Book Title: Mahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Author(s): Darbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
Publisher: Mahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP

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Page 14
________________ अम्बिकापुर में परमपूज्य उपाध्याय ज्ञानसागरजी महाराज के सान्निध्य में एक ज्ञानाराधक का स्मरण • श्री निर्मल जैन, सतना मध्यप्रदेशका आदिवासी अंचल सरगुजा भले ही पिछड़ा इलाका माना जाता हो परन्तु वहाँकी प्राकृतिक और पुरातात्विक सम्पदा उसे महत्त्वपूर्ण बनाती है। सुरम्य पर्वतश्रेणियों के बीच बसे सरगुजाके जिला मुख्यालय अम्बिकापुरको जब ज्ञानोपासक संत पूज्य उपाध्यायश्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराजके पदापंणका सुयोग मिला तो वहां धर्मामृतकी वर्षा स्वाभाविक ही थी। जिन मन्दिरकी वेदी प्रतिष्ठा वहाँ सम्पन्न हुई, पूज्य उपाध्यायश्री के प्रवचनोंसे शाकाहारका व्यापक प्रचार-प्रसार हा और विगत १८-१९-२० अप्रैल १९९४ को वहाँ एक प्रभावक सार्थक विद्वत् गोष्ठीका मायोजन हमा जिसके निमित्तसे समाजके अनेक प्रतिष्ठित विद्वानोंका समागम भी अम्बिकापुरमें हुआ। प्रसंग था ३५ वर्ष पूर्व दिवंगत जैन न्याय एवं दर्शनके प्रकाण्ड विद्वान् पंडित महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यका पुण्य स्मरण । पूज्य उपाध्याय ज्ञानसागरजी महाराज अपने ज्ञान ध्यानके साथ ही जहाँ एक ओर सराक उद्धार जैसे गुरुतर कार्य में प्रेरक बन रहे हैं वहीं सरस्वती पुत्रोंके प्रति उनका स्नेह विद्वानोंके लिए प्रेरणा बनकर जिनवाणीकी सेवा का निमित्त भी बन रहा है। अभी डेढ वर्ष पूर्व पंडित नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य के महान् ग्रन्थ 'भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा" के चारों भागका पुर्नप्रकाशन कराके तथा लेखकके व्यक्तित्व-कृतित्वपर एक सार्थक गोष्ठी का आयोजन कराके उपाध्यायश्रीने एक दिवंगत विद्वान्के गुणानुवादका अवसर समाज को दिया था। इसी कड़ीमें इस बार 'जैनदर्शन' जैसे मौलिक दार्शनिक ग्रन्थके रचयिता तथा पूर्वाचार्यों द्वारा रचित अनेक न्याय-दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थोंकी टीका संपादन करने वाले और उनपर महत्त्वपूर्ण लम्बी प्रस्तावनायें लिखने वाले पैंतीस वर्ष पूर्व दिवंगत न्यायाचार्य पंडित महेन्द्रकुमारजीके व्यक्तित्व-कृतित्व पर अम्बिकापुरमें एक प्रभावक गोष्ठी पूज्य उपाध्यायश्री की प्रेरणासे पंडितजीके दामाद डॉ. अभयकुमार चौधरी एवं पत्री डॉ. आशा चौधरी, अम्बिकापुरकी ओरसे अति उत्साहपूर्वक आयोजित की गई। १८ अप्रैल ९४ को पूज्य उपाध्याय ज्ञानसागरजी एवं मुनिश्री वैराग्यसागरजी महाराजके सानिध्यमें समारोहका प्रारम्भ प्रातः आठ बजे अंतरंग वार्ताके रूपमें हुआ । मेरे द्वारा मंगलाचरणसे प्रारम्भ इस बैठकमें संगोष्ठीके संयोजक डॉ० कस्तुरचन्द्रजी कासलीवालने गोष्ठीके उददेश्य बताये। आगन्तुक विद्वानोंका पंडितजी के परिजनोंसे परिचय कराया गया। जैन समाजके बारह मान्य विद्वान् तथा स्व. पंडित महेन्द्रकुमारजीके अनुज, दो पुत्र, चार पुत्रियाँ एवं दामाद इस अवसर पर वहाँ उपस्थित थे। वयोवृद्ध विद्वान डा० दरबारीलालजी कोठियाने गोष्ठीके आयोजनपर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इसे देरसे किया जा रहा आवश्यक कार्य बताया। स्थानीय विद्वान् वयोवद्ध कवि श्री बाबलाल 'जलज' ने अपनी एक कविता प्रस्तुत की। पूज्य ज्ञानसागरजी महाराजने अपने उद्बोधनमें दिवंगत विद्वानोंके महत्त्वपूर्ण कार्योंका मल्यांकन करने की प्रेरणा दी। मध्याह्न तीन बजेसे गोष्ठीका उद्घाटन सत्र पं० दरबारीलालजी कोठियाकी अध्यक्षतामें प्रारम्भ हमा । नगरके प्रमुख समाजसेवी अम्बिकापुर राजघरानेके श्री टी० एस० सिंघदेव आयोजनके मख्य अतिथि थे। विशिष्ट अतिथिके रूपमें जिलाधीश श्री गोयल एवं सत्र न्यायाधीश श्री एस० के. जैन मंच पर थे। प्रतिष्ठित नागरिक श्री गंगासागर सिंह, श्री मदन त्रिपाठी एवं श्रीमती अनुराधा शंकर सिन्हा भी अतिथिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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