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दूर और पास
अवकाश नहीं है । वह कल्पना हमें बताएगी कि दूसरेमें भी अहंकार हो सकता है, और है, और उस अहंकारका ख़याल रखकर चलना ही ठीक होगा । वह कल्पना हमें सबके अलग अलग स्थान समझने में मदद देगी और सुझायगी कि समस्तके केन्द्र हम नहीं हैं जैसा कि हम आसानीसे समझ लिया करते हैं ।
वैसी तटस्थताकी दूरी जगत् और जगत्की वस्तुओं के साथ स्थापित करनेके बाद आवश्यक है कि हम उनसे भावनाकी निकटता भी अनुभव करें। दूरी तो है ही, पर निकटता और भी घनिष्ठ भावसे आवश्यक है । वैसी निकटताका बोध जीवनमे नही है तो जीवनमें कुछ रस भी नहीं है ।
जिस शक्तिसे यह हो, उसका नाम है भावना | यह भावना प्रभेद - मूलक है । यह दोको एक करती है, यह दूरीको नष्ट करती है । 'नष्ट करती है' का आशय यह कि उसके फासले को यह रससे भर देती है ।
जब पहले पहल खुर्दबीनमेंसे झाँक कर देखनेका अवसर हुआ था, तो आश्चर्यमे रह जाना पड़ा था। बाहर कुछ भी नहीं दीखता था, एक नन्हा, — बहुत ही नन्हा सा पत्तेका खण्ड डैस्कपर रक्खा था । वह है, इसमें भी शक हो सकता था। उसकी हस्ती कितनी थी । साँस उसपर पड़े तो बेचारा उड़कर कहाँ चला जाय, पता भी न चले । लेकिन, खुर्दबीनमेसे जब देखता हूँ तो देखता हूँ कि क्या. कुछ वहाँ नहीं है ! जो आश्चर्यकारक है, जो महान् है, वह सभी कुछ बहॉपर भी है । एक दुनियाकी दुनिया उस पत्तेके खंडके भीतर समाई है ! वह पत्तेका ट्रक क्या कभी पूरी तरह जाना जा सकेगा ? उसमें
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