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॥ श्री.
बालावबोध युक्त
दंडक तथा लघु संघयणी.
चतुर्थावृत्ति
घणाज सुधारा वधारा साथे
छपावी प्रसिद्ध करनार, श्रावक नीमसिंह माणेक. १०७. धनजी स्ट्रोट मुंबइ. ३.
किंमत ०-१४-०
सं. १९२६
वीर सं. २४५२
सं.१९८२
धी न्यु लक्ष्मी प्रेस, न्यु चींचचंदर मुंबई. ९.
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॥ अथ ॥ ॥ श्रीबालावबोधसहितः श्रीदमकः प्रारच्यते ॥
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प्रथम ग्रंथकर्ता. चोवीश दंमकोने विषे संक्षिप्त संग्रहणीनुं अवतरण करवानी जे श्वा, तेने अर्हविज्ञप्ति द्वारा प्रगट करता बता कहे .
॥ गाथा ॥ ॥ नमिलं चजवीस जिणे, तस्सुत्तवियारलेसदेसण ॥ दंमगपएहिं प चिय, थोसामि सुणेद नो जवा! ॥१॥
___ गाथा १ लीना छुटा शब्दना अर्थ, नमिउ-नमस्कार करीने. देसणो-कहेवा माटे. चवीस-चोलीश... दंडगपएहि-दंडकपदोनी साथे. निणे-जिनोने
ते चिय-तेने निश्चे. तस्मुत्त-तेमनां सूत्रा- भोमामि-स्तुति करीश. वियार-विचारा. सणेहम् अषण करो-सांभलो. लेस-किंचित्मात्रना. मा
यो धन्दा :- भव्यमनो!
म
.
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विस्तारार्थः - ( वीस के० ) चतुर्विंशतिं, एटले चोवीश ( जिणे के० ) जिनानू, एटले जिनोने (नमि ho ) नत्वा, एटले नमस्कार करीने, अर्थात् या ज तां सांप्रतिक व्यवसर्पिणीने याश्रय करी श्री. रुपनादि चोवीश जिनने, एटले छातीत अनागत काले पन्नर कर्मभूमिने विषे घणा जिनो बे, परंतु यहीं आदिनाथ प्रति जिननेज ( थोसामि के० ) स्तोष्यामि, एटले हुं स्तुति करीश शा माटे स्तुति करीश ? तो के ( तस्सुत्त - के० ) तत्सूत्र, - एटले तेमनां सूत्र जे खगम, ते यागममां कहेला जे “ सरीरमो" गाहणा य संघयणा " इत्यादिरूप ( वियार - के० ) विचार, - तेनो ( लेस - ० ) लेश - अर्थात् किंचित्मात्र तेने ( देस के० ) देशनतः, एटले कहेवा माटे स्तुति करीश. केनी साथे ? तो के ( मगपएहिं के० ) दमकपदैः, एटले जगवत्यादिक सूत्रोक्त " नेरइखा असुराई" इत्यादि गाथाना अनुक्रमे बांधेलां एवां दंक नामा चोवीश अवस्थाननी साथे (ते चिय के० ) तीनेव, एटले तेने निश्चे स्तवीश. ते माटे ( जो जव्वा ! के० ) जो जव्याः !, एटले हे जव्यजनो ! वहीं जो
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नव्याः ! ए पद शा माटे कह्यं ? तो के जव्यजीवोने सावधानपणे करी श्रवणोत्सुक करवा माटे का बे. उक्तं च ॥ " अप्रतिबद्धे श्रोतरि, वक्तुर्वाक्यं प्रयाति वैफल्यं” ए पदनो अर्थ ए ने के, जो सांजलनार सावधानपणाए करीने श्रवण न करे, तो कहेनारनुं वाक्य निष्फल थाय बे, माटे श्रोताजनोने संमुखी करणार्ये ए पद लख्यु बे; माटे हे नव्यजनो! तमे ( सुणेह के० ) शृणुत, एटले श्रवण करो ॥ ए प्रथम गाथानो लेशथकी अर्थ कह्यो ॥१॥
हवे चोवीश दंडकनां नाम एक गाथाए करी कहे छे. नेरझा असुराई,-पुढवाईवेशदियादन चेव॥गन्नयतिरियमणुस्सा, वंतर
जोइसिय वेमाणी ॥३॥
____गाथा २ जीना छुटा शब्दना अर्थ. नेरइआ-नैरयिक, नारकी (१). गप्भय-गर्भज. असुराइ-असुरकुमारादिक (१०) तिरिय-तिर्यंच (१). बुढवाई-पृथिवीकायादि (५). मणुस्सा-मनुष्य (१). बेइंदियादओ-बेइंद्रियादि (विकलें बंतर-व्यंतर. (१)
द्रिय) (३). जोइसिय-ज्योतिषी (१). वेब-निश्चे.
वैमाणी-त्रैमानिक (१).
ओ-बेईद्रिका (३). जापानिक (१).
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विस्तारार्थः-( नेरश्या के०) नैरयिकाः, एटले गयुं ने शुजावह कर्म जे थकी, तेने निरय कहीए. ते निरयमा जे वास जेनो, तेने नैरयिक कहीए. ते नैरयिक रत्नपजादि पृथिवी नेदे करी सात प्रकारना जाणवा. तेनां नाम कहे बे. एक रत्रप्रतादि, बीजी शर्कराप्रना, त्रीजी वालुकाप्रनो. चोथी पंकप्रना, पां. चमी धुमप्रता, बही तमःप्रना, सातमी तमस्तमःप्रना. ए सात नूमिने विषे उत्पन्न थयेला जे जीवो, ते नैरयिक जाणवा, ते नैरयिकनो एक दंमक जाणवो. या ठेकाणे दंगकनुं अधिकारित्व ने, माटे चोवीशे स्थानकने विषे पूर्व गाथामांजे, “दंगपएहिं" एटले दमकपदनी साथे, एम कहेढुं बे, तेथी दमकपदनी सर्वत्रयोजना करवी.
(असुराई के० ) असुरादि,-एटले असुरकुमारादिक दश नवनपतिना निकायना नेदे करीने दश दंमक होय. अहीं असुर एटले " अस्यंति” नाम देपण करे , अर्थात् पराजय करे ने देवंताने, ते असुर जाणवा. अने कुमार समान आकार माटे,
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अथवा कुमारनी पेठे कीमापरत्व बे, माटे कुमार जाणवा. ते असुरकुमार बे, यादी जेमां, एवा असुरकुमारादिक जवनपति देवोना दश निकायनां नाम कहे बे. एक असुरकुमार निकाय, बीजो नागकुमार निकाय, त्रीजो सुवर्णकुमार निकाय, चोथो विद्युत्कुमार निकाय, पांचमो अग्निकुमारनिकाय, बो द्वीपकुमार निकाय, सातमो उदधिकुमारनिकाय, यामो दिक्कुमार निकाय, नवमो पवनकुमार निकाय, दशमो स्तनितकुमार निकाय ए दश निकायना दश दंकक जाणवा. एवं अगीयार दमक थया.
( पुढवाई के० ) पृथिव्यादि, - एटले पृथिवी, अप, तेज, वायु छाने वनस्पतिकाय ए पांच नेदवाला जीवना पांच दमक होय. एवं सोल दंगक थया.
तथा (बे इंदियादि के०) द्वीप्रियादयः, एटले शरीर ने रसना ए वे बे इंद्रियो जेने, तेत्रा शंख, क पर्दिकादिक बेइंद्रिय जीव जाणवा. यहीं यदि शब्दे करी त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय जीव पण ग्रहण करवा. त्रीद्विय ते शरीर, रसना अने घाण, ए त्रण बे इंद्रियो
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जेने, ते त्रीप्रिय कहीए. ते पिपीलिका, जु, मांकम वगेरे जीवो जाणवा. तथा चतुरिंद्रिय ते शरीर, रसना, घाण अने चक्षु, ए चार वे इंडियो जेने, एवा मक्षिका, चमर, पतंग, वृश्चिक वगेरे जीवा जाणवा. ए द्वींद्रियादिक ऋण विकलेंद्रिय जीवोना त्रण ढंगको जाएवा. एवं उगणीश दंमक थया.
( गायतिरियमगुस्सा के०) गर्जजतियं मनुष्याः, एटले गर्भज ते गर्भने विषे जे जीव उत्पन्न थाय बे, ते जाणवा. तेमां वांका चाले, ते जीव त्रीर्येच जाणवा. अथवा तिर्यग् एटले स्वकर्मवशे करी सर्व गतिमां जाय बे, ते तिर्येच जाणवा, अने जे मनुथकी उत्पन्न थयेला ते मनुष्य कहीए. ते गर्भज तिर्यंच अने गज मनुष्य तेना वे दंक होय. एवं एकवीश देरुक थया.
तथा (वंतर के० ) व्यंतराः, एटले विविध प्रकारनुं अंतर ते व्यंतर कहीए. व्यंतरादिक श्राश्रयपणाए करीने बे जेने, एटले व्यंतर, वनांतर ाने शैलांतरोमां बसे बे, ए स्पष्ट रीते सर्व विज्ञात बे. ते व्यंतरो सोल
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प्रकारना बे. तेमा आठ प्रकारना व्यंतर अने आठ प्रकारना वाणव्यंतर, ए व्यंतर देवोनो एक दंदक जाणवो. एवं बावीश दमक थया. __तथा (जोइसिय के० ) ज्योतिष्काः, एटले ज्योतिषी जे चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र अने तारा ए पांच प्रकारना ले. तेनो एक दंमक जाणवो. एवं त्रेवीश दंगक थया. ____तथा (वेमाणी के०) वैमानिकाः, तेमां “वि" एटले विशिष्ट पुण्ये करी जीवोथकी, “मान्यते” एटले उपजोग थोय जे जेनो, ते विमान कहीए. ते विमानने विषे रहेला जे देवो, ते वैमानिक देवी जाणवा. एवं चोवीश दमक थया. ए वैमानिक देवो बे प्रकारना डे. तेमां एक कल्पोपपन्न अने बीजा कल्पातीत. तेमांकल्प ते स्थिति, जाति, सामानिनिकादि व्यवस्थारूप मर्यादा , तेने प्राप्त थयेला, ते कल्पोपपन्न सौधर्मादि वार देवलोकना देवो जाणवा, अने नव ग्रैवेयक तथा पांच अनुत्तरवासी जे देव, ते कट्पतीत जाणवा. (चे० के० ) चैव चकार समुच्चयार्थमां . तथा एव शब्द
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निश्चयार्थमां . ए रीते नैरयिकनो एक, असुरादिकना दश, पृथिव्यादिकना पांच, बेइंद्रियादिक विकलेंद्रियना त्रण, गर्नज तिर्यच अंने गर्नज मनुष्यना बे, व्यंत. रनो एक, ज्योतिषीनो एक, वैमानिकनो एक, एम सर्व मली चोवीश दमक जाणवा. या गाथामां दमक एवो शब्द ग्रहण करयो बे, ते तजातीयसमूहप्रतिपादक जाणवो. अहींयां सूक्ष्म अने अपर्याप्ता जीवो घणुं करीने अधिकृत करया नथी. ए चोवीश दमकनां नाम कह्यां ॥२॥ हवे शीरीरादि चोवीश द्वारोनां नामनुं स्वरूप गाथाद्वये करी कहे छे.
॥ संखित्तयरी न इमा, सरीरमोगादणा य संघयणा ॥ सन्ना संगण कसाय,- लेस इंदियउसमुग्घाया ॥३॥ दिछी दसणनाणे, जोगुवउँगोववायचवणविई ॥पज्जत्ति किमादारे, सन्नी गइ आगई वेए ॥ ४ ॥
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य-अने.
गाथा ३ जीना छुटा शब्दना अर्थ. सखित्तयरी उ-संक्षिप्तार्थने करदा- सन्ना-संज्ञा (४). .
___ वाली. संगण-संस्थान (६). इमा-आ (संग्रहणी).
कसाय-कषाय (४). सरोरं-शरीर. उगाहणा-अवगाहना (३).
