Book Title: Kalpasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh

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Page 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री कल्पसूत्र % प्रथम हिन्दी व्याख्यान अनुवाद |12|| % 9 उन्हें अचेलक कैसे कहा जा सकता है ? इस का समाधान यह है कि जो जीर्ण होता है वह कम होने के कारण वस्त्र प रहित ही कहा जाता है । यह सब लोगों में प्रसिद्ध ही है । जैसे कोई मनुष्य एक लंगोटी पहन कर नदी उतरा हो तो वह कहता है कि मैं नग्न होकर नदी उतरा हूँ । ऐसे ही वस्त्र होने पर भी लोग दर्जी और धोबी को कहते है कि भाई ! हमें जल्दी वस्त्र दो, हम नग्न फिरते हैं । इसी प्रकार साधुओं को वस्त्र होने पर भी अचेलक समझ लेना योग्य है । * यह प्रथम आचार हुआ। 2 औद्देशिक कल्पउद्देसिअ-औदेशिक कल्प अर्थात् आधाकर्मी । साधु के निमित्त अशन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र और उपाश्रय आदि को बनाया हो वह प्रथम और अन्तिम तीर्थकर के तीर्थ में एक साधु को, एक साधु के समुदाय को, अथवा एक उपाश्रय को आश्रित कर के बनाया गया हो वह सब साधुओं को नहीं कल्पता । परन्तु बाईस तीर्थंकरों के तीर्थ में जिस साधु को उदेश कर के बनाया गया हो उसको ही नहीं प्रकल्पता दूसरों को कल्पता है । यह दूसरा औदेशिक आचार है । 3 शय्यातर कल्पतीसरा कल्प शय्यातर-जो उपाश्रय का स्वामी हो सो शय्यातर, उसका पिण्ड अर्थात् 1 अशन, 2 पान %到都 For Private and Personal Use Only

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