Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 707
________________ पञ्चम अध्याय । ६९३ विज्ञान - ऊपर के कोष्ठ से यह समझना चाहिये कि जिस दिन जो वार हो उस दिन उसी वार के नीचे लिखा हुआ चौघड़िया सूर्योदय के समय में बैठता है वह पहिला समझना चाहिये, पीछे उस के उतरने के बाद उस वार से छठे वार का चौघड़िया बैठता है वह दूसरा समझना चाहिये, पीछे उस के उतरने के बाद उस ( छटे ) वार से छठे वार का चौघड़िया बैठता है, यही क्रम आगे भी समझना चाहिये, जैसे देखो ! रविवार के दिन पहिला उद्वेग नामक चौघड़िया है उस के उतरने के पीछे रवि से छठे शुक्र का चल नामक चौघड़िया बैठता है, इसी अनुक्रम से प्रत्येक वार के दिन भर का चौघड़िया जान लेना चाहिये, एक चौघड़िया डेढ़ घण्टे तक रहता है अर्थात् सवेरे के छः बजे से ले कर शाम के छः बजे तक बारह घण्टे में आठ चौघडिये व्यतीत होते हैं, इन में से—अमृत; शुभ; लाभ और चल; ये चार चौघड़िये उत्तम तथा उद्वेग; रोग और काल; ये तीन चौघड़िये निकृष्ट हैं, इस लिये अच्छे चौघड़ियों में शुभ काम को करना चाहिये । रवि शुभ अमृत चल रोग काल लाभ उद्वेग सोम चल रोग काल लाभ उद्वेग रात्रि का चौघड़िया । मङ्गल काल लाभ शुभ अमृत चल उद्वेग बुध उद्वेग शुभ अमृत चल रोग काल लाभ उद्वेग गुरु अमृत चल रोग काल शुभ अमृत चल रोग शुभ शुभ काल अमृत विज्ञान - इस कोष्ठ में ऊपर से केवल इतना ही अन्तर है कि एक वार के पहिले चौघड़िये के उतरने के पीछे उस वार से पाँचवें वार का दूसरा चौघड़िया बैठता है, शेष सब विषय ऊपर लिखे अनुसार ही है । छोटी बडी पनोती तथा उस के पाये का वर्णन । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat शुक्र रोग काल लाभ लाभ उद्वेग उद्वेग शुभ अमृत शनि लाभ उद्वेग चल रोग शुभ अमृत चल रोग काल लाभ प्रत्येक मनुष्य को अपनी जन्मराशि से जिस समय चौथा वा आठवां शनि हो उस समय से २॥ वर्ष तक की छोटी पनोती जाननी चाहिये, बारहवाँ शनि बैठे ( लगे ) तब से लेकर दूसरे शनि के उतरने तक बराबर ७॥ वर्ष की बड़ी पनोती होती है, उस में से बारहवें शनि के होने तक २॥ वर्ष की पनोती मस्तक पर समझनी चाहिये, पहिले शनिके होने तक २ ॥ वर्ष की पनोती छाती पर जाननी चाहिये तथा दूसरे शनि के होने तक २॥ वर्ष की पनोती पैरों पर जाननी चाहिये । www.umaragyanbhandar.com

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