लेस-लेश्या (६).
इंदिय-इंद्रिय (५). संघयणा-संघयण (६). . दुसमुग्घाया-बे प्रकारना समुद्घात
गाथा ४ थीना छुटा शब्दना अर्थ. दिहो-द्रष्टि (३). ठिई-स्थिति. दसण-दर्शन (४).
पजत्ति-पर्याप्ति (६). नाणे-ज्ञान (८).
किमाहारे-किमाहार. जोग--योग (१५). सनी-संज्ञी.(३). उवओग-उपयोग (१२). गइ-गति. उववाय-उपपात.
आगई-आगति. चवण-व्यवन.
वेए-वेद (३). विस्तारार्थः-या गाथानुं व्याख्यान सुलन बे, तोपण बालावबोधार्थ लखे बे. (श्मा के०) श्यं एटले
आ शरीरादि चोवीश छारवाली में संग्रहणी ते ( संखित्तयरी उ के०) संदिप्तकरी तु, एटले संघयण नामे
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जे प्रकरण, ते मध्येथी अति संहितार्थने करवावाली जाणवी. तु शब्द निन्नार्थमां .
१ तेमां प्रथम ( सरीरं के० ) शरीर एटले शरीरहार. ते पांच प्रकारे . एक औदारिक, बीजं वैक्रिय, त्रीजु आहारक, चोथु तैजस, पांचमुं कार्मण. तेमां प्र. थम औदारिक शरीर ते तिर्थकर अने गणघरने पण होय बे, माटे तेना अधिकारे करीने प्राधान्य जाणवं. तथा बीजं वैक्रिय शरीर ते विविध प्रकारनी विशिष्ट क्रिया एटले विक्रिया ने विषे जे उत्पन्न थाय, ते वैक्रिय शरीर जाणवू. ते जेमके एक थश्ने अनेक थर्बु, तेम अनेक थश्ने एक थवं, तेमज नानुं थश्ने मोटुं थ, अने मोटुं थश्ने पाईं नानु थर्बु, यने खेचर थने नूमिचर थर्बु, तथा नूमिचर थइने खेचर थर्बु, तेमज दृश्य थश्ने अदृश्य थवं, अने अदृश्य थइने दृश्य थq. ते सर्व वैक्रिय शरीर जाणवू. त्रीजु बाहा. रक ते चौदपूर्वधरोने तीर्थंकर दर्शनादिक जेवा प्रयोजननी उत्पत्ति बते विशिष्ट लब्धिने वशे करी जे शरीरनुं ग्रहण करवु पडे बे, ते आहारक शरीर जाणवू
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१२.
तेमज चोथुं तैजस ते तेजना पुनो विकार, ते तैजस शरीर जाणवुं. अर्थात् जोजन करेला आहारपरिमननुं कारण, ते कारणने वश विशिष्ट एवा तपथकी रुडे प्रकारे उत्पन्न थयेला एवा लब्धिविशेषथी युक्त पुरुषने तेजोलेश्यानुं जे निर्गमन, ते तैजस शरीर जोणवं. तेम पांचमुं कार्मण शरीर ते कर्मनो जे विकार, ते कार्मण जाणवुं. ते कर्मपरमाणु यात्मप्रदेश साथे झीरनीरनी पेठे अन्योऽन्य अनुगत बते शरीरपथाए परिणाम पामे बे, तेने कार्मण शरीर कहे बुं हवे शरीर एटले शुं ? तो के " शीर्यते " एटले प्रतिदिन जीर्ण थाय बे, ते शरीर जाणवुं यात्री रीते पांच प्रकारनां शरीर मध्येथी पूर्वोक्तं चोवीश दंरुकमहिला कया कया के कयां कयां शरीर होय ? एम कहे, ते प्रथम शरीरद्वार जाणवुं.
२ बीजं ( उगाहणा के० ) अवगाहना एटले अवगाहनाद्वार. ते " अवगाहंते" एटले रहे बे जीवो जेने विषे, ते अवगाहना जाणवी. ते चोवीश दनकमहिला कया कया दंमके केटली केटली शरीरनी जं
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चार होय ? एम कहे, ते बीजुं अवगाहनाहार.
३ त्रीजु (य के०) च, एटले वली (संघयणा के०) संहननानि एटले संघिविशेषने प्राप्त थाय जे शरीरावस्थाना अवयवो जेणे करीने, ते 'संहनन कहीर. ते संहनन वज्रषनाराचादि नेदोए करीने ब प्रकारनुं बे. ते जेमके एक वज्रषजनाराच, बीजु रुषजनाराच, त्रीजु नाराच, चोथु अर्धनाराच, पाचमुं कीलिका अने
तुं सेवार्त. ए ब प्रकारनां संघयणमांदेला जे दंमके जेटलां संघयण लाने, ते दंमके तेटला संघयण कहेवां, ते त्रीजु संघयणद्वार जाणवु.
४ चोथु (सन्ना के०) सुंझा, एटले संझाछोर ए टले रुमा प्रकारचें ज्ञान तेने संझा कहीए. ए संज्ञा बे प्रकारनी जे. एक ज्ञानरूप अने बोजी अनुजवरूपतेमां ज्ञानरूप ते मतिज्ञान, श्रुतझान, अवधिज्ञान, मनःपर्यज्ञान अने केवलज्ञान, ए पांच नेदे करीने जाणवी. तेमां केवलझान संझा ते दायिक , अने बीजी मतिज्ञानादि सर्व संझा ते दायोपशमिकी बे.
३ कर्म ग्रंथना मते शरीरनी एक जातनी अस्थिनी रचना.
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बीजी अनुनवसंझा ते पोताना करेलां शातावेदनीयादि कोथकी उत्पन्न थाय . या ठेकाणे ए अनुनवसंज्ञानुज प्रयोजन बे. ते अनुत्नवसंज्ञा चार प्रकारे, दश प्रकारे अने सोल प्रकारे बे. तेमां एक आहारसंझा, बीजी जयसंझा, त्रीजी परिग्रहसंझा, अने चोथी मैथुनसझा, ए चार नेदनी संझा जाणवी. वली १ क्रोध, मान, ३ माया, ४ लोना, ५ उघ अने ६ लोक ए बनेदे संज्ञा जाणवी, ते बनेदवाली संज्ञामां पूर्वोक्त चार नेदवाली संझा मेलवीए, तो दश नेद. वाली संज्ञा थाय, तथा ग्रंथांतरने विषे कहेली १ सुख, २ पुःख, ३ मोह, ४ वितिगिडा, ५.शोक अने ६ धर्म, एब संज्ञायद्यपि पूर्वोक्त संझाउने विषे अंतर्गत बे, तोपण दशमां जुदी करी मेलवाए, तो सोल नेदयुक्त संझा थाय, तेमां चार अने दश संझामांहेली जे जे दमके जेटली संज्ञा होय, ते ते दमके तेटली तेटली कहेवी, ते चोथु संझाहार जाणवु. ___५ पांचU (संगण के०) संस्थान, एटले संस्थानहार, एटले जे आकृतिए प्राणी रुमी रीते रहे बे,
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एवो जे आकार विशेष, तेने संस्थान कहीए. ते संस्थान बे प्रकारनुं बे. एक जीवसंबंधी अने बीजं अजीवसंबंधी. तेमां जीवसंबंधी संस्थान उ प्रकारे बे. तेनां नाम कहे . एक समचतुरस्र, बीजु न्यग्रोध, त्रीजें सादि, चोथु वामन, पांचमुं कुब्ज, बहुं हुंमक, ए ड नेदे . बीजु अजीवसंबंधी संस्थान, ते पांच प्रकारचें बे. तेनां नाम कहे . एक परिमंमल, बीजं वृत्त, त्रीजु यस्र, चोथु चतुरन, पांच, यात ए पांच प्रकारे जाणवू. एमां अहीं जीवोनां उ संस्थानोनुं प्रयोजन बे. ए ड संस्थानमाहेला जे जे दंमके जेटलां संस्थान लाने, ते ते दमके तेटलां संस्थान कहेवां, ते पांचमुं सं. स्थानद्वार जाणवू.
बहुं ( कसाय के० ) कषायः एटले कषायद्यार, तेमां "कष्यते” एटले हणाय ने प्राणी जेमां, तेने कष एटले संसार कहीए. ते संसारनो ने आय केतां लान जेनाथकी, ते कषाय कहीए. ते क्रोधादिक परिणाम विशेष जाणवा. ते क्रोधादिक परिणामविशेष जा. णवा. ते क्रोधादिक यद्यपि चार बे, तथापि प्रत्येक
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अनंतानुबंधी यादिक भेदे करीने सोल प्रकारना थाय बे. तेमां जे जे दंमके जेटला कषाय लाभे, ते ते दंमके तेटला कषाय कहेवा, ते कषायघार जाणवं. ___सातमु (लेस के0 ) वेश्या, एटले लेश्याद्वार, " लिश्यते कर्मणा सह जीवा आनिरिति वेश्याः " एटले जेना योगे कमें करी जीव बंधाय , ते वेश्या कहीए. कृष्णादि व्यना प्राधान्यपणे करी आत्मानो जे शुजाशुनरूप परिणाम, तेने वेश्या कहे . तेनां लक्षण ग्रंथांतरने विषे थाम कह्यां . "कृष्णादिद्रव्यसाचिव्यात् , परिणामोऽयमात्मनः ॥ स्फटिकस्येव तत्रायं, वेश्याशब्दः प्रवर्तते ॥ १॥ या श्लोकना ना. वार्थ बाम :- कृष्णादि द्रव्यना प्राधान्यपणाथकी थयेलो आत्मानो जे परिणाम, तेने लेश्या कहे . जेम पासे रहेला कृष्ण, रक्तादि पदार्थोना योगे करी स्फटिकरत्नना शुद्ध स्वरूपनो लोप यक्ष कृष्ण नीलादिक रूपनी पाप्ति थाय , तेम ए पण जाणवो. ते लेश्या उ प्रकारनी बे. तेनां नाम कहे बे. एक कृष्ण, बीजी नील, त्रीजी कापोत, चोथी
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तेजो, पांचमी पद्म अने बही शुक्न, ए ड नेदे ले. ए ब वेश्या अहींयां व्यरूप जाणवी, परंतु नावधर्मरूप जाणवी नहीं. एनां लक्षण जांबुंफलने लक्षण करवा गयेला उ पुरुषना दृष्टांते करी जाणवां. यथोकं ॥ पं. था परिहा, पुरिस्सा अमविमद्यारम्मि॥ जंबूतरुस्साहा, परप्परंतेवि चिंतेति ॥ १॥ निम्मूल खंध साखा, साला गुन्हे पक्केय पमिय समिया ॥जह एएहिं नावा, तह लेसावि नायवा ॥२॥ ए लेश्यामांदेली जे दमके जेटली लेश्या लाने, ते दमके तेटली लेश्या कहेवी, ते सातमुं लेश्याहार.
___ आठमुं (इदिय के०) इंडियं, एटले इंजियछार, तेमां इदि धातु परमैश्वर्यवाचक बे, एटले परमैश्वर्यवान् जे थाय, ते इंछ कहीए, एटले आत्मा तेज इंद्र, तेनेज सर्व ज्ञानरूप परमैश्वर्यवान् कहे ,माटे परमैश्वर्यना योगथकी जे चिह्न, तेने इंद्रिय कहीए ते एक जिह्वा, बीजी श्रोत्र, त्रीजी नासिका, चोथी चतु अने पांचमी शरीर. ए पांच इंजियमांदेली जे जे दंगके जेटली इंजियो होय, ते ते दमके तेटली कहेवी,
ते
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१७ ते थाउमुं इंद्रियहार जाणवू. ___ए नवभु (पुसमुग्घाया के०) छौ समुद्घातो, एटले बे प्रकारना समुद्घात बे. तेमां एक तोश्रात्माने जे वेदनादिके प्राबल्ये करी घात थाय, ते जीवसंबंधी समुद्घात, जाणवो. ते सात प्रकारना . तेमां एक वेदना समुद्घात, बीजो कषाय समुद्घात, त्रीजो मरण समुद्घात, चोथो वैक्रिय समुद्घात, पांचमो तैजस समुद्घात हो थाहार समुद्घात, अने सातमो केवली समुद्घात. ते केवली समुद्घात चौद राजलोक व्याप्त, आठ समयनो जाणवो. ए सात प्र. कारे आत्माना प्रदेश शरीरथी बहार नीकले डे, माटे एने जीवसमुद्घात कहीए. बीजा 'यजीवसमुद्घातर्नु का अहींयां कारण नथी, माटे तेनु लक्षण कयुं नथी. ए सात समुद्घातमाहेलाजे दंमके जेटलासमुद्घात होय, ते दंमके तेटला कहेवा, ते नवमुं समुद्घातद्वार जाणवू.
