Book Title: Mahendrakumar Jain Shastri Nyayacharya Smruti Granth
Author(s): Darbarilal Kothiya, Hiralal Shastri
Publisher: Mahendrakumar Jain Nyayacharya Smruti Granth Prakashan Samiti Damoh MP

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Page 12
________________ । प्रकाशकीय राष्ट्र के यशस्वी और मूर्धन्य विद्वान् (स्व०) न्यायाचार्य (डॉ०) पं० महेन्द्रकुमार जी जैन के बहुआयामी कर्मठ जीवन, संघर्षमय जीवन यात्रा के मध्य विकसित अप्रतिम वैदुष्य, अभूतपूर्व श्रुतसेवा, वाङमय प्रणयन प्रभूति सद्गुणों के प्रति कृतज्ञता समर्पण हेतु यह "स्मृति ग्रन्थ" प्रकाशित किया गया है। इसे प्रकाशित कर एतदर्थ गठित “स्मृतिग्रन्थ प्रकाशन समिति" वस्तुतः स्वयं कृतार्थ हुई है । भारतीय मनीषा के साधकों/उपासकों/पाठकों को यदि इस ग्रन्थ में कुछ प्रेरक तत्त्व प्राप्त हों तो वह सबका सब पूज्यवर पंडित जी का मानें और जो भी न्यूनताएँ अनुभव हों उन्हें हमारी अज्ञता एवं असावधानी समझकर हमें सूचित करने की कृपा करें । वस्तुतः इस योजना के प्रमुख सूत्रधार परम पूज्यश्री १०८ उपाध्याय ज्ञानसागर जी मुनि महाराज हैं । पूज्य उपाध्यायश्री आगमनिष्ठ ज्ञान-ध्यान तपोनिष्ठ दुर्द्धर तपस्वी, विद्या व्यसनी, विद्वत् परम्परा के सम्वर्द्धक, परम यशस्वी आध्यात्मिक सन्त हैं । “सत्त्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदें क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् ।" जैसे आप्तवाक्य को प्रतिपल दृष्टि में रखकर अहर्निश साधनारत इन महाव्रती ने जहाँ श्रमण संस्कृति से विमुख हो रहे लाखों सराक (श्रावक) बन्धुओं को प्रेरित कर उनके उद्धार का वह अनुपम कार्य किया है जिसे पूर्व में ऐसी ही प्रवृत्तियों के धनी सरलता की प्रतिमूर्ति परमपूज्य सन्त श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी महाराज ने प्रारंभ किया था, वहीं आर्ष परम्परा की श्रीवृद्धि कर परमपूज्य जैन आचार्यों की वाणी के सार्वजनीन कर्ता अबसे लगभग चार दशक पूर्व (सन् १९५९ में) दिवंगत माननीय न्यायाचार्य डॉ० पं० महेन्द्रकुमार जी के दिव्य योगदान को भारतीय इतिहास के पृष्ठों में अक्षुण्ण बनाने की दृष्टि से एक अभिनव उपक्रम किया । सराकों के उद्धार यात्रा-पथ में पड़ाव था-मध्यप्रदेश के जिला मुख्यालय अम्बिकापुर का | वहाँ के जिनमन्दिर की प्राणप्रतिष्ठा के सन्दर्भ से उपाध्यायश्री की सक्ष्म पारखी दृष्टि से संस्पर्श हुआ अम्बिकापुर के जिला चिकित्सालय में पदस्थ दम्पती (स्व०) पं० जी के तृतीय जामाता डॉ० अभय चौधरी तथा तृतीय सुपुत्री (सौ०) डॉ० आशा चौधरी से | इस डाक्टर दम्पती को प्रेरितकर उपाध्यायश्री ने सन् १९९४ में १८, १९, २० अप्रैल को स्व० पण्डित जी के योगदान पर एक त्रिदिवसीय अखिल भारतीय विद्वत्संगोष्ठी संयोजित कराई । इस संगोष्ठी के संयोजन में (स्व०) पं० जी के लघु जामाता श्री संतोष भारती दगेह तथा कनिष्ठ पुत्री सौ० आभा भारती की र्भ उल्लेखनीय थी। इस संगोष्ठी में भारत के कोने-कोने से समागत मनीषी विद्वानों, साहित्यकारों तथा समाज ने यह अनुभव या कि ऐसे दिव्य ललाम व्यक्तित्व की स्मृति को स्थायित्व प्रदान करने के लिए एक स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित किया जाए । एतदर्थ सम्पादक मण्डल का गठन निम्न भाँति हुआप्रधान सम्पादक डॉ० दरबारीलाल कोठिया, न्यायाचार्य सम्पादक वृन्द पं० हीरालाल कौशल, डॉ० भागचन्द्र जैन “भागेन्दु" डॉ० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल, डॉ० सागरमल जैन, डॉ० राजाराम जैन, डॉ० रतन पहाड़ी, डॉ० फूलचन्द्र प्रेमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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