प्रारंभिक वक्तव्य दिये जानेके बाद अतिथियोंने अपने उद्बोधनमें पूज्य महाराजजी की प्रेरणासे होनेवाली इस संगोष्ठीपर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इससे नगर गौरवान्वित हो रहा है। सभीने पंडितजीके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। अध्यक्षके रूपमें बोलते हुए डॉ० दरबारीलालजी कोठिया भाव विह्वल हो गये । उन्होंने पंडितजीके अनेक संस्मरण सुनाते हुए उन्हें एक प्रबुद्ध विचारक, दार्शनिक चिंतक, आदर्श अध्यापक और सफल लेखक-संपादक निरूपित किया। डॉ० कोठियाने बताया कि मैं अध्यापन कार्यमें तो बहुत समय उनके साथ रहा ही, पहले छह महीने तक मैंने उनसे अध्ययन भी किया था। उद्घाटन सत्रके अन्तमें पूज्य महाराजश्रीने अपने उद्बोधनमें अध्ययन चितनकी उपादेयता प्रतिपादित करते हुए पं० महेन्द्रकुमारजी द्वारा की गई जिनवाणी सेवा की प्रशंसा की तथा विद्वानोंसे उनका अनुसरण करनेका आग्रह किया । रात्रिमें एक संस्मरण सभा आयोजित की गई जिसमें पंडितजीके परिजनों विशेष रूप से उनके अनुज, दोनों पुत्रों एवं पुत्रियोंने संस्मरण सुनाये। डॉ० सत्यप्रकाश दिल्ली, निर्मल जैन सतना, डा. राजाराम आरा और फूलचन्द्र प्रेमी वाराणसीने भी पंडितजी का गुणानुवाद किया । १९ अप्रैलका प्रातःकालीन सत्र डॉ० सुदर्शनलालजी वाराणसीकी अध्यक्षतामें प्रारम्भ हुआ, इस सत्रका संचालन किया डॉ० शीतल चंद्र जैन जयपुर ने । सत्रमें डॉ० रतनचन्द्र जैन भोपाल, श्री निर्मल जैन सतना, डॉ० फूलचन्द्र प्रेमी, वाराणसी एवं० डॉ० नन्दलाल जैन रीवाने अपने आलेख प्रस्तुत किये जिनमें डॉ० महेन्द्रकुमारजी द्वारा लिखित एवं सम्पादित कृतियोंकी विवेचना की गई थी। अध्यक्षीय उद्बोधनके बाद पूज्य महाराजजीने कहा कि समाजको मार्गदर्शन देनेके लिये विद्वानोंमें ज्ञानके साथ चारित्र होना भी आवश्यक है। मध्याह्न तीन बजेसे प्रारंभ गोष्ठीके कार्यकारी सत्र की अध्यक्षता की डॉ० रतनचंद्र जैन भोपालने और संचालन किया निर्मल जैन सतना ने । इस सत्रमें डॉ० शीतलचंद्र जैन जयपुर, डॉ. राजारामजी आरा, डॉ० भागचंद्र भास्कर नागपुर, डॉ० भागचंद भागेन्दु, दमोह एवं डॉ० कस्तूरचंद्र कासलीवालने अपने आलेखों का वाचन किया। सभी आलेखों पर संचालक की सटीक टिप्पणियों एवं अंतमें अध्यक्ष महोदय की महत्त्वपूर्ण समीक्षाओंने सत्र को अत्यन्त प्रभावक बना दिया। अंतमें उपाध्यायश्री का मंगल प्रवचन भी हुआ। रात्रिमें डा० रतनचंद्रजी द्वारा शास्त्र प्रवचनके बाद प्रो० कमलेश जैन अम्बिकापुर का आलेख वाचन हआ और फिर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री एस० के० जैन की अध्यक्षतामें एक सरस काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। इसका सुरुचिपूर्ण संचालन श्री निर्मल जैन सतनाने किया। गोष्ठी में स्थानीय कवियित्री श्रीमती उषाकिरन फुसकेले, पं० सुरेश जैन मनेन्द्रगढ़, डॉ० कासलीबाल जयपुर, डॉ० भागचन्द्र भागेन्दु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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