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(३८) सार (१) यह भी शृंखलामूलक अलंकार है। (२) इसमें ऐसे अनेक पदार्थों का वर्णन होता है, जो क्रम से एक दूसरे से उत्कृष्ट होते हैं।
इस प्रकार इसमें उत्कृष्टता का आरोह पाया जाता है। (३) यह आरोह या तो तत्तत् पदार्थों के किसी धर्म का होता है या स्वयं पदार्थों का ही। (४) सार न केवल उत्कृष्ट वस्तुओं का ही होता है, वह अपकृष्टताविषयक भी हो सकता है। इन्हें ही दीक्षित ने क्रमशः इलाध्यगुणोत्कर्षसार तथा अश्लाघ्यगुणोत्कर्षसार कहा है।
(३९) पर्याय प्रथम पर्याय:
(२) कवि एक ही पदार्थ का अनेक स्थानों पर क्रमशः वर्णन करता है। (२) यह वर्णन स्वयं चमत्कारिक हो । (३) यह क्रम मारोहरूप या अवरोहरूप कैसा भी हो सकता है। (४) पर्याय तभी होगा जब उक्त वस्तु अपने प्रथम आश्रय को सर्वथा छोड़कर दूसरे पर
स्थित हो, यदि वह एक काल में अनेक जगह होगी तो पर्याय न होगा। द्वितीय पर्यायः(१) जहाँ एक ही आधार पर अनेक आधेयों का वर्णन किया जाय, वहाँ द्वितीय पर्याय
होता है। (२) ये अनेक आधेय पर्याय से (क्रमशः) आधार पर रहें, एक साथ नहीं। (३) पर्याय तभी होगा जब वर्णन में चमत्कार हो, 'पुरा यत्र घटस्तत्र अधुना पट: में पर्याय अलंकार नहीं है।
(४०) परिवृत्ति (१) परिवृत्ति में दो पदार्थ के भिन्न भिन्न धर्मों का परस्पर आदान-प्रदान वर्णित किया
जाता है। (२) यह आदान-प्रदान केवल कविकल्पित होता है, वास्तविक नहीं। (३) यह आदान-प्रदान कई तरह का होता है :
(क) समान सत् वस्तुओं का परस्पर आदानप्रदान । (ख) समान असत् वस्तुओं का परस्पर आदानप्रदान । (ग) न्यून वस्तु का अधिक वस्तु के साथ आदानप्रदान ।
(घ) अधिक वस्तु का न्यून वस्तु के साथ आदानप्रदान । (४) इम भेदों में प्रथम दो भेद समपरिवृत्ति है, द्वितीय दो भेद विषमपरिवृत्ति । अलंकार ___ का विशेष चमत्कार विषमपरिवृत्ति में पाया जाता है।
(४१) परिसंख्या (१) इसमें कवि एक पदार्थ का निराकरण कर अन्य पदार्थ का वर्णन करता है। (२) अलंकार का वास्तविक चमत्कार उस निराकरण या निषेध में है।