दशU (दिही के० ) दृष्टिः, एटले दृष्टिहार. जे अवलोकन करवु, तेने दृष्टि कहीए. ते एक सम्यग्
१ अचितना महास्कंधरूप.
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दृष्टि, बीजी मिथ्यादृष्टि अने त्रीजी मिश्रष्टि, ए त्रण प्रकारनी बे. तेमां जे अविपरित बतां श्रीवीतरागे कहेला वस्तुतत्त्वनुं ज्ञान थाय, ते प्रथम सम्यग्दृष्टि जाणवी अने ए सम्यग्दृष्टिनां लदणथी जे विपरित ते बीजी मिथ्यादृष्टि जाणवी. तथा सारं अथवा मा झान बेजने विषे खरापणानुं जे ज्ञान थाय ते त्रीजी मिश्रदृष्टि जाणवी. एत्रणमांथी जे दंमके जेटली दष्टि लाने, ते दमके तेटली कहेवी, ते दशमुं दष्टिहार जाणवू.
११ अगीयारमुं (दसण के०) दर्शनं, एटले दर्शनहार. ते दर्शन जीवनो सामान्य उपयोग जे. जेना योगे करी देवाय, ते दर्शन कहीए. तेमां सामान्य वस्तु अने विशेष वस्तुने चक्कुए जोश्ने वा अमुक पदार्थ बे, एवं पृथःकरण करवू, प्रथम चकुदर्शन, तथा चकु विना बीजी इंजियो जे अंतःकरणादिक, तेणे करी पदार्थने जोवू, ते बीजुं अचकुदर्शन, तथा सामान्य प्रकाशक वस्तुनो परिच्छेद करवो, ते त्रीजु अवधि. दर्शन, तथा जगतमां थवानी वस्तु, थयेली वस्तु ते. मज थती वस्तुने सर्व रीते जाणे, ते चोथु केवलदर्शन
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१ए
जाणवू. अहीं घटादी पदार्थोनो सामान्य आकार जाणवो, ते दर्शन कहीए, अने ते पदार्थोनो विशेषाकार जाणवो, ते ज्ञान कहीए. झान अने दर्शनमां एटलोज नेद ले. ए चारे दर्शनमांथी जे दंमके जेटलां दर्शन लाने, ते दमके तेटलां दर्शन कहेवां, ते दर्शनद्वार.
१५ बारमुं ( नाणे के०) ज्ञानं, एटले ज्ञानहार. ते “ ज्ञायते परिविद्यते वस्तु अनेनेति ज्ञानं,” एटले आ वस्तु अमुक बे, ए जेणे करी जाण्युं जाय, तेने झान कहीए. ते पांच प्रकारे . तेमां पांच इंप्रिय अने बहुं मन, एणे करी जे जीवने ज्ञान थाय, ते प्रथम मतिज्ञान, तथा बीजुं श्रुतज्ञान, ते बे प्रकारर्नु बे; एक अव्यश्रुत अने बीजु नावश्रुत, तेमां हादशागीरूप ऽव्यश्रुत जाणवू, अने ते छादशांगीथी उत्पन्न थयो जे उपयोग, तेने जावश्रुत कहीए. त्रीजु अवधिज्ञान पण बे प्रकारचं बे. एक नवहेतुक, बीजु गुणदेतुक. तेमां देव तथा नारकीने जे अवधिज्ञान उत्पन्न थाय, ते जवहेतुक, अने श्रावक साधु तथा पंजिय तिर्यचादिकने जे ज्ञान उत्पन्न थाय, ते गुणहे.
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तुक जाणवू. चोथु मनःपर्यवज्ञान ते अढी छी. पमा रहेलो जे मन सहित पंचेंजिय जीवो, तेना मनना पर्याय जाणे ते. ते मनःपर्यवज्ञान बे प्रकारनुं बे; एक जुमति, बीजुं विपुलमति. ए ज्ञान साधुजनने प्राप्त थाय , अने पांच, केवलज्ञान ते घनघाति चार कर्मना दयथकी उत्पन्न थयु जे सकल लोकालोक विषयक ज्ञान ते केवलझान जाणवू. ए पांच ज्ञान जाणवां.
१३ हवे तेरमुं अज्ञानहार कहे . अज्ञान त्रण बे. एक मतियान, बीजु श्रुतअज्ञान अने त्रीजु विनंगझान. एत्रण अज्ञान मिथ्यादृष्टि जीवने होय. ते पूर्वोक्त पांच ज्ञान साथे मेलवतां आठ ज्ञान थयां. तेमा जे दंमके जेटलां ज्ञान अने अज्ञान लाने, ते दंगके तेटलां कहेवां, ते बारमुं ज्ञान अने तेरमुं अ. झानहार जाणवू.
१४ चौदमुं (जोग के०) योगः, एटले योगहार. ते “ योजनं योगः”. जे युक्त थवं, तेने योग कहीए. किंवा धावन वगनादिक क्रियाना व्यापारे करी जीव
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बंधाय ते योग कहीए, एटले जीवनां बल, वीर्य, शक्ति, पराक्रमने योग कहीए. ते पंदर प्रकारना बे. तेनां नाम कहे . एक 'सत्यमनोयोग, बीजो स. त्यवचनयोग, त्रीजो असत्यमनोयोग, चोथो 'असत्यवचनयोग, पांचमो "सत्यासत्यमनोयोग, हो सत्यासत्यवचनयोग, सातमो असत्याऽमृषामनोयोग, आउमो 'असत्याऽमृषावचनयोग, नवमो औदारिककाययोग, दशमो श्रौदारिकमिश्रकाययोग, अगीयारमो
१ वस्त्रने जोइ ‘आ वस्त्र छे ! एम चिंतववु ते. २ घटने जोइ 'आ घट छे' एम कहे ते. ३ घडीमां 'आ वस्त्र छ,' एम चिंतवतुं ते. ४ , , , कहेवु ते. ५ नगरमां पांच बालक थयां होय, ते छतां 'पांच सात छो. करां थयां एम चिंतव, ते. आनुं बीजं नाम मिश्र पण
कही शकाय. ६ जीण थइ गएला धान्यना ढगलामा घणी जीवात जोइने
"आ बधा जीव छे." एम कहे ते. आनुं बीजु नाम मिश्र पण कही शकाय. ७ 'आ देवदत्त छे, एम चिंतवतुं ते. ८ 'हे देवदत्त ! तुं आव' एम कहेवु ते.
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२२
वैक्रियकाययोग, बारमो वै क्रियमिश्रकाययोग, तेरमो आहारककाययोग, चोदमो आहारकमिश्रकाययोग, अने पंदरमो तैजसकार्मणकाययोग,. ए पंदर योगमांडेथी जे दंगके जेटला योग लाने, ते दमके तेटला कहेवा, ते चोदमुं योगद्वार.
१५ पन्नरमुं (उवढंग के०) उपयोगः, एटले न. पयोगधार. "उपयोजनं उपयोगः वा उपयुज्यते अनेन इति उपयोगः” एटले वस्तुपरिवेदने प्राप्त थवू, अथवा जेणे करीने वस्तुस्वरूप लखाय, ते उपयोग कहीए. ते उपयोग साकार अने निराकारना नेदे करी बे प्रकारनो . तेमां प्रत्येक वस्तुने नियमे करी ग्रहण करवी, एज तेनो परिणामरूप आकार, ते जेना योगे फरी थाय, तेने साकार उपयोग कहीए, अने ए कहेला लक्षणोथी जे जिन्न उपयोग, तेने अनाकार उपयोग क. हीए, ते चतुर्दर्शन, अचकुदर्शन, अवधिदर्शन अने के. वल दर्शन ए चार नेदे . तथा बीजो साकार उपयोग आठ प्रकारे . तेमां समकितीनुं जाणपणुं ते मतिः झानादिक पांच प्रकारे डे, अने बीजें मिच्यात्वीनुं
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जाणपणुं ते मतिअज्ञानादिक त्रण प्रकारे बे; केमके मिथ्यात्वीने कुदेव, कुगुरु अने कुधर्मनी श्रद्धा प्रतीत ने माटे, अने जाणपला आश्री जोश्र तो, ए हाथी बे, ए घोमो डे, ए पुरुष बे, ए स्त्री डे, एम केटलीएक वस्तुनी उलखाण समकिती तथा मिथ्यात्व ए बेजने बराबर , माटे एटलुं मिथ्यात्वीन जाणपणुं पण खरं बे, तेथी तेने ज्ञान कहीए, अने कुदेवने देव करी माने कुधर्मने धर्म करी माने, तथा कुगुरुने गुरु करी माने बे, तेमज बीजी पण केटली एक वस्तु समकिती जीवथी मिथ्यात्वी जीव विपरीत माने जे. जेम को एक जातना जीवने अजीव करी माने बे, इत्यादिक वातोश्री मिथ्यात्वीना झानने अज्ञान कही. ए, अने पूर्वोक्त रीते कोश्क सबलु पण जाणे, माटे त्रण अज्ञानने पांच ज्ञाननी साथे मेलवतां सामान्ये
आठ ज्ञान थयां, तथा चोर दर्शन , तेमां बद्मस्थने प्रथम दर्शनोपयोग होय, ते सामान्य उपयोग कहीए, अने पढ़ी ज्ञाने करी जाणे, ते विशेष उपयोग कहीए, अने श्री केवली नगवान् तो प्रथम स.
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मये ज्ञाने करी जाणे, ते विशेष उपयोग अने बीजे समये दर्शने करी देखे, ते सामान्य उपयोग जाणवो. एम ए आठ ज्ञान अने चार दर्शन मली बार प्रकारना उपयोगमा जे दंमके जेटला उपयोग लाने, ते दंमके तेटला उपयोग कहेवा, ते पन्नरमुं उपयोगहार जाणवं.
१६ सोलमुं ( उववाय के० ) उपपातः, एटले उपपातकार. ते “ उपपतनमुपपातः” एटले एक समयने विषेःचोवीश दमकमांहेलो कया दमके केटला जीव
आवी उपजे, तेनी संख्या कहेवी, ते सोलमुं उप. पातकार. . ____ १७ सत्तरमुं (चवण केस ) च्यवनं, एटले च्यवनछार. ते “च्यवंतेऽनेनेति च्यवनं” एटले चोवीश दमकमांदेला कया कया दंगके एक समयमा केटला जीव च्यवे, तेनी संख्या कहेवी, ते सत्तरमुं च्यवनहारजाणवू.
१० अढारमुं ( विई के०) स्थितिः. एटले स्थितिहार. ते आयुष्यनी स्थिति चोवाशे दमकने विपे कहेवी. जेमके नरकादि गतिने विषे सांकल दंडे करी
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२५ बांध्या प्रमाणे आयुःकर्मन जे परिमाण रहे , तेने वायुष्य कहीए. ते जे दंगके जेटबुं आयु होय, ते दं. मके तेटर्बु कहेवू ते अढारमुं स्थितिद्वार.
