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निरा अ-बुद्धिवाद
यथार्थता समझ, लड़की, और मूर्खता छोड़ | ऐसा हमने अब तक नहीं किया और अचरज यह है कि ऐसा न करनेके लिए कभी अपनेको मूर्ख भी हमने नहीं माना। इस खेलको हमने प्रसन्नता पूर्वक खेल लिया है और कभी यह नहीं सोचा है कि मूर्खता ग़लत चीज़ है और हमे मुन्नीका उससे उद्धार करना ही चाहिए ।
हमें सन्देह है कि मुन्नीको यदि हम अपनी बुद्धिमत्ता देने लग जायँ तो वह उसे नहीं लेगी। इतना ही नहीं, वरन् वह उस हमारी बुद्धिमत्ताको मूर्खता समझेगी और अपनी मूर्खताको स्पष्ट रूपमें तर्कशुद्ध ज्ञान जानेगी ।
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हम कैसे जानते है कि मुन्नी ग़लत है ? जब वह कहती है कि वह नहीं है ' तब भी वह ग़लत कहाँ कहती है; क्योकि जैसा जानती है वैसा ही तो कहती है । वह ( उस समय ) जानती ही यह है कि 'वह नहीं है । '
वास्तव वास्तविकता तत्सम्बन्धी हमारी धारणासे भिन्न क्या वस्तु
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है ? भिन्न होकर वह है भी या नहीं ? यह अभी निर्णय होने में नहीं आया । न कभी आयेगा । अकाट्य - रूपमे हम यह कह सकते है कि सम्पूर्ण सत्य मानव के लिए चिर-प्राप्य, अतः चिर-शोध्य है । वह सत्य क्या मनुष्यसे बाहर भी व्याप्त नहीं है ? जो बाहर भी है वह मनुष्यके भीतर ही कैसे समायेगा ! उस सर्वव्यापी सत्यकी मानव-निर्मित धारणाएँ ही मानवीय ज्ञान - विज्ञान है, वे स्वयंमें सत्य नहीं है । अपने सब ज्ञानके मूलमे 'हम' है । वह ज्ञान सत्य है तो । बस हमारा होकर है । हमारा नहीं, तब वह हुआ न हुआ एक-सा है । हर सत्यको अपनी सत्ताके लिए हमपर इस निमित्त निर्भर रहना
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