Book Title: Kalpasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स श्री कल्पसूत्र हिन्दी प्रथम व्याख्यान अनुवाद स 11111 प्रथम व्याख्यान मंगलाचरणपरम कल्याण के करने वाले श्री जगदीश्वर अरिहंत प्रभु को प्रणाम करके मैं बालबुद्धिवालों को उपकार करने वाली ऐसी सुबोधिका नाम की कल्पसूत्र की टीका करता हूं 11। इस कल्पसूत्र पर निपुण बुद्धिवाले पुरुषों के लिए यद्यपि बहुतसी टीकायें हैं तथापि अल्पबुद्धिवाले मनुष्यों को बोध प्राप्त हो इस हेतु से यह टीका करने में मेरा प्रयत्न सफल है ।2। यद्यपि सूर्य की किरणें सब मनुष्यों को वस्तु का बोध करने वाली होती हैं तथापि भोरे में रहे हुए मनुष्यों को तो तत्काल दीपिका ही उपकार करती है 13। इस टीका में विशेष अर्थ नहीं किया, युक्तियां नहीं बतलाई और पद्य पाण्डित्य भी नहीं दिखलाया गया है परन्तु सिर्फ * बालबुद्धि अभ्यासियों को बोध करने वाली अर्थ व्याख्या ही की है 14। यद्यपि मैं अल्प बुद्धि वाला होकर यह टीका रचता हूं तथापि सत्पुरुषों का उपहासपात्र नहीं बनूंगा क्योंकि उन्हीं सत्पुरूषों का यह उपदेश है कि सब मनुष्यों को शुभ कार्य में यथाशक्ति प्रयत्न करना चाहिये ।5। पूर्व काल में नवकल्प विहार करने के क्रम से प्राप्त हुए योग्य क्षेत्र में और आजकल परम्परा से गुरू की आज्ञा वाले क्षेत्र में चातुर्मास रहे हुए साधु कल्याण के निमित्त आनन्दपुर में सभा समक्ष वांचे बाद संघ के समक्ष For Private and Personal Use Only

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