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भारतीय दर्शनों का संक्षिप्त परिचय | ३५
पारिजात - सौरभ माना जाता है । परन्तु यह ब्रह्मसूत्रों पर निम्बार्क का भाष्य है ।
माध्व का द्वैतवाद
माध्व सम्प्रदाय पूर्ण रूप से द्वैतवाद को मानता है । अद्वैत का जोरदार खण्डन भी करता है । उसके अनुसार ब्रह्म, जीव और जड़ - ये तीनों ही स्वतन्त्र एवं नित्य हैं । माध्व मत को वस्तुतः द्वैतवाद नहीं, त्रैतवाद कहना चाहिए | क्योंकि वह तीन स्वतन्त्र पदार्थ मानता है | अद्वैत का सर्वत्र खण्डन किया है ।
वल्लभ का शुद्धाद्वैतवाद
वल्लभ के अनुसार जीव, जड़ और ब्रह्म इन तीनों में से पहले दोनों अर्थात् जीव और जड़, ब्रह्म से भिन्न नहीं हैं । वे दोनों ब्रह्मरूप ही हैं । जीव और जड़ की ब्रह्म के साथ एकता स्वतः अर्थात् स्वरूपता है, अर्थात् वह शुद्ध एकता, शुद्ध अद्वैत है । उसमें माया का सम्बन्ध नहीं होता है । वल्लभ के अनुसार माया का अस्तित्व ही नहीं । जीव और जड़दोनों स्वतः ब्रह्मस्वरूप हैं । अतः इस मत का नाम शुद्धाद्वैत पड़ गया है । वल्लभ ने भी अपनी मान्यता के अनुसार ब्रह्म सूत्रों पर भाष्य रचा है ।
पाश्चात्य दर्शन
भारत के प्रत्येक दर्शन - शास्त्र में जिस प्रकार स्वाभिमत प्रमेय और प्रमाण पर विचार गहनता एवं गम्भीरता से किया है, उसी प्रकार यूरोप के दार्शनिक विद्वानों ने भी तत्व -मीमांसा अथवा सत्ता-मीमांसा और ज्ञानमीमांसा अथवा प्रमाण - मीमांसा पर विचार किया है । देश, काल और स्थिति भिन्न होने पर भी पूर्व और पश्चिम की विचारधारा में, काफी समानता भी दृष्टिगोचर होती है । लेकिन अन्तर भी अवश्य है । वहाँ के विद्वानों ने अपनी पद्धति के अनुसार और अपनी अवधारणा के अनुकूल तत्व पर और ज्ञान पर विचार किया है, उसका संक्षेप सार यहाँ अंकित है ।
विभिन्न मत
जगत्
किस तत्व से बना है ? वह तत्व जिससे जगत बना है, कैसा है ? सत्ता का स्वरूप क्या है ? इस सम्बन्ध में तीन मत हैं -अध्यात्मवादी मत, भौतिकवादी मत और निष्पक्षवादी मत ।
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