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सत्त्व
५. मूलोत्तर प्रकृति सत्त्व स्थानोंकी ओघ प्ररूपणा ,
संकेत-ब०:बद्यमान आयुष्क; भु-भुज्यमान आयुष्क ।
अबद्घायुष्कके भंग स्थान स्थान का स्वामी
असत्वको प्रकृतियाँ
. बदायुष्कके भंग
अबद्घायुष्कके भंग
कुल सत्त्व योग्य
असत्त्व सत्त्व प्रकृति प्रति स्थान भंग
प्रति स्थान
विवरण
विवरण
भुज्यमान मनुष्य
अन्यतम भुज्यमानायु केवल १ भुज्यमानायु अन्यतम ..
मिथ्यादृष्टि-(गो. क/३६६-३७१/५२२-५३५)। कुल स्थान १८ ( वद्धा. १०, अन्नद्धा. ८): कुल भंग%५० (बद्धा. २६, अबदा. २४) तीर्थयुक्त नरकायु बद्ध मनुष्य | तियंच, देवायु
१४८२१४६ १ भुज्यमान मनुष्य, बद्ध्यमान नरक नरक जानेके सम्मुख तीर्थ. रहित कोई भी जीव भु. ब. बिना २ आयु. तीर्थ -३ १४८/३ /१४५ ( देखो आयु कर्मके सत्त्व स्थान) तियं.,देवायु, आ. चतु. . -६
मनुष्य नरकायु सहित कोई २ आयु, आ. चतु., तीर्थ . = १४८७ ( देखो आयु कर्मके सत्व स्थान) उपरोक्त ७+सम्यक्त्व
.. + सम्यक्त्व, मिश्र देवद्विककी उद्वेलना वाला चतु- - उपरोक्त हव देव द्विक -२ |
भुज्यमान तियंच, बद्धयमान मनुष्य अथवा भु. ति.. रिन्द्रिय
ब.ति.. भु. मनुष्य.. १.ति. नरक द्विक, वै. द्वि, देव द्वि., की । उपरोक्त ११+नरक द्विक, देवद्विक, उद्वेलना वाला चतुरिन्द्रिय । वैक्रियक द्विक')
- १३९ ६ १३१ १ भुज्यमान तिर्यच, वध्यमान मनुष्य | उच्चगोत्रके उद्वेलनवाला तेज,
भुज्यमान तिर्यंच बध्यमान तियंच वात कायिक | मनुष्यद्विककी उद्वेलनाबाला उप- | उपरोक्त १६ व मनुष्य द्विक १२६२ १२० १ रोक्त तेज बात कायिक
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मनुष्य या तिर्यंचायु पुनरुक्त
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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अन्यतम भुज्यमानायु
सासादन-(गो. क. ३७२-३७५/५३६-५३६) कुल स्थान,-६ (बद्धा, २, अबद्धा. ४); कुल भंग १८ (बद्धा. ६; अबद्धा. १२)
भु. ब. बिना २ आयु,तीर्थ.,आ. चतु., १४८/७/१४६ ५। (देखो आयु कर्मके सत्त्व स्थान) आ. चतु के बन्धवाले किसीको भु. ब. बिना २ आयु, तीर्थ -३१४८३ १४५ १ सासादनकी प्राप्ति होय।
| नं. १ को ७~-ब. आयु -११४५ १ १४४ x १ नं.२ की ३-
-१:१४५ १ १४४)
अन्यतम भुज्यमान
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अन्यतम भुज्यमानायु
morro
मिश्र (गो.क./३७२-३७५५३६-५३६ ) कुल स्थान = (बद्वा.४; अबद्धा ४); कुल भंग-३६ (बद्वा. २०; अबद्धा. १६) भु. ब. बिना २ आयु, तीर्थ
| (देखो आयु कर्मके सत्व स्थान ) उपरोक्त ३+ अनन्ता.४
" + आ. चतु. उपरोक्त ७+ अनन्ता.४
१४१ ४ १३७५
occcc
३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएं
२०
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