Book Title: Dandak Tatha Laghu Sangrahani
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ जे प्रकरण, ते मध्येथी अति संहितार्थने करवावाली जाणवी. तु शब्द निन्नार्थमां . १ तेमां प्रथम ( सरीरं के० ) शरीर एटले शरीरहार. ते पांच प्रकारे . एक औदारिक, बीजं वैक्रिय, त्रीजु आहारक, चोथु तैजस, पांचमुं कार्मण. तेमां प्र. थम औदारिक शरीर ते तिर्थकर अने गणघरने पण होय बे, माटे तेना अधिकारे करीने प्राधान्य जाणवं. तथा बीजं वैक्रिय शरीर ते विविध प्रकारनी विशिष्ट क्रिया एटले विक्रिया ने विषे जे उत्पन्न थाय, ते वैक्रिय शरीर जाणवू. ते जेमके एक थश्ने अनेक थर्बु, तेम अनेक थश्ने एक थवं, तेमज नानुं थश्ने मोटुं थ, अने मोटुं थश्ने पाईं नानु थर्बु, यने खेचर थने नूमिचर थर्बु, तथा नूमिचर थइने खेचर थर्बु, तेमज दृश्य थश्ने अदृश्य थवं, अने अदृश्य थइने दृश्य थq. ते सर्व वैक्रिय शरीर जाणवू. त्रीजु बाहा. रक ते चौदपूर्वधरोने तीर्थंकर दर्शनादिक जेवा प्रयोजननी उत्पत्ति बते विशिष्ट लब्धिने वशे करी जे शरीरनुं ग्रहण करवु पडे बे, ते आहारक शरीर जाणवू

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