रए उंगणीशमु (पऊत्ति के०) पर्याप्तिः, एटले उपर्याप्ति नुं छार. तेमां पुद्गलना उपचयथी थयो जे पुद्गलपरिणामहेतु शक्ति विशेष, ते विषय नेदे उ प्रकारे बे, तेनां नाम कहे . एक आहारपर्याप्ति, बीजी शरीर, त्रीजी इंजिय, चोथी श्वासोवास, पांचमी जाषा अने बही मन. तेमां जे शक्तिए कर। प्राणी मात्र आहार लश् तेने रसपणे परिणमावे, ते प्रथम
आहारपर्याप्तिः, तथा जे शक्तिए कर जीव आहार लश् ते अन्नविकारथकी उत्पन्न थयां जे रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मजा अने शुक्र ए सप्त धातुपणे परिणमावे, ते बोजी शरीरपर्याप्ति; तथा ते सप्त धातुरूप परिणामने पामेलो जे आहारादिक, तेथकी एक अथवा बे अथवा त्रण किंवा चार अथवा पांचे इंडियोने यो. ग्य पोतपोताना इंद्रियरूप परिणामने पमाडे एवी जे शक्ति, तेने त्रीजी इंद्रियपर्याप्ति कहीए; तथा जेणे करी
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वायुने शरीरमा आकर्षण करवो, ते श्वास अने वायुने शरीरथी बहार काढवो, ते निःश्वास, ते योग्य वर्गवादलिक लश्ने तेवा परिणामने परिणमावी अवलंबी मूकवानी शक्ति, ते चोथी श्वासोश्वासपर्याप्ति जाणवी; तथा जेने योगे करी जाषा योग्य दलिक लइ जाषारूपने परिणमावी अवलंबी मूकवानी शक्ति, ते पांचमी जाषापर्याप्ति; तथा मनयोग दलिक ग्रहण करी मनोरुप परिणाम प्रत्ये पमामी अवलंबी मूकवानी शक्ति, के जेना योगे मनन करवाने जीव समर्थ थाय बे, ते बही मनःपर्याप्ति जाणवी. ए पर्याप्तिमांहे चोवीश दमकमांहेला जे दमके जेटली पर्याप्ति होय, ते दमके तेटली कहेवी, ते उगणीशमुं पर्याप्तिद्वार जाणवू. ____२० वीशमुं (किमाहारे के० ) किमाहारः, एटले आहार तेनुं छार. ते चोत्रीश दमकमांहेला कया दंगकना जीव कश दिशानो आहार ले, एम बताववं, ते वीशमुं किमाहार नामे द्वार जाणवू
१ एकवीशमुं ( सन्नी के० ) संझी, एटले संज्ञाद्वार, ते जे जाणवू, तेने संझा कहीए. ते संज्ञा
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त्रण प्रकारनी , एक दीर्घकालिकी संज्ञा, बीजी हेतु. पदेशिकी संज्ञा, त्रीजी दृष्टिवादोपदेशिको संज्ञा. तेमां जे घणा कालनी वात जाणे, एटले त्रिकालिक वस्तुनुं जाणपणुं, ते दीर्घकालिकी संज्ञा. ए संज्ञा पंचेंद्रिय पर्याप्ता जीवने होय, तथा जे पोताना शरीररक्ष
ने अर्थे इष्ट वस्तुमा प्रवतें अने अहित वस्तुथी निवर्ते, तथा तेनुं चिंतन वर्तमान कालमां पण रहे. ते हेतुपदेशिकी संज्ञा जाणवी. ए बेजियादिक विकलेंघिय जीव जे पोताना हितनी वात जाणे, तेने होय. तथा दायोशमिक ज्ञानवाळा अने यथाशक्ति रागादि दोषने वश करनार अने छादशांगीना जाणनार समयग्रदृष्टिमां दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा होय, परंतु र संझा मिथ्यातवीमां न होय, ए त्रण संझामांहेली जे दंमके जेटली संज्ञा लाने, त्यां तेटली क हेवी, ते एकवीसमुं संझाहार..
२५ बावीसमुं (ग के०) गतिः, एटले गतिहार. ते गमन करवू, तेने गति कहीए. एटके नवांतरने विषे जq ते गति. तेमां चोवीश दमकमांहेला कया
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कया दंमकना जीव मरीने कया कया दमकमां जप उपजे, ते कहेवार्नु बावीशमु गतिहार,
२३ त्रेवीशम ( ओगा के ) यागतिः, एटले आगतिहार, " बागमनं आगतिः.” आगमन एटले जे नवांतर थकी आवq. तेने आगति कहीए. अर्थात् कया कया दंगकमां कया कया दंगकना जीव यावी उपजे, ते कहेवार्नु त्रेवोश, आगतिहार.
२४ चोवीशमुं ( वेए के० ) वेदः, एटले वेदद्वार, ते “वेदनं वेदः. " अर्थात् जे अनिलाष करवो, तेने वेद कहीए. ते वेद त्रण प्रकारना बे. तेमां जे पुरुष उपर अनिलाष करवो, ना करवी, ते स्त्रीवेद. तेनां लाण कहे . योनि, मृदुपणानी अवस्था, मूर्खता, अबलता, कुच अने पुरुषोनी श्वा, ए स्त्रीवेदनां ख. दण जाणवां. तथा स्त्री उपर जे अनिलाष करवो, तेने पुरुषवेद कहीए. तेनां लक्षण कहे . रेतःपतन, खरता दृढता. पराक्रम. इमश्र. धैय अने स्त्रीवांबा. ए सात लक्षण पुरुषवेदना जाणवां. तथा स्त्री अने पुरुष ए बन्नेनो जे अनिलाष करवो, तेने नपुंसकवेद कहीए. तेनां लक्षण कहे जे स्तनादिक स्त्रीनां लक्षण तथा
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श्मश्रुकेशादिक पुरुषनां लक्षण तेना नावानावे युक्त तथा मोहरूप अग्निए जाज्वल्यमान, ए लक्षण युक्त होय, ते नपुंसकवेद जाणवा. ए त्रण वेदमांधी जे दंगके जेटला वेद होय, ते दंमके तेटला कहेवा, तेनुं चोवीशमुं छार.
हवे बालावबोध करेली प्रतोमा ज्ञान पांच अने अज्ञान त्रण ए बेननु एक हार कही वेदछार त्रेवीशमुं कयु बे, अने चोवीशमुं अपबहुत्वछार का बे, अने टीकाकारे ज्ञानहार जूठं करी मूल गाथाना पाठ मुजब चोवीश, वेदद्वारा कही पनी अल्पबहुत्व नामे पचीशमुं हार वटे कहेलु , माटे अहींयां पचीशमुं अल्पबहुत्वछार. कहीए डीए. एटल्ले कया दंगकना जीव सर्वथकी थोमा अने कया दमकना जीव अधिक, एम क्रमे करी कहे, तेने अल्पबहुत्व छार कहीए. त्रीजी गाथामांचकार , ते समुच्चयार्थवाचक छे ॥३॥४॥ हवे पूर्वोक्त चोवोश दंडकोने विषे ए चोवीश द्वार निरूपण करे छे.
चन गन्नतिरियवानसु, मणुाणं पंच सेस तिसरीरा॥ थावरचनगे उहजे, अंगुलअ
संखनाग तणू ॥ ५॥
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भाग.
३० गाथा ५ मीना छूटा शब्दना अर्थ. चउ-चार.
थावरचउगे-स्थावरचतुष्कमां. गभतिरिय-गर्भज तिर्यच अने दुहओ-बेप्रकारनुं ( जघन्यथी वाउसु-चायुकायने विषे.
अने उत्कृष्टथी ). मणुआणं-मनुष्यने. अंगुल-अंगुलनो. पंच-पांच.
असंखभाग-असंख्यातमो सेस-बाकीना. तिसरीरा-त्रण शरीरबाला. तणू-शरीर
विस्तारार्थः-तेमां प्रथम गाथाना पूर्वार्धे करी चोवीश दंमकोने विषे पांच शरीरनुं छार कहे . (गष्मयतिरियवाउसु के०) गर्नजतिर्यग्वाद्योः, एटले जलचर, थलचर, खेचर, नरःपरिसर्प अने जुजपरिसर्प ए गर्नज तिर्यच अने वानकाय ए बे दमकोने विषे एक औदारिक, बीजुं वैक्रिय, त्रीजुं तैजस अने चोथु कार्मण, ए (चड के०) चतस्रः एटले चार तनु-शरीर होय, परंतु संमूर्बिम तिर्यचने औदारिक, तैजस अने कामण एत्रण शरीर होय, अने (मणुयाणं के०) मनुष्याणां, एटले मनुष्यना एक दमकने विषे ( पंच के० ) पंच, एटले पांचे शरीर होय, केमके पर्याप्ता संख्याता आयुष्यवा
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३१
ळा कर्मभूमिना सम्यग्दृष्टि प्रमत्त गुणठाणे वर्त्तता बुद्धिए प्राज्ञ एवा मुनि आहारक शरीर करे बे. शरीरनुं समचतुरस्र संस्थान होय, ते गर्भज मनुष्यने होय, पण समूर्हिम मनुष्यने यदारिक, तैजसाने कार्मण ए ए ऋण शरीर होय. एवं ऋण दंमके शरीर कह्यां; अने (सेस के० ) शेसाः, एटले शेष रह्या जे एकवीश दमकवालां जीव, ते (तीसरीरा के ० ) त्री सरीराः, एटले त्रण शरीरवाळा होंय ते यावी रीते - नारकीनो एक दंगक तथा देवोना तेर मंक, एवं चौद दंमकने विषे तो एक वैकिय, बीजुं तैजस, अने त्रीजुं कार्मण ए त्रण शरीर होय. तथा एक वायुकाय विना चार यावरना चार दमक तेमज त्रण विकलें प्रियना त्रण दमक, ए सात inst विषे एक श्रदारिक, बीजुं तैजस अने त्रीजुं कार्मण, ए त्रण शरीर होय. ए चोवीश के पांच
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शरीरनुं प्रथम द्वार क.
हवे बीजुं अवगाहना एटले शरीरना उंच पणाना प्रमाणनुं द्वार कहे छे.
( यावरच उगे के० ) स्थावरचतुष्के, एटले एक वनस्पतिकाय मूकीने बाकी चार स्थावरने विषे एक
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३२ उत्कृष्ठथी अने बीजें जघन्यथी एवं (मुह के०) हिनेदा वा विकतः एटले बे प्रकारचें (तणु के०) तनुः, एटले शरीर ते (अगुलयसंखनाग के०) अंगुलाख्यनाग, एटखे अंगुलना असंख्यातमा जाग प्रमाण होय, परंतु जघन्य शरीर करतां उत्कृष्ट शरीरमान असंख्यात गुणाधिक होय. ॥५॥
सवेसिपि जहन्ना, सादाविय अंगुलस्स असंखस्सो॥ नकोस पणसयधणू, नरें
श्या सत्तदब सुरा ॥६॥
गाटा ६ छीना छुटा शब्दना अर्थ. सम्वेसिपि-सर्वने विषे पण. पणसय-पांचसें. जहन्ना-जघन्य थकी. धणू-धनुष्य साहाविय-स्वाभाविक. | नेरहआ-नारकी. अंगुलस्स-अंगुलना.
| सत्तहच्छ-सात हाथ. असंखस्सो-असंख्यातमो भाग. सुरा-देवता. . उक्कोस-उत्कृष्ट थकी.
विस्तारार्थः-ए उपरनी गाथाना उत्तरार्धमां कहेला जे स्थावर जीवोना चार दमक, ते मूकीने बाकी रह्या
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३३
जे वीश दमक ते (सवेसि के०) सर्वे एटले सर्व दं. मकने विषे (पि, के०) अपि, एटले पण (जहन्ना के०) जघन्या, एटले जघन्य तनु शरीर (सादाविय के० ) स्वाजाविका, एटले स्वानाविक आरंजती वेखाए ( अंलगुस्स असंखस्सो के० ) अंगुलस्या संख्याता एटले अंगुलना असंख्यातमा जाग जेटद्यु जाणवू. हवे ए बीशे दमकनुं ( उक्कोस के० ) उत्कृष्टतः, एटले उत्कृष्ट शरीरनुं मान कहे , ते मध्ये (नेरश्या के० ) नैरयिकाः, एटले नारकीना एक दंगकना जीवो शरीरना उंचपणे (पणसयधणु के० ) पंचशतधनुः, एटले पांचसो धनुसुधी म्चा होय, अने ( सुरा के०) सुराः, एटले देवताना तेर दमकना जीवो शरीरना माने ( सत्तहत्य के० ) सप्तहस्तं एटले सात हाथ सुधी उंचा जाणवा.
