Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 747
________________ पञ्चम अध्याय । ७३३ जिस काम को तू विचारता है वह सब सिद्ध होगा, इस बात का यह पुरावा है कि-तू स्वप्न में वृक्ष को देखेगा। - ४२४-हे पूछनेवाले! तेरे मन में बड़ी भारी चिन्ता है, तुझे अर्थ का लाभ होगा, तेरी जीत होगी, सजन की मुलाकात होगी, सब काम सफल होंगे तथा चित्त में आनन्द होगा। ४३१-हे पूछनेवाले ! यह शकुन दीर्घायुकारक (बड़ी उम्र का करनेवाला) है, तुझे दूसरे ठिकाने की चिन्ता है, तू भाई बन्धुओं के भागमन को चाहता है, तू अपने मन में जिस काम को विचारता है वह सब सिद्ध होगा, अब तेरे दुःख का नाश हो गया है परन्तु तुझे देशान्तर ( दूसरे देश) में जाने से धन का लाभ होगा और कुशल क्षेम से आना होगा, इस बात का यह पुरवा है कितू स्वप्न में पहाड़ पर चढ़ना तथा मकान आदि को देखेगा, अथवा तेरे पैर पर पचफोड़े का चिह्न ( निशान) है। ४३२-हे पूछनेवाले ! अब तेरे सब दुःख समाप्त हुए तथा तुझे कल्याण प्राप्त हुआ तुझे ठिकाने की चिन्ता है तथा तू किसी की मुलाकत को चाहता है सो जो कुछ काम तू ने विचारा है वह सब होगा, देशान्तर (दूसरे देश) में जाने से धन की प्राप्ति होगी तथा वहाँ से कुशल क्षेम से तू आवेगा। ४३३-हे पूछनेवाले ! जब तेरे पास पहिले धन था तब तो मित्र पुत्र और भाई आदि सब लोग तेरा हुक्म मानते थे, परन्तु खोटे कर्म के प्रभाव से अब वह सब धन नष्ट हो गया है, खैर! तू चिन्ता मत कर, फिर तेरे पास धन होगा, मन खुश होगा तथा मन में विचारे हुए सब काम सिद्ध होंगे। ४३४-हे पूछनेवाले ! जिस का तू मरना विचारता है वह अभी नहीं होगा (वह अभी नहीं मरेगा) और तूं ने जो यह विचार किया है कि-यह मेरा काम कब होगा, सो वह तेरा काम कुछ दिनों के बाद होगा। ४४१-हे पूछनेवाले ! तेरे भाई का नाश हुआ है तथा तेरे केश; पीड़ा और कष्ट के बहुत दिन बीत गये हैं। अब तेरे ग्रह की पीड़ा केवल पाँच पक्ष वा पांच दिन की है, जिस काम को तू विचारता है उस में तुझे फायदा नहीं है, इस लिये दूसरे काम को विचार, उस में तुझे कुछ फल मिलेगा। ४४२-हे पूछनेवाले! जिस काम का तू प्रारम्भ करता है वह काम यन करने पर भी सिद्ध होता हुआ नहीं दीखता है, अर्थात् इस शकुन से इस काम का सिद्ध होना प्रतीत नहीं होता है इस लिये तू दूसरा काम कर । ४४३-हे पूछनेवाले! जिस काम का तू प्रारम्भ करता है वह काम सिद्ध नहीं होगा, तू पराये वास्ते (दूसरे के लिये) जो अपने प्राण देता है वह सब तेरा उपाय व्यर्थ है इस लिये तू दूसरी बात का विचार कर; उस में सिद्धि होगी। ६२ जै० सं० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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