Book Title: Jain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Author(s): Motichand Rupchand Zaveri
Publisher: Motichand Rupchand Zaveri
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
संयमश्रेणीनुं
स्तवनम्
www.kobatirth.org.
वर्ग थाय अने संख्यात भाग वृद्ध स्थानक हेठल कंडक वर्ग १ ? अने एक कंडक पामीए ए सर्व भेला करतां सूत्रोक्त प्रमाण थाय इम आगल दुगंतर मार्गणाये असंख्यात गुण वृद्धनां प्रथम स्थान कथी तथा अनंत गुण वृद्धना प्रथम स्थानकथी यथाक्रमें हेठल असंख्यात भाग वृद्धनां तथा संख्यात भाग वृद्धनां संयम स्थानक पूर्वे जेम कह्यांछे तेम जाणो यदुक्तं पंचसंग्रहे - कंड कंडस्स घनोवग्गो - दुगुणो दुगं तराएउ ॥ इति द्व्यंतर मार्गणा ॥ ५ ॥
टक - त्रिके अंतर कोइ पूछे आदि असंख्य गुण वृद्धिथी, हेठे भाग अनंत केरां ठाण कहो गुरु वयणथी; कंडक वर्गनो वर्ग कीजे कंडक घन त्रिक उपरे, कंडक वर्ग त्रिक | एक कंडक होय ते मनमां धरे ॥ ६ ॥
भावार्थ - हवे त्रीकांतर मार्गणाए कोइ पूछे एटले त्रण वृद्धि विचाले मूकीने प्रथम जे असंख्य गुण वृद्धनुं स्थानक तेहथी हेठल अनंत भाग वृद्धनां स्थानक केटला गया ते कहो सुविहित गीतार्थ
For Pitvale And Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अर्थ
सहित