यो ठेकाणे साते नारकीर्नु जुई जुई शरीरमान कही देखाडे . तेमां सातमा नरके पांचवें धनुष्य, बहा नरके अढीसें धनुष्य, पांचमाए सवासो धनुष्य, चोथाए सामी बासठ धनुष्य, त्रीजाए सवा एकत्रीस
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३४ धनुष्य, बीजाए सामा पंदर धनुष्य ने बार अंगुल, पहेलाए पोणा आठ धनुष्य ने ब अंगुल, ए प्रमाणे शरीर, मान जाणवू.
देवतामां नवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क तथा सो. धर्म अने ईशान ए बे देवलोक पर्यंत सात हाथर्नु शरीर जाणवू. त्यार पड़ी त्रीजा सनत्कुमार अने चोथा महेंड ए वे देवलोकमां उ हाथर्नु शरीर जाणवू; अने पांचमा ब्रह्म तथा बहा लांतक ए बे देवलोकमां पांच हायर्नु शरीर जोण. तथा सातमा शुक्र अने बाधमां सहस्रार ए बे देवलोकमां चार हाथy शरीर जाणवू. तथा नवमा बानत, दशमा प्राणत, अगीयारमा बा. रण अने बारमा अच्युत ए चार देवलोकमां त्रण हाथy शरीर जाणवू. तथा नव ग्रैवेयके बे हायर्नु शरीर अने पांच अनुत्तर विमाने एक हाथर्नु शरीर जाणवू ॥६॥ गन्नतिरिसहस्हजोयण, वणस्सअदियजोयण सहस्सं ॥ नरतेइंदितिगाउ,
बेइंदिय जोयणे बार ॥ ७ ॥
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३५ . गाथा ७ मीना छुटा शब्दना अर्थ. गम्भतिरि-गर्भज तिर्यचनु. सहस्सं-एक हजार. सहस्स-हजार.
नर-मनुष्य अमे.
तेइंदि-तेइंद्रियर्नु. जोयण-योजन.
तिगाउ-त्रण गाउ. वणस्सह-वनस्पतिर्नु
वेइंदिय-बेइंद्रियर्नु. अहिय-अधिक.
जोयणे-योजन. जोयण-योजन.
बार-बार. विस्तारार्थः-(गलतिरि सहस्सजोयण के०) गर्नजतिर्यक्सहसूयोजनं, एटले गर्भज तिर्यचमां स्वयंजूरमण समुद्रना माबला प्रमुखना शरीरनुं मान एक हजार योजन जाणवू, तथा (वणस्सश्यहियजोयणसहस्सं के०) वनस्पत्यधिकयोजनसहस्त्रं, प्रत्येक वनस्पतिकाय जीवो. नुं शरीरम्हान काश्क काजेलं एवं एक हजार योजन जाणवू, ए शरीरमान समुद्र अने पद्मद्रदने विषे कमलना नालप्रमुखD जाणवू, ए मान उपरांत पडी पृथ्वीनो विकार जाणवो. तथा (नरतेऽदियतिगान के) नरत्रीद्रियत्रिगव्युति, एटले गर्नज मनुष्य तेइंघिय ए बे
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दमकना जीवोनुं शरीर त्रण गाउ जाणवू. (बेइंद्रिय के० ) विद्रियाः, एटले बेइंद्रिय जीवो शरीरना माने (जोयणे बार के० ) द्वादश योजनानि, एटले बार यो जनसूधी जाणवा. ए सर्व योजन उत्सेधांगुले निपज्या लेवा ॥ इति ॥७॥ जोयणमेगं चरिं,-- दिदेवमुच्चत्तणं सुए नणियं ॥ वेनवियदेहं पुण, अं
गुलसंखं समारंने ॥ ७ ॥
गाथा ८ मीना छुटा शब्दना अर्थ. जोयणं-योजन. . भणियं-कह्य छे. एग-एक.
बेउब्धियदेहं-चैक्रिय शरीर. चरिदि-चौरिंद्रियन. पुण-चलो. देहं-शरीर.
अगुलसंखं-अंगुलनो संख्याउच्चत्तणं-उंचपणे.
तमो भाग. मुए-मूत्रने विषे समारंभे-आरंभती वेलाए.
विस्तारार्थः-मदिका, जमर, दंशक, कंसारी प्रमुख (चरिंदि देहं के०) चतुरिंद्रिय देहः, एटले चतुरिंद्रिय जीवोनुं शरीर (जोयणमेगं के० ) योजनमेकं
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एटले एक योजन सुधी (उच्चत्तणं के०) उच्चत्वेन उंचपणे पन्नवणा प्रमुख (सुए के०) सूत्रे, एटले सूत्रमा (नणियं के० ) नणितं कथितं, एटले कयुं बे. ए सर्व उत्कृष्टथी शरीरनी अवगाहना कही, अने ए मानथकी हीन हीन करतां यावत् अंगुल नो असंख्यातमो नाग एक प्रदेशे अधिक होय, ते सर्व मध्यम अवगाहना जाणवी. एम सर्वत्र उत्कृष्ट अवगाहनाथी प्रदेशादिके हीन अने जघन्यथकी प्रदेशादिके अधिक ते मध्य अवगाहना जाणवी.
हवे जे जे दमके वैक्रिय शरीर बे, तेनुं प्रमाण कही देखाडे बे. तेमां प्रथम जघन्य अवगाहना कहे बे. (वेउवयदेहं के०) वैक्रियदेहः, एटले वैक्रिय शरीर ते (पुण के०) पुनः, एटले वली (अंगुलसंखं के०) अंगुलासंख्यः, एटले एक अंगुलनो संख्यातमो नाग (समारने के० ) समारंने. एटले यारंजती वेलाए एटले विकुर्वणा करती वेलाए पहेला समयमां होय ॥७॥ त्यारपडी वधतुं वधतुं जो अत्यंत वधे, तो कया दमके केटर्बु केटलु वधे-विकुर्वणा करे, तेनुं प्रमाण आगली गाथाए कहे .
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देव नर दिय लकं, तिरियाणं नव य जोयणसयाई ॥ डुगुणं तु नारयाणं, मणियं वजविसरीरं ॥ ए ॥
गाथा ९ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
देव-देवता.
नर- मनुष्य. अहिअ - अधिक.
लख्कं-लाख. तिरियाणं-तिर्यचनुं.
दुगुणं मणुं.
तु-वली, पण. नारयाणं - नारकीनुं. भणियं - कां. वेडव्वियसरीरं वैक्रिय शरीर.
―
नब य जोयणसयाई-नवसें योजन.
विस्तारार्थ : - ( देव के० ) देवः, एटले देवता ( लकं के० ) लक्ष, एटले एक लाख योजन वैक्रिय शरीर बिकुवें, छाने ( नर के० ) नरः, एटले मनुष्य ( अहिय लरकं के० ) अधिकं लक्षं, एटले कांईक - धिक एक लाख योजनसुधी अधिक वैक्रिय शरीर वि. कुर्वे, विष्णुकुमारनी पेठे केमके देवता जे बे, ते स्वजावेज पृथिवी की चार अंगुल उंचा उजा रहे बे, अने म नुष्य तो पृथ्वी उपरज उजा रहे, परंतु ज्यारे वैक्रिय
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३ए शरीर करे, त्यारे देवता तथा मनुष्य ए बेउ उजा थका मस्तकनी पासे सरखा देखाय, माटे मनुष्य लाख योजनथी चार अंगुल अधिक वैक्रिय शरीर करे, तोज उना थका सरखा देखाय. (य के ) तथा (तिरियाणं के०) तिरवां एटले तिर्यच जीवोनुं विकुर्वे, तो (नव जोयणसयाई के०) नव योजनशतानि, एटले नवसें योजन सुधीनु वैक्रिय शरीर थाय. (तु के०) तु एटले वली (नारयाणं ) नारकाणां, एटले नारकी जीवोनुं पोतपोताना शरीरथकी (दुगुणं के०) द्विगुणं, एटलें बमणु विकुर्वे त्यारे थाय, अर्थात जेनुं पांचसे धनुष्यनुं खानाविक शरीर होय, ते मूल शरीरथी बमएं-हजार योजन- विकुर्वणाकाले वैक्रिय शरीर की शके. ए रीते (वेवियसरीरं के०) वैक्रियशरीरं. एटले वैक्रिय शरीर जे दंमके जेटलुं , ते दंमके तेटबु (जणियं के०) नणितं, एटले का ॥ ए॥ हवे ए वैक्रिय विकुर्वणा कया दंडकना जोवोने केटका काल पर्यंत
रहे, ते कहे छे. अंतमुहुत्तं निरए, मुहुत्त चत्तारि तिरिय
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४०
मणुएसु ॥ देवेसु अक्ष्मासो, उक्कोस
विनवणाकालो ॥ १० ॥
गाथा १० मीना छुटा शब्दना अर्थ. अंतमुहुत्तं-अंतर्मुहुर्त. देवेसु-देवताने विषे निरए-नारकीने विषे अद्धमासो-अर्ध मास
उक्कोस-उत्कृष्टथी चत्तारि-चार
विउवणा-विकुर्वणानो तिरियमणुएसु-तिर्यच अने | कालो-काल ____ मनुष्यने विषे,
विस्तारार्थः-(निरए के०) निरए, एटले नारकीना दमकने विषे (अंतमुहुत्तं के०) अंतरमुहूर्त, एटले एक अंतर्मुहूर्त्त पर्यत वैक्रिय शरीरनी विकुर्वणा रहे, त्यार पढी विसराल थ जाय, अने (तिरियमणुएसु के०) तिर्यग्मनुष्ययोः, एटले तिर्यच अने मनुष्यना दमकने विषे ( चत्तारि मुहुत्त के०) चत्वारि मुहूर्तानि एटले, चार मुहूर्त. एटले एक पहोर पर्यंत वैक्रिय शरीरनी विकुर्वणा रहे, पनी विसराल थाय. तथा (देवेसु के०)
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देवेषु, एटले देवताना दंझकोने विषे (अधमासो के०) अर्धमासः, एटो पंदर दिवस पर्यत वैक्रिय शरीरनी विकुर्वणा रहे, पनी विसराल थाय. ए (उक्कोस के) उत्कृष्टः, एटले उत्कृष्टो (विउठवणाकालो के०) विकुर्वणाकालः, एटले वैक्रिय शरीरनी विकुर्वणानो काल कह्यो. अहीं नव ग्रैवेयक तथा पांच अनुत्तर विमानना देवोने कांश उत्तरवैक्रिय शरीर कर, पमतुं नथी, केमके तेमनामां वैक्रिय शरीर करवानुं सामर्थ्य उतां पण तेने ते शरीर करवान को प्रयोजन उपजतुं नथी माटे. अहीं देव अने नारकीने जवप्रत्ययिक वैक्रिय शरीर , अने मनुष्य तथा तिर्यचने लब्धिप्रत्ययिक वैक्रिय शरीर , ए रीते बीजं अवगाहनाहार कह्यं ॥१॥
हवे त्रीजु संघयणद्वार कहे छे. थावरसुरनेरश्या, असंघयणा य विगलवहं ॥ संघयणबग्गं गनय,--नरतिरिएसुवि
मुणेयवं ॥११॥ गाथा ११ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
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थावर-स्थावर.
संघयण-संघयण. मुर-देवता.
छग्गं-छए. नेरइया-नारकी.
गप्भय-गर्भज. असंघयणा-संघयण रहित. नर-मनुष्य. य-अने.
|तिरिएसु-तिर्यचने विषे. विगल-विकलेंद्रियन. चि-पण ठेवट-छेवढुं.
