Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 339
________________ २४२ कुवलयानन्दः इत्यत्र मीलितालंकारः । अत्र हि शक्तारल्यादीनां नारीवपुषः सहजधर्मत्वान्मदोदयकायेत्वाश्च तदुभयसाधारण्यादुत्कृष्टतारल्यादियोगिना वपुषा मदोदयस्य स्वरूपमेव तिरोधीयते । लिङ्गसाधारण्येन तज्ज्ञानोपायाभावात् । 'मल्लिकामाल. भारिण्यः' इत्यादिषु तु सामान्यालकार इत्याहुः। तन्मते 'पद्माकरप्रविष्टानां' इत्यादौ भेदाध्यवसायेऽपि व्यावर्तकास्फुरणेनालङ्कारान्तरेण भाव्यं, सामान्या. लहारावान्तरभेदेन वा । पूर्वस्मिन्मते स्वरूपतिरोधानेऽलङ्कारान्तरेण भाव्यं मीलितावान्तरभेदेन वा ॥ १४७॥ , से मन्थर है तथा मुख मनोहर लग रहा है, तब भलामदपान की स्थिति का पता ही कैसे लग सकता है। ___ यहाँ नियों के शरीर में नेत्रधाचल्यादि की स्थिति उसका सहज धर्म है, और उनमें मद का सबार करने वाली है, इन दोनों समान गुणों के कारण रमणी के तारल्यादि से युक्त अङ्गों के द्वारा मदपान का प्रभाव स्वतः तिरोहित हो जाता है। क्योंकि समानधर्म (लिंग) के होने कारण मदोदय के ज्ञान का कोई उपाय नहीं है । 'अपाङ्गतरले हशौ' इत्यादि में मीलित अलकार मानने वाले आलङ्कारिक (मम्मटादि) अप्पयदीक्षित के द्वारा मीलित के प्रसङ्ग में उदाहृत 'मल्लिकामालधारिण्यः पद्य में सामान्य अलङ्कार मानेंगे। उनके मत से 'पनाकरप्रविष्टानां' इत्यादि उदाहरण में भेद के लुप्त होने पर भी कोई व्यावर्तक धर्म का पता नहीं चलता, अतः यह सामान्य से भिन्न कोई दूसरा अलङ्कार है, अथवा यह सामान्य का ही दूसरा भेद है। कारिका वाला (चन्द्रालोककार जयदेव तथा अप्पय दीक्षित को भी अभीष्ट) पूर्व मत इससे भिन्न है, इनके मत में 'अपाङ्गतरले दृशौ' वाले उदाहरण में 'मीलितं यदि सादृश्यात्' वाली परिभाषा ठीक नहीं बैठती, अतः वहाँ या तो मीलित से भिन्न कोई दूसरा अलङ्कार होगा, या फिर वहाँ मीलित का दूसरा भेद मानना होगा। भाव यह है, मीलित तथा सामान्य के विषय में आलङ्कारिकों के दो दल हैं। कुछ आलङ्कारिक (मम्मटादि) 'अपाङ्गतरले' आदि पद्य में मीलित अलङ्कार मानते हैं, 'मल्लिकामालधारिण्यः' में सामान्य; दूसरे अलङ्कारिक (जयदेवादि) 'अपाङ्गतरले' आदि में सामान्य मानते हैं, 'मल्लिकामालधारिण्यः' में मीलित । टिप्पणी-इन दोनों मतों का स्पष्ट भेद यह है कि प्रथम मतानुयायी जहाँ दो वस्तुओं के स्वरूप शान होने पर भी सादृश्य के कारण भेद की अप्रतीति हो, वहाँ मीलित मानते हैं, जब कि द्वितीय मतानुयायी केवल सादृश्य के कारण भेद की अप्रतीति, इतने भर को मीलित का लक्षण मानते हैं । वैषनाथ ने चन्द्रिका में इस भेद को स्पष्ट किया है: स्वरूपतो ज्ञायमाने सादृश्याभेदाग्रहणं मीलितमित्यङ्गीकारे प्रथमः पक्षः। सारयादभेदाग्रहणमित्येतावन्मात्रमीलितलक्षणाङ्गीकारे द्वितीय इति भावः॥ (पृ० १६५) प्रथम मत काव्यप्रकाशकार मम्मटाचार्य का है। अप्पयदीक्षित ने उक्त मत का संकेत करते समय मम्मट के ही मत का उल्लेख किया है तथा उन्हीं का उदाहरण दिया है। मम्मट का मीलित का लक्षण यह है : समेन छक्मणा वस्तु वस्तुना यन्निगूयते । निजेनागन्तुना वापि तन्मीलितमपि स्मृतम् ॥ (१०.१३०)

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