Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 338
________________ सामान्यालङ्कार २४२ मीलितालंकारे एकेनापरस्य भिन्नस्वरूपानवभासरूपं मीलनं क्रियते, सामान्यालंकारे तु भिन्नस्वरूपावभासेऽपि व्यावर्तनविशेषो नोपलक्ष्यत इति भेदः। मीलितोदाहरणे हि सहजारुण्याञ्चरणादेर्वस्त्वन्तरत्वेनागन्तुकं यावकारुण्यं न भासते । सामान्योदाहरणे तु पद्मानां मुखानां च व्यक्त्यन्तरतया भानमस्त्येव | यथा रावणदेहस्य तत्प्रतिबिम्बानां च, किंत्विदं पद्ममिदं मुखमयं बिम्बोऽयं प्रतिबिम्ब इति विशेषः परं नोपलक्ष्यते । अत एव भेदतिरोधानान्मीलितं, तदतिरोधानेऽपि साम्येन व्यावर्तकानवभासे सामान्यम्, इत्युभयोरप्यन्व थता । केचित्तु वस्तुद्वयस्य लक्षणसाम्यात्तयोः केनचिदलीयसा तदन्यस्य स्व. रूपतिरोधाने मीलितं, स्वरूपप्रतीतावपि गुणसाम्याभेदतिरोधाने सामान्यम् । एवं च अपाङ्गतरले दृशौ तरलवक्रवर्णा गिरो विलासभरमन्थरा गतिरतीव कान्तं मुखम् । इति स्फुरितमङ्गके मृगहशां स्वतो लीलया तदत्र न मदोदयः कृतपदोऽपि संलक्ष्यते ॥ इस संबन्ध में मीलित तथा सामान्य के भेद का निर्देश करना आवश्यक हो जाता है। मीलित अलङ्कार में एक वस्तु दृसरी वस्तु से इतनी घुलमिल जाती है कि उनके भिन्न स्वरूप का आभास भी लुप्त हो जाता है। सामान्यालङ्कार में ठीक यही बात नहीं होती, यहाँ दो या अनेक वस्तुओं के भिन्न स्वरूप का आभास होता है (वह लुप्त नहीं होता,) किंतु उनको एक दूसरे भिन्न सिद्ध करने वाला व्यावर्तक धर्म परिलक्षित नहीं होता। इस भेद को और अधिक स्पष्ट करने के लिए दोनों के उदाहरणों में क्या अन्तर है, इसे बताते हैं। मीलित के उदाहरण में हम देखते हैं कि चरणादि की स्वाभाविक अरुणिमा के कारण अन्य वस्तु के रूप में आगन्तुक महावर की अरुणिमा परिलक्षित नहीं होती, अतः यहाँ भिन्न स्वरूप का आभास नहीं होता। सामान्य के उदाहरण में कमल तथा मुख का अलग अलग व्यक्ति के रूप भिन्न स्वरूप का आभास तो होता ही है, जैसे रावण के देह तथा उसके प्रतिबिंबों का अलग अलग व्यक्ति भान होता ही है, किंतु यह कमल है, यह मुख है, यह रावण का देह (बिंब) है, यह प्रतिबिंब है, इस प्रकार विशेष भान नहीं होता। इसलिए जहाँ दो वस्तुओं के सादृश्य के कारण उनके सम्बद्ध होने पर उनका भेद छिप जाय वहाँ मीलित होता है। जहाँ यह भेद न छिपे, किन्तु साम्य के कारण उनको अलग अलग करने वाला व्यावर्तक धर्म परिलक्षित न हो, वहाँ सामान्य होता है, इस प्रकार दोनों का नामकरण भी सार्थक तथा अपने लक्षण के अनुकूल है। कुछ लोगों के मतानुसार मीलित तथा सामान्य में यह भेद है कि जहाँ दो वस्तुओं में समान लक्षण होने से उन में कोई बलवान् वस्तु निर्बल वस्तु के स्वरूप. को तिरोहित कर दे, वहाँ मीलित अलङ्कार होता है, तथा जहाँ दो वस्तुओं की स्वरूपप्रतीति तो हो, किंतु गुणसाम्य के कारण उनका भेद तिरोहित हो जाय, वहाँ सामान्य अलकार होता है। इस मत के मानने पर निम्न पद्य में मीलित अलकार होगा। ___ 'जब इस मृगनयनी के अंगप्रत्यंग में स्वयं ही लीला का स्फुरण हो रहा है, क्योंकि इस की आँखें अत्यधिक चंचल है, बोली मीठी तथा वक्रिमा युक्त है, गति विलास के भार १६ कुव०

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