Book Title: Kesariyaji Tirth Ka Itihas
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Sadgun Prasarak Mitra Mandal

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Page 8
________________ प्रस्तावना. इतिहास लिखने में शिलालेख-प्रशस्ति-ताम्रपत्र एवं पत्र लेखन यही विशेष सहायक होते हैं, और इतिहास का प्रकाशन करनेवाले एसे ही प्रमाणों के सम्पादन में परिश्रम किया करते हैं । तलाश करने से जैसा साहित्य प्राप्त कर पाते हैं वैसा ही पाठकों के सामने रखते हैं, और अगर वह प्रमाणिक होता है तो जनता उस पर विश्वास करती है । इस के सिवाय प्राचीन काल से प्रचलित विधि विधान कब्जा व अमल (भुगत भोग) यह भी युक्ति पुरःसर बताये जाय तो हक्क साबित करने में सहायक होते हैं । हमने इस पुस्तक में यथाशक्ति प्रयत्न से जो साहित्य संप्राप्त हुवा उस के आधार पर बयान किया है। और इस इतिहास को १० प्रकरण में विभक्त कर जनता के सामने रखते हैं। ___ मन्दिर प्रकरण में मन्दिर बनवाने का समय व किस तरिके पर बनवाया गया और एसे मन्दिर किस सम्प्रदाय में बने हुवे हैं वगैराह बतलाया है सो पढने से पाठकों को पता चलेगा कि दर असल क्या बात है। प्रतिमा प्रकरण में स्पष्टीकरण करते हमने जो लेख बताये हैं उन में सब से पुराना लेख सम्वत् १४३१ का है जो पृष्ठ ५ पर छपा है । और शिलालेखों का बयान करते श्रीयुत् ओझाजी साहब सब से पुराना लेख देवकुलिकाओं के वर्णन में सम्वत् १६११ का बताते हैं। इस के सिवाय दिगम्बर जैन डिरेक्टरी में दिगम्बर प्रतिमाओं के प्रतिष्ठा का जिकर करते सम्वत् १७३४ से पुराना और संवत् १७७६ के बाद का लेख कोई नहीं बताया गया

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