Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon Author(s): Nathmalmuni Publisher: Adarsh Sahitya Sangh View full book textPage 9
________________ आमुख सत्य स्वयं ढंकाहुआ होता है। उसमे भी एक तो वह तत्त्व हो और दूसरे आध्यात्मिक । फिर सहज दर्शन कैसे मिले ? आत्माकी अन्दरकी तहोमे पहुंचकर ही विरला व्यक्ति उसे देख पाता है। आचार्य भिक्षुकी सूक्ष्म और पारदर्शी दृष्टिने देखा, वह सत्य महान् आध्यात्मिक सत्य है । उसतक पहुंचना कठिन है, इसमे कोई दो मत नहीं। स्वयं आचार्य भिक्षुने स्वानुभूत सत्यको अपनी स्फुट वाणी द्वारा रखा । उनके उत्तरवर्ती आचार्यों, शिष्य-प्रशिष्योने विविध युक्तियो द्वारा उसे बुद्धिगम्य बनाया। किन्तु युग बदलता है, भापा वदलजाती है, समझनेकी स्थिति वदलजाती है। सत्यके नहीं बदलने पर भी स्थितिया बदलती है, तब उस (सत्य) तक पहुंचनेकी पद्धतिया भी वदलना चाहती है और उन्हे वदलना भी चाहिए।Page Navigation
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