Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji

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Page 715
________________ पञ्चम अध्याय । इष्टकाल विरचन। यदि सूर्योदयकाल से दो पहर के भीतर तक इष्टकाल बनाना हो तो सूर्योदयकाल को इष्टसमय के घण्टों और मिनटों में से घटा कर दण्ड और पल कर लो तो मध्याह्न के भीतर तक का इष्टकाल बन जावेगा, जैसे-कल्पना करो कि-सूर्योदय काल ६ बज के ७ मिनट तथा ४९ सेकिण्ड पर है तो इष्टसमय १० बज के ११ मिनट तथा ३७ सेकिण्ड पर हुआ, क्योंकि-अन्तर करने से ४।३।४८ के घटी और पल आदि १०८३० हुए, बस यही इष्टकाल हुआ, इसी प्रकार मध्याह्न के ऊपर जितने घण्टे आदि हुए हों उन की घटी आदि को दिनार्ध में जोड़ देने से दो पहर के ऊपर का इष्टकाल सूर्योदय से बन जावेगा। सूर्यास्त के घण्टे और मिनट के उपरान्त जितने घण्टे आदि व्यतीत हुए हों उन की घटी और पल आदि को दिनमान में जोड़ देने से राज्यर्ध तक का इष्टकाल बन जावेगा। राज्य के उपरान्त जितने घण्टे और मिनट हुए हों उन के दण्ड और पलों को रायर्ध में जोड़ देने से सूर्योदय तक का इष्ट बन जावेगा। । दूसरी विधि-सूर्योदय के उपरान्त तथा दो प्रहर के भीतर की घटी और पलों को दिनार्ध में घटा देने से इष्ट बन जाता है, अथवा सूर्योदय से लेकर जितना समय व्यतीत हुआ हो उस की घटी और पल बना कर मध्याह्नोत्तर तथा अर्ध रात्रि के भीतर तक का जितना समय हो उसे दिनार्ध में जोड़ देने से मध्य रात्रि तक का इष्ट बन जावेगा, अथवा सूर्योदय के अनन्तर जितने घण्टे व्यतीत हुए हों उन की घटी और पल बना कर उन्हें ६० में से घटा देने से इष्ट बन जाता है, दिनार्ध के ऊपर के जितने घण्टे व्यतीत हुए हों उन की घटी और पल बना कर उन्हें राज्य में घटा देने से राज्य के भीतर का इष्टकाल बन जाता है । लग्न जानने की रीति । जिस समय का लग्न बनाना हो उस समय का प्रथम तो ऊपर लिखी हुई क्रिया से इष्ट बनाओ, फिर-उस दिन की वर्तमान संक्रान्ति के जितने अंश गये हों उन को पञ्चाङ्ग में देख कर लग्नसारणी में उन्हीं अंशों की पति में उस सङ्क्रान्तिवाले कोष्ठ की पति के बराबर (सामने ) जो कोष्ठ हो उस कोष्ठ के अङ्कों को इष्ट में जोड़ दो और उस सारणी में फिर देखो जहाँ तुम्हारे जोड़े हुए अंक मिले वही लग्न उस समय का जानो, परन्तु स्मरण रखना चाहिये कियदि तुम्हारे जोड़े हुए अङ्क साठ से ऊपर ( अधिक ) हों तो ऊपर के अङ्कों की ( साठ को निकाल कर शेष अङ्कों को) कायम रक्खो अर्थात् उन अङ्कों में से साठ को निकाल डालो, फिर ऊपर के जो अङ्क हों उन को सारणी में देखो, जिस राशि की पति में वे अङ्क मिलें उतने ही अंश पर उसी लग्न को समझो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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