मुणेयचं-जाणवां. विस्तारार्थः-पृथिवी, अप, तेज, वायु अने वनस्पति, ए (थावर सुरनेरश्या के०) स्थावरसुरनैरयिकाः, एटले स्थावरना पांच दंमक तथा देवताना तेर दमक तथा नैरयिक एटले नारकीनो एक दमक, ए सर्व म. ली उंगणीश दंगकना जीवो, ते (असंघयणा के०) असंहननाः, एटले गए संघयणथकी रहित होय, एटले ज्यां हाम मांस होय त्यां संघयण होय. ते हाम तथा मांस ए उंगणीश दंगके नथी, माटे ए संघयण रहित कह्या. ( य के०) च एटलेवली, अहीं च समुच्चय अ. र्थमां ने. तेथी सिद्धांतनो मते देव अने नारकी बलने आश्री पहेला संघयणवाळा . तथा बेइंद्रिय, तेद्रिय तथा चौरिद्रियए ( विगल बेवढं के०) विकलसेवार्त,
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४३ एटले विकलेद्रियना त्रण दंझकने विषे एक सेवात एटले देवतुं संहनन होय. वली कर्मग्रंथवाला तो संमूर्बिम पंचेंद्रिय तिर्यचने पण ब संघयण कहे बे. कोश स्थले एकेंद्रियने सेवा कहे , अने देवोने वजषजनाराच कहेबुं बे, ते औपचारिक जाणवू. (गप्पयनरतिरिएसु वि के०) गर्ननरतिरश्वोरपि गर्भज मनुष्य अने गर्नज तिर्यच ए बे जातिना जीवना बे दमकने विषे पण (संघयण बग्गं के०) संहनषटुं, एटले गए संघयण ( मुणेयव्वं के० ) ज्ञातव्यं, एटले जाणवां. ए त्रीजु संघयणछार कह्यु ॥११॥
हवे चोथु संज्ञाद्वार कहे छे: सवसिं च दद वा, सणा सवे सुरा य चनरंसा॥ नरतिरि संगणा, हुँमा विगलिंदिनेरश्या॥१२॥
'गाथा १२ मीना छुटा शब्दना अर्थ. सव्वेसिं-सर्वे दंडकोने विषे. दह-दश.
चउ-चार.
वा-अथवा.
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य-अने.
88 सणा-सज्ञा.
नरतिरि-मनुष्य अने तीर्यच. सवे-सर्व.
छसंठाणा-छ संस्थानवाळा. मुरा-देवता.
हुंडा-हुंडक संस्थानवाला.
विगलिंदि-विकलेंद्रिय. संसा-समचतुरस्त्रवाला. नेरइया-नारकी.
विस्तारार्थः-एकेंजियश्री मामीने ( सव्वेसि के० ) सर्वेषु, एटझे सर्वे चोवीशे दंसकने विषे आहार, जय, मैथुन, परिग्रह, ए (चल के) चतस्रः, एटले चार संझा (वा के० ) वा, एटले अथवा ( दह के०) दश, (सणा के० ) संज्ञा होय. ते क्रोध, मान, माया, खोज, उघ, सोक अने पूर्वोक्त आहारादिकचार मली दश जाणवी. अथवा पूर्वे कहेली सोल संज्ञा होय. ए चोधुं संज्ञाहार कां. (य के०) अने,
___ हवे पांचमुं संस्थानद्वार कहे छे. ( सवे सुरा के० ) सर्वे सुराः, एटले सघला ए तेरे दमकना देवता ते ( चरंसा के० ) चतुरस्त्राः, एटले एक समचतुरस्र संस्थानना धारक जाणवा. ते देवानां नाम कहे .
प्रथम पंदर जातिना परमाधार्मिक देवता कहे जे.
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४५ १ अंब, ५ अंबरसी, ३ श्याम, ४ संबल, ५ रुद्र, ६ उपरुष, ७ काल, महाकाल, ए असिपत्र, १० धनुष, ११ कुंजी, १५ काबु, १३ वैतरणी, १४ खरस्वर, १५ महाघोष. . हवे सोल जातिना व्यंतर देवोनां नाम कहे . १ पिचाश, १ जूत, ३ यक्ष, ५ राक्षस, ५ किन्नर, ६ किंपुरूष, ७ महोरग, गंधर्व, ए आठ व्यंतर अने ए अणप्रज, १० पंचप्रज्ञ, ११ शषिवादी, १२ जुतवादी, १३ कंदी, १४ महानंदी, १५ कुष्माम, १६ पतंग. ए आठ जातिना वाणव्यंतर मलीने सोल जातिना व्यं. तर देवो समजवा.
दश जातिना जवनपतिनां नाम कहे - १ असु. रकुमार, १ नागकुमार, ३ सुवर्णकुमार, ४ विद्युत्कुमार, ५ अग्निकुमार, ६ छीपकुमार, ७ उदधिकुमार, ७ दिशाकुमार, ए पवनकुमार, १० स्तनितकुमार... ____ दश जातिना तिर्यजूंजक देवोनां नाम कहे - १ अन्नज़ंजक, ५ पानज़ंजक, ३ वस्त्रजूंजक, ४ अणजूं
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४६ जक, लेण एटले घर जाणवू. ५ पुष्पजूंनक, ६ फलजूंजक, ७ पुष्पफलज़ंजक, ७ शयनजंजक, ए विद्या. जक, १० अवियत्तजनक. ए दश नेदवाला तिर्यगजंजक देवोना रहेवानां स्थान कहे . अढी छीपमा पांच महाविदेहक्षेत्रना १६० विजयना १६० वैताढय, अने पांच जरत तथा पांच ऐवतना दश वैताढय मली १७० दीर्घ वैताढय पर्वत डे, तेने विषे ए देवो रहे , तथा वली देवकुरुमांहे शीतोदा नदीने बे पासे चित्रकूट अने विचित्रकूट नामे पर्वत बे, त्यां रहे . तथा उत्तरकुरूमांहे सीता नामे नदी , तेनी बे पासे यमक नामे बे पर्वत , त्यां रहे . तथा सीता नदीना नीलबंत प्रमुख पांच अह बे, ते एकेक द्रहनी पूर्वे अने पश्चिमे दश कांचनगिरि पर्वत करतां एकसो कांचनगिरि बे. एम सीतोदा नदीना नीलवंत प्र. मुख पांच प्रहनी बे पासेना एकसो कांचनगिरि मली बसें कांचनगिरि जंबूझीपना . तथा तेथी बमणा धातकीखंमना चारसे कांचनगिरि अने पुष्कराईना पण घारसें मली बढी छीपमां एक
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हजार कांचनगिरि पर्वत बे, त्यां ए देवो रहे . एम ए चार स्थानके तिर्यगूजनक देवो रहे ले. ए देवोर्नु एक पक्ष्योपम आयु . ए अधिकार श्रीजगवती सूत्रना चौदमा शतकना पाठमा उद्देशामां . ए सर्व एकावन जातिना देवता व्यंतर मध्ये जसे. ए सर्वन समचतुरस्र संस्थान बे. ____हवे ज्योतिषी देवोना दश नेद कहे जे चंद्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र अने तारा ए पांच जातिना अढी द्वीपमा फरे , ते चर कहेवाय, अने पांच जातिना अढी छीपथी बहार बे, ते फरता नथी, माटे स्थिर कहेवाय. ए दश नेद थया. एने समचतुरस्र संस्थान .
हवे नव जातिना लोकांतिक देवो कहे . १ सारस्वत, २ थादित्य, ३ वह्नि, ४ अरुण, ५ गदतोय, ६ तुषित, ७ अव्याबाध, आग्नेय, ए अरिष्ट.
हवे त्रण जातिना किटिबषिया देवो बहे - पहेला सोधर्म अने ईशान ए बे देवलोकनी हेते रहे जे. बीजा सनत्कुमार अने माहेछ ए बे देवलोकनी
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४न
हेते रहे ले. त्रीजा ब्रह्म अने लांतक ए बे देवलोकनी हेठे रहे. . हवे बार देवलोकनां नाम कहे डे-एक सोधर्म, बीजो ईशान, त्रीजो सनत्कुमार, चोथो माहेंद्र, पांचमो ब्रह्म, बहो लांतग, सातमो शुक्र, पाठमो सहस्रार, नवमो थानत, दशमो प्राणत, अगीयारमो आरण, बारमो अच्युत. ___ नव ग्रैवेयकनां नाम कहे . १ सुदर्शन, ५ सु. प्रतिष्ठ, ३ मनोरम, ४ सर्वतोजद्र, ५ विशाल, ६ सौम्य, ७ सौमनस, प्रीतिकर, ए यादित्य. .. पांच अनुत्तर विमानना नाम कहे डे-एक विजय, बीजें वैजयंत, त्रीजुं जयंत, चोथु अपराजित, पांचमुं सर्वार्थ सिद्ध ए सर्व देवोनुं समचतुरस्त्र संस्थान जाणवू,
(नरतिरि के) नरतियेचौ, एटले मनुष्य अने तिर्यच ए बे दंगकना जीवो (संगणा के०) षट्सं. स्थानौ, एटले बए संस्थानवाळा घणा जीव आश्रयी लाने. अने (विगलिंदि नेरश्या के०) विकलेंदियनैरयिकाः, एटले विकलेजियना त्रण दंगक तथा नारकी
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४ए
नो एक दमक मली चार दमकना जीवो एकज (हुँमा के०) हुंमकाः, एटो हुंमकसंस्थानवाळा होप. ए जंगणीश दमके संस्थान कह्यां ॥१॥ हवे पांच स्थावरना पांच मकना जीवो उ प्रकारनां संस्थानसहित बे, तोपण संस्थानोना आकारना नेदपणाथी तेमनां पण संस्थान कहे जे. नाणाविदधयमूई,--बुब्बुद वणवाजतेनअपकाया ॥ पुढवी मसूरचंदा,-कारा संगण नणिया ॥ १३ ॥
गाथा १३ मीना छुटा शब्दना अर्थ. नाणाविह-नानाविध भिन्न भिन्न.| अपकाया- अपकाय. धय- ध्वजा.
पुढवी-पृथ्वीकाय. सई-सोइ.
मसुर-मसुरनी दाल. बुन्बुह-परपोटा.
चंदाकारा-चंद्रमाने आकारे. वण-वनस्पतिकाय.
संठाणओ-संस्थान. वाउ-वायुकाय.
भणिया-कयां छे. तेउ-तेउकाय.
विस्तारार्थः-(वण वान तेउ अपकाया के )
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वनवायु तेजोऽप्कायाः, एटले वनस्पतिकाय, वायुकाय, तेजस्काय अने अप्काय ए चोर दमकना जीवो अनुक्रमे ( नाणा विहधयसुईबुब्बुह के ) नाना विधध्वज सुची बुद्बुदाः, एटले जिन्न जिन्न, ध्वजा. सोय अने जलना परपोटाना श्राकारे संस्थानवाळा होय. एटले वनस्पतिनुं जुदी जुदी जात, वायुनुं ध्वजाना आकारे, तेजस्कायर्नु सोयना श्राकारे अने अप्कायर्नु पाणीना परपोटाना श्राकारे संस्थान जाणवं. तथा (पुढवी के0) पृथ्वी, एटले पृथ्वीकायना दंमकना जीव ( मसूरचंदाकारा के०) मसूरचंडाकारा, एटले अर्धी मसूरनी दाळ (अथवा तुवरनी दाळ) ना आकारवाळी अने चंद्रमा जेवा आकारवाळा होय. ए पांच दंमकना जीवो संबंधी शरीरनां ( संगण के० ) संस्थानानि, एटले संस्थान ते जगवती प्रमुख सिहांतने विषे (जणिया के०) जणितानि, एटले कह्यां बे. चोवीशे दंगके पांचमुं संस्थानद्वार कह्यु.
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५१ हवे छठे कषायद्वार कहे छे. सवेवि चउकसाया, खेसबग्गं गन्नतिरियमणुएसु ॥ नारयतेकवाक, विगला वेमाणिय तिलेसा ॥ १४
गाथा १४ मीना छुटा शब्दना अथे. सव्वेवि-सर्वे पण.
तेज-तेउकाय. चउकसाया-चार कषायवाला. वाऊ-वायुकाय. लेसग्गं-छ लेश्या.
विगला-विकलेंद्रिय गम्भतिरियमणुएम-गर्भज तिर्यच वेमाणिय-वैमानिक
अने मनुष्यने विषे. तिलेसा-त्रण लेश्यावाच्या नायर-नारकी जीवो.
विस्तारार्थः- ( सवेवि के0 ) सर्वेऽपि, एटले समस्त चोवीशे दंगकोना जीवो पण क्रोध, मान, माया, अने लोज, ए (चउकसाया के०) चतुःकषायाः, एटसे चारे कषाय वाळा होय. ए बहुं कषायछार कयुः ।
हवे सातमु लेश्याहार कहे . (गप्ततिरियमणुएसु केण) गर्नजतिर्यग्मनुष्ययोः, एटले गर्नज तिर्यच अने गर्नज मनुष्य, ए बे दमकने विषे ( बेसबग्ग के ) वेश्याषट्कं, एटले बए सेश्या होय, तथा (नारयते:
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वाऊ विकला के० ) नारकतेजो वायुविकलाः, एटले नारकीनो एक दमक अने तेनकायनो दमक तथा वायुकायनो दंमक अने विकलेंद्रियना त्रण दमक, ए उ दमकोना जीवो कृष्ण, नील अने कापोत, ए (तिलेसा के०) त्रीवेश्याः, एटले त्रण लेश्याउँवाळा होय, तेमां सात नारकीमा पहेली अने बीजीमां कापोत, त्रीजीमां उपरना जागमां कापोत अने नीचेना जागमां निल, चोथीमा नील, पांचमीमां नील अने कृष्ण बहीमा अने सातमीमां कृष्ण लेश्या होय. तथा (वेमाणिय के० ) वैमानिकाः, एटले वैमानिक देवोना एक दंमकना जीवो पण तेजो, पद्म अने शुक्ल ए त्रण लेश्यावा. ळा होय. तेमां सौधर्म अने इशानमा तेजोलेश्या त्रण करूपमां पद्मलेश्या अने लांतकविगेरेमा शुल्कलेश्या होय. ए नव दंगके लेश्या कही ॥१४॥ जोइसियतेनलेसा, सेसा सवेवि हंति चनलेसा ॥ इंदियदारं सुगम, मणुआणं
सत्त समुग्घाया ॥२५॥
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___ गाथा १५ मीना छुटा शब्दना अर्थ. जोइसिय-ज्योतिष्कनी. | इंदियदार-इंद्रियद्वार. तेउलेसा-तेजो लेश्या. सुगम-सुगम, सहेलं. सेसा-बाकीना.
मणुआणं-मनुष्योना. सम्वेवि-सर्वे पण.
सत्त-सात. हुति-होय छे.
समुग्घाया-समुद्घात. चउलेसा-चार लेश्यावाला.
विस्तारार्थः--(जोइसिय तेजोलेसा के० ) ज्योतिष्क तेजोलेश्या, एटले ज्योतिष्क देवोना दमके एक तेजो लेश्या होय, तेजोलेश्यावाळा केटलाक देवो पृथ्वी, जल अने वनस्पतिमा जप्तन्न थाय बे. तेथी केटलोक काल सुधी तेमने तेजोलेश्यानो संनव जे. अने (सेसा के० ) शेषाः. एटले शेष रह्या जे दश जवनपतिना दश दमक, अगीयारमो व्यंतर देवोनो, बारमो पृथ्वी. कायनों, तेरमो अपकायनो, चौदमो वनस्पतिकायनो, ए (सवि के०) सर्वे, एटले सर्व चौदे दंगकोना जीवो पण कृष्ण, नील, कापोत अने चोथी तेजो, ए (चउलेसा के० ( चतुर्लेश्याः, एटले चार वेश्यावाळा (हुंती के०)
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जवंति, एटले होय. ए चोवीशे दंगकोने विषे सातमुं लेश्याहार का.
हवे बाग्मुं इंडियद्वार कहे . (इंदियदारं सुगमं के ) इंद्रियघारं सुगम, एटले ते इंद्रियछार सुगम बे, तोपण काश्क विशेष कहीए बीए. स्थावरना पांच दंगके एक स्पर्शेजियज होय, अने विकलेजियना त्रण दमकमांथी बेइंडियने एक शरीर, बीजी रसना एटले जीज, ए बे इंजियो होय. तथा तेइंद्रियने एक शरीर, बीजी जीन, त्रीजी नासिका, ए त्रण इंद्रियो होय. तथा चोरिद्रियने एक शरीर, बीजी जीन, त्रीजी ना. सिका अने चोथी चढु, ए चार इंद्रियो होय. ए पांच स्थावरना पांच अने त्रण विकलेंजियना त्रण मली आठ दंगके इंद्रियोनो विचार कह्यो.
हवे शेष रह्या जे दश नवनपतिना दश दमक, तथा एक व्यंतरनो, एक ज्योतिषीनो अने एक वैमानिकनो मलीने देवोना तेर दमक तथा चौदमो गर्नज मनुष्यनो पंदरमो गर्जज तिर्यंचनो अने शोलमो नारकीनो, ए सोल दमके शरीर, जीन, नासिका, चक्कु
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अने कान, ए पांच इंद्रियो होय. ए बाउk इंद्रियछार कह्यु.
हवे नवमुं समुद्घातद्वार कहे छे. (मणुाणं के०) मनुष्याणां, एटले मनुष्यना एक दंमके (सत्त समुग्घाया के०) सप्त समुद्घाताः, एटले वेदनादिक साते समुद्घात होय ॥ १५ ॥
हवे ए साते समुद्घातनां नाम कहे छे. वेयण कसाय मरणे, वेनविय तेयए य आदारे ॥ केवलि य समुग्घाया, सत श्मे हुँति सन्नीणं ॥१६॥
गाथा १६ मीना छुटा शब्दना अर्थ. वेयण-वेदना.
केवलिय-केवली. कसाय-कषाय.
समुग्धाया-समुद्घात. मरणे-मरण.
सत्त-सात. वेउविय-वैक्रिय. तेयएय-तैजस.
हुति-होय. आहारे-आहार.
सन्नीणं-संज्ञीने. विस्तारार्थः-पहेली (वेयण के ) वेदना, एटले
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५६ वेदना समुद्घात, बीजो (कसायं के) कषायः, एटले कषाय समुद्घात, त्रीजो ( मरणे के ) मरणंः, एटले मरण समुद्घात, चोथो ( वेनविय के) वैक्रियः, एटले वैक्रिय समुद्घात, पांचमो ( तेयए य के० ) तैजसश्चः, एटले तेजोलेश्या मूके ते तैजस समुद्घात, बछो ( आहारे के० ) आहारः, एटले आहार समुद् घात, सातमो ( केवली य के ) केवलीय एटले केवली समुद्घात, (श्मे के० ) श्मे एटले ए (सत्त के० ) सप्त, एटले सात ( समुग्घाया के०) समुद्घाताः, एटले समुद्घात ते ( सन्नीणं के ) संझिनां, एटले संझी पंचेंद्रिय मनुष्यने (हुंति के )जवंति, एटले होय ॥ १६ ॥
एगिदियाण केवल,-ते-आहारग विणा न चतारि॥ ते विनवियवज्जा विगला सन्नीण ते चेव ॥ १७॥
गाथा १७ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
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एगिदियाण-एकेंद्रिय वायुकायने. ते-ते वायुकाय विना चार केवल-केदली.
एकेंद्रिय. तेउ-तैजस.
विउविय-वैक्रिय.
वज्जा-वर्जीने. आहारग-आहारक.
विगला-विकलेंद्रियने विणा-वर्जीने.
सन्नीण-संज्ञीने. उ-वली.
ते-ते सात समुद्घात. चत्तारि-चार,
चेव-निश्चे. विस्तारार्थः-(एगिदियाण के) एकेंद्रियाणां एटले एकेंद्रिय वैक्रिय वायुकाय जीवोने एक (केवल तेउयाहारग विणा के० ) केवलि तैजसाहारकं विना; एटले केवली, बीजो तैजस, त्रीजो आहारक, ए त्रण समुद्घात वर्जीने बाकीना एक वेदना, बीजो कषाय. त्रीजो मरण अने चोथो वैक्रिय, ए (चत्तारि के) चत्वारः, एटले चार समुद्घात होय. (उ के०) तु. एटझे वळी (ते के० ) ते, एटले ते वायुकाय शिवायना एकेंजियना चार दमकना जीवो ( विनवियवजा के०) वैक्रियवाः , एटले एक वैक्रियशिवाय वैदना, कषाय अने मरण ए त्रण समुद्घातवाळा होय, तथा ( विगला के) त्रण विकलेजियना त्रण दमक
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पण तेहीज पूर्वोक्त त्रण समुद्घातबाळा होय अने (सन्नीण के०) संझिनां, एटले संझी पंचेंद्रिय गर्नज मनुष्यने तो (ते के०) ते एटले तेहीज पूर्वे कहेला साते समुद्घात होय. या गाथामां (चेव के०) चैत्र एव निश्च. यार्थमां बे, तथा चकार बे, ते समुच्चयार्थमा . ए सर्व वात उघे कही ॥१७॥
हवे तेज वात आगली गाथाना पूर्वार्धे करी दृढ करे छे. पण गन्नतिरिसुरेसु, नारयवासु चनर तिय सेसे ॥ विगलदिही थावर,-- मिबत्ती सेसतियदिही ॥ १७ ॥
गाथा १८ मीना छुटा शब्दना अर्थ. पण-पांच.
|सेसे-बाकीनाने विषे गम्भतिरि-गर्भज तिर्यच अने.विगल-विकलेंद्रियनो. सुरेसु-देवताने विषे. दुदिछी- दृष्टि. नारय-नारकी अने. थावर-स्थावर. वाऊसु-वायुकायने विषे. पिच्छत्ती-मिथ्यादृष्टि. चऊर-चार.
सेस-बाकीनानी. तिय-त्रण.
|तियदिछी-त्रण दृष्टि. विस्तारार्थः-( गप्नतिरि सुरेसु के०) गर्भजतिर्य
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क्सुरयोः, एटले गर्भज तिर्यचनो एक दमक अने देवोना तेर दमक, ए चौद दमकने विषे एक आहारक अने बीजो केवल ए बे समुद्घात वर्जी बाकीना (पण के० ) पंच, एटले पांच समुद्घात होय. तथा (नारय वासु के) नारकवाय्वोः, एटले नारकीनो एक दमक अने वायुकायनोएक दंगक, ए बे दमकने विषे एक वेदना, बीजो कषाय, त्रीजो मरण अने चोयो वैक्रिय, ए (चउर के०) चत्वारः, एटले चार समुद्घात होय,अने (सेसे के०) शेषे, एटले शेष रह्या जे एक वायु काय विना बाकीना चार स्थावर जीवोनाचार दमक, तेने विषे एक वेदना, बीजो कषाय अने त्रीजो मरण, ए (तिय के०) त्रयः, त्रण समुद्घात होय. ए चोवीश दमके सात समुद्घात, नवमुं हार कह्यु.
हवे दशमुं द्रष्टिद्वार कहे छे. (विगल उदिट्टी के०) विकल द्विदृष्टि, एटले विकलेजियना त्रण दमकने विषे एक तो मिथ्या दृष्टि अने केटलाएक विकलेंप्रिय जीव अपर्याप्तावस्थाए समकिती पण होय, माटे बीजी समयगृदृष्टि, ए बे
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दृष्टि होय, तथा (यावर मिजुत्ती के०) स्थावर मिथ्याविनी, एटले स्थावरना पांच दमके तेमज संमूर्बिम मनुष्यमां पण एक मिथ्यादृष्टि होय, अने (सेस तियदिट्टी के०) शेष त्रिदृष्टि, एटले शेष एटले पूर्वोक्त आठ दमक मूकीने शेष रह्या जे एक नारकी, एक गर्भज तिर्यच, एक गर्भज मनुष्यनो अने तेर देवताना मलीने सोल दमक, तेने विषे सम्यक्त्व, मिथ्यात्व अने मिश्र, ए त्रणे द्रष्टि होय. एमां पण नव ग्रैवेयके एक सम्यक्त्व अने बीजी मिथ्यात्व, ए बे द्रष्टिज लाने तथा पांच अनुत्तर विमाने एक समकित द्रष्टि लाने. तथा संमुर्बिम तिर्यचने एक सम्यक्त्व अने बीजी मिथ्यात्व, ए बे द्रष्टि लाने. ए दशमुं द्रष्टिहार का ।१७।
हवे अगीयारभु चार दर्शन द्वार कहे छे. थावरबितिसु अचरकु, चरिंदिसु तदुगं सुए नणियं ॥ मणुआ चनदंसणिणो, सेसेसु तिगं तिगं नणियं ॥ १० ॥
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- गाथा १९ मीना छुटा शब्दना अर्थ. थावर-स्थावर.
भगियं-कह्यां छे. बि-इंद्रिय.
मणुआ-मनुष्यो. तिसु-तेइंद्रियने विषे. चउदंसणिणो-चार दर्शनवाला. अचख्कु-अचक्षुदर्शन. सेसेसु-बाकीनाने विषे. चरिंदिसु-चौरिंद्रियने विषे. तिगं तिगं-त्रण त्रण (दर्शन.) तदुग्गं-ते बे. (चक्षु अने अचक्षु ) भणियं-कयां छे. मूए-मूत्रने विषे.
विस्तारार्थः, (थावर बितिसु के० ) स्थावर वित्रिषु, एटले पृथ्व्यादिक पांच स्थावरना पांच दंगक तथा बेइंद्रियनो एक दंझक अनेत्रींद्रियनो एक दमक, एवं सात दमकने विषे एक (अचस्कु के०) अचकुः, ए. टले अचकुदर्शन होय, केमके एमां चरिंद्रिय नथी. तथा ( चरिंदिसु के० ) चतुरिंद्रियेषु, एटले चौरिंद्रियने विषे ( तत्रुगं के० ) तद्धिक, एटले एक चतु अने बीजं अचछु ए बे दर्शन ( सुए जणियं के० ) सुत्र नणितं, एटले सिद्धांतने विषे कह्यां बे, तथा (मणुया के०) मनुष्याः, एटले गर्नज मनुष्यनो एक दंगक एक चतु, बीजं अचकु, त्रीजु अवधि
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अने चो) केवल, ए (चउदंसणिणो के ) च. तुदर्श निनः एटले चारे दर्शनवाळा होय. ए नव दम के दर्शन विवरीने कह्यां. (सेसेसु के०) शेषेषु, एटले शेष रह्या जे तेर देवताना दंमक, एक नारकीनो अने एक पंचेंद्रिय तिर्यचनो ए पंदर दंमकोने विषे एक चहु, बीजं अचहु अने त्रीजु अवधि, ए (तिगं तिगं के०) त्रिकं त्रिकं, एटले त्रण त्रण दर्शन सिद्धांतोमा (जणि. यं के0) जणितं, एटले कह्यां . ए अगीयारमुं दर्शनछार कर्जा ॥१५॥ हवे बारमुं पांच ज्ञाननुं अने तेरमुं त्रण अज्ञानतुं
• ए बे द्वार साथे कहे छे. अन्नाण--नाण--तियतिय, सुर--तिरि-निरए थिरे अनाणदुगं॥ नाणन्नाण दु विगले, मणुए पण
नाणतिअनाणा ॥२०॥
गाथा २० मीना छुटा शब्दना अर्थ. अन्नाण-अज्ञान.
सुर-देवता. नाण-ज्ञान.
तिरि-तिर्यच. तियतिय-त्रण त्रण निरए-नारकीनेविषे.
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थिरे--स्थावरने विषे विगले-विकलेंद्रियने विषे. अन्नाणदुर्ग-चे अज्ञान मणुए-मनुष्यने विषे. नाणन्नाण-ज्ञान अने अज्ञान. पणनाण-पांच ज्ञान अने.
तिअनाण-त्रण अज्ञान. __विस्तारार्थः-(सुर तिरिनिरये के० ) सुरतिर्यग्निरये, एटले देवताना तेर दमक तथा पंचेप्रिय तिर्यचनो एक दंमक अने नारकीनो एक दमक एवं पंदर दमकने विषे मिथ्यादृष्टि जीवने एक मतिअज्ञान, बीजु श्रुतअज्ञान अने त्रीजु विनंगज्ञान, ए त्रण अ. झान होय; अने सम्यग्दृष्टि जीवने एक मतिझान, बीजु श्रुतझान अने त्रीजु अवधिज्ञान, ए त्रण ज्ञान होय. ए रीते (अन्नाणनाणतियतिय के०) अज्ञानशान त्रिक त्रिके, एटले अज्ञान त्रण अने ज्ञान पण त्रण होय. तथा एकेद्रियादिक (थिरे के०) स्थावरे, एटसे स्थावर जीवोना पांच दंगकने विषे (अनाणगं के०) अज्ञानकिं, एटले एक मतियज्ञान अने बीजुं श्रुतअज्ञान, ए बे अज्ञान होय, केमके स्थावरने समकित नश्री, माटे ज्ञान पण नथी जो के सिद्धांतना मते पृ
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६४ वी, अप अने वनस्पतिकायमा समकितने वमता एवा देवोनी उप्तत्ति थाय , त्यारे सास्वादन होवाथी तेओने मति अने श्रुतझान होय , परंतु तेनो अहीं अधिकार नथी. तथा (विगले के०) विकले, एटले विकलेंप्रिय जीवना त्रण दमकने विषे (मुके०) हे, एटले बे (नाणन्नाण के०) ज्ञानाझाने, एटले ज्ञान अने अज्ञान होय. एटले विकलेंद्रियमां नवांतरथी जे जीव सास्वादन समकित लाव्यो होय, तेने अपर्यातावस्थाएज एक मतिझान अने बीजु श्रुतझान, ए बे ज्ञान होय; अने बीजा जीवोने तो सर्व अवस्थाए एक मतिअज्ञान अने बीजु श्रुतअंडान, ए बे अज्ञानज होय; अने ( मणुए के०) मनुष्ये, एटले मनुष्यना एक दमके तो ( पणनाण त्तियनाणा के ) पंचज्ञान व्यझाने, एटले मतिज्ञानादिक पांचे ज्ञान होय, तया मतिअज्ञानादिक त्रण अज्ञान पण होय. ए समस्त मनुष्य या श्रयी जाणवू. ए चोवीश दंगके बारमु झानहार अने तेरमुं अज्ञानद्वार, ए बे साथे कह्यां ॥ ॥
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हवे चौदामु पंदर योगर्नुधार कहे छे. श्क्कारस सुरनिरए, तिरिएसु तेर पन्नर मणुएसु॥ विगले चन पण वाए, जोगतियं थावरे हो॥ २१॥
____ गाथा २१ मीना छुटा शन्दना अर्थ. इकारस-अगीयार.. विगले-विकलेंद्रियने विषे. सुर-देवता अने.
चउ-चार. निरए-नारकीने विषे. |पण-पांच. तिरिएसु-तिर्यचने विषे. वाए-वायुकायने विषे. तेर-तेर.
जोगतियं-त्रण जोग. पन्नर-पंदर.
स्थावरे-स्थावरने विषे. मणुएमु-मनुष्यने विषे. . होइ-होय.. ____ विस्तारार्थः-(सुर निरये के०) सुरनिरये, एटले देवताना तेर दंमक अने नारकीनो एक दमक, एवं चौद दमकने विषे सत्य मनोयोगादि चार योग मनना अने सत्य वचनयोगादि चार योग वचनना, तथा एक वैक्रिय, बीजो तैजस अने त्रीजो कार्मण, ए त्रण योग कायना मलीने ( कारस के० ) एकादश, एटले अगीयार योग होय. तथा ( तिरिएसु के०) तिर्यकु,
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६६ एटले तिर्यचना एक दंरुकने विषे एक आहारक काययोग ने बीजो आहारक मिश्रकाययोग, ए बे योग वर्जीने बाकीना ( तेर के० ) त्रयोदश, एटले तेर योग होय, तथा ( मलुएस के० ) मनुष्येषु, एटले मनुयना एक दमकने विषे ( पन्नर के० ) पंचदश, एटले पंदर योग सर्वे लाने तथा (विगले के) विकले एटले निकलेंद्रियनात्रण रुकने विषे एक औदारिक काययोग, बी. जो खदारिक मिश्रकाययोग, त्रीजो कार्मण काययोग छाने चोथो सत्यामृषा वचनयोग, ए (चन के० ) चत्वारः, एटले चार योग होय, तथा (वाए के० ) वायौ, एटले वायुकायना एक रुकने विषे एक प्रोदारिक काययोग, बीजो श्रदारिक मिश्रकाययोग, त्री जो वैकिय काययोग, चोथो वैक्रिय मिश्रकाययोग
ने पांचम कार्मण काययोग, ए ( पण के० ) पंच, एटले पांच योग होय. तथा एक वायुकाय वर्जीने शेष ( थावरे के० ) स्थावरे, एटले पृथिव्यादिक चार स्थावरना चार रुकने विषे एक यदारिक काययोग, बीजो श्रदारिक मिश्रकाययोग ने त्रीजो
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कार्मण काययोग, एवं (जोगतियं के० ) योगत्रिकं, एटले त्रण योग (होश के० ) जवति, एटले होय. ए चोवीश दमके पंदर योगनुं चौदमुं हार कयुं ॥ २१ ॥
___ हवे पंदरमुं बार उपयोगनुं द्वार कहे छे. उवऊंगा मणुएसु, बारस नव (नरयतिरियदेवेसु ॥ विगलागे पण बकं, चरिंदिसु थावरे तियगं ॥१२॥
गाथा २२ मीना छुटा शब्दना अर्थ.. उवओगा-उपयोग. | विगलदुगे-विकलद्विकं ( बेइंद्रिय मणुएसु-मनुष्यने विषे.
__अने तेइंद्रियने विषे.) बारस-बार.
पण-पांच. नव-नव.
छक्कं छ.. निरय-नारकी.
चउरिदिसु-चौरिद्रियने विषे. तिरिय-(पंचेंद्रिय ) तिर्यंच. थावरे-स्थावरने विषे. देवेसु-देवताने विषे. तियग-त्रण.
विस्तारार्थः-( मणुसएसु के० ) मनुष्येषु, एटले मनुष्यना एक दमकने विषे (बारस के ) द्वादश, एटले बार (उवधंगा के०) उपयोगाः, एटले उपयोगो होय, तथा (निरय तिरियदेवेसु के०) निरयतिर्यग्देवेषु,
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६७ एटले नोरकीनो एक दमक अने पंचेंजिय तिर्यचनो एक दंमक तथा देवताना तेर दमक, ए पंदर दमकने विषे पूर्वोक्त बार उपयोगमांथी एक मनःपर्यवकान, बीजें केवलज्ञान अने त्रीजुं केवलदर्शन, त्रण उपयोग टालीने बाकी ( नव के०) नव, एटले नव उपयोग होय, तथा ( विगलागे के०) विकलहिके, एटले विकलेंपियना बेइंघिय अने तेइं. जिय, ए बे दमकने विषे एक मतिज्ञान, बीजु श्रुतज्ञान, त्रीजु मतिअज्ञान, चोथु श्रुतअज्ञान अने पांचमुं अचकुदर्शन ए (पण के० ) पंच, एटले पांच उपयोग होय, तथा (चरिंदिसु के०) चतुरिंख्येिषु, एटले चौरिंजियना दमकने विषे पूर्वोक्त पांच उपयोगनी साथे उहं चतुदर्शन नेलीए त्यारे ( बकं के ) षटकं, एटले उ उपयोग थाय. संमृर्बिम तिर्यचने पण ए ब होय. तथा ( थावरे के ) स्थावरे, एटले