Book Title: Geetashastrasya Pratikandam
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | देवानित्यर्थः बहून्यन्यान्यवृष्टपूर्वाणि पूर्वमवृष्टानि मनुष्यलांके त्वया त्वत्तोन्येन वा केनचित् पश्याधण्यङ्गुतानि हेभारत अत्र शतशोथसहरूशः नानाविधानीत्यस्य विवरणं वहूनीति आदित्यानित्यादि च अदृष्टपूर्वाणीति दिव्यानीत्यस्य आश्चर्याणीति नानावर्णाकृतीनीत्यस्येति द्रव्यम् ||6|| न केवलमेतावदेव समतं जगदपि महेहस्यं द्रष्टुमर्हसीत्याह इहास्मिन्मम देहे एकस्थं एकस्मिन्नेवावयवरूपेण स्थितं जगत् | कृत्स्नं समस्तं सचराचरं जङ्गमस्थावरसहितं तत्र तत्र परिभ्रमता वर्षकोटिसहस्रेणापि द्रटुमशक्यं अद्याधुनैव पश्य हेगुडाकेश यच्चान्यज्जयपराजयादिकं द्रवुमिच्छसि तदपि सन्देहोच्छेदाय पश्य // 7 // यत्तुक्तं मन्यसे यदि तच्छम्यं मया टुमिति तत्र विशेषमाह 2 525525152515251525 पश्यादित्यान्वसून् रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा // वहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत॥६॥ इहै कस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् // मम देहे गुडाकेश यच्चान्य द्रष्टुमिच्छसि // 7 // न तु मां शक्यसे द्रष्टुमननैव स्वचक्षुषा // दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम् // 8 // // संजय उवाच // एवमुक्त्वा ततोराजन्महायोगेश्वरोहरिः // दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् // 9 // अनेनैव प्राकृतेन स्वचक्षुषा स्वभावसिद्धेन चक्षुषा मां दिव्यरूपं द्रष्टुं नतु शक्यसे न शक्नोषि तु एवं शत्यसइति पाठे शक्तोन भवियसीत्यर्थः सौवादिकस्यापि शक्नोलदेवादिकः श्यन् छान्दसहतिवा दिवादी पाठोरेत्येव साम्प्रदायिक तर्हि त्वां द्र९ कथं शक्नुयामतआह दिव्यममाकृतं मम दिव्यरूपदर्शनक्षनं ददामि ते तुभ्यं चक्षुलेन दिव्येन चक्षुषा पश्य मे योगमघटनघटनासामर्थ्यातिशयमैश्वरमीश्वरस्य ममालाधारणम् // 8 // भगवानर्जुनाय दिव्यं रूपं दर्शितवान् सब तन्हा विस्मयाविष्टोभगवन्तं विज्ञापितवानितीनं वृत्तान्तमेवमुक्खेत्यादिभिः पनि सोकै तराष्ट्र प्रति एवं ननु मां शस्यसे कुटुमनेन चक्षुषानोदिव्यं ददामि ते चक्षुरित्युक्त्वा तलोदिव्यचक्षुःप्रदानादनन्तरं 25152515 For Private and Personal Use Only

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