Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
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दहा-वीर कहे केवल पछी, विचमा एतो काल; चउदे वर्षे अवतरयो, निन्हव सोय जमाल ॥१७॥ तिष्य गुप्ति बीजो सही, सोले वरसें जेह; अंते ते पाछो वलि, समकित पामे तेह ॥ १८॥
ढाल-॥३॥ भावि पटोधर वीरनो॥ ए देशी ॥ दूसम आरोरे आगलें, वीसां सो वरस आय; छेडे होशे वर्ष वीशर्नु, दोय हाथ नी काय ॥ १९ ॥ कहुं तुज गौतम गणधरूं ॥ ए आंकणी ॥वली ६
कहे वीर जिणेसरं, माहरो सुधा शीष्य रे; छेहडे होशे दुप्पसह मुनि, ते वलि चउहया विश| Plu २०॥ कहुं० ॥ युग प्रधान जिने कह्यां, जस एका अवतार; पांचमें आरे ते हशे, दोय सहस ने
च्यार कहुं०॥ २१ ॥ युग प्रधान सरीखा दुशे, मुनि लाख इग्यार; ते उपरि अंधिका कहुं, मुनिवर , सोल हजार ॥ क० ॥ २२ ॥ जैन भुपति जगमां हशें, करशें धर्म उदार; लाख इग्यार ने उपरी, संख्या सोल हजार क० ॥ २३ ॥ विरपछी गौतम जशे, बारे वरसे मोक्ष; वीशे सिद्धि गति सुधा , प्रणमें पातिक सोषि क०॥ २४ ॥
दहा-वीर थकि वर्ष चउसठि, मुक्ति जंबु स्वामी; जंबुजातां सही जशे, दश वाना तिणे ठामि ॥२५॥
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