Book Title: Jain Shastra sammat Drushtikon
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 40
________________ [ २४ ] स्वाभाविक रूपसे आवश्यक है। इसी कारण अहिंसाका पुजारी सदैव प्रार्थना करता है कि उसे शरीरके बन्धनसे मुक्ति प्राप्त हो।' -सी० एफ एन्डूज, - महात्मा गाधीके विचार ५११३८ "यह तो कहीं नहीं लिखा है कि अहिंसावादी किसी आदमी को मारडाले। उसका रास्ता तो सीधा है। एक को बचानेके लिए वह दूसरेकी हत्या नहीं कर सकता। उसका पुरुपार्थ और कर्तव्य तो सिर्फ विनम्रताके साथ समझाने-बुझानेमे है।" . -हिन्द-स्वराज्य पृष्ठ ७९ "अहिंसाके माने सूक्ष्म जन्तुओंसे लेकर मनुष्य तक सभी जीवोके प्रति सम-भाव । पूर्ण अहिंसा सम्पूर्ण जीवधारियोंके . प्रति दुर्भावनाका सम्पूर्ण अभाव है। इसलिए वह मानवेतर प्राणियों, यहातक कि विपधर कीड़ो और हिंसक जानवरोका भी आलिङ्गन कर सकती है।" -मगल-प्रभात पृष्ठ ८१ “एकवार महात्मा गांधीसे प्रश्न कियागया--कोई मनुष्य या मनुष्योंका समुदाय लोगोंके बड़े भागको कष्ट पहुंचारहा हो, दूसरी तरहसे उसका निवारण न होता हो तव उसका नाश करें तो यह अनिवार्य समझकर अहिंसामे खपेगा या नहीं ? महात्माजीने उत्तर दिया-अहिंसाकी जो मैने व्याख्या दी है. उसमे ऊपरके तरीके पर मनुष्य-वधका समावेश ही नहीं हो सकता। किसान जो अनिवार्य नाश करता है, उसे मैने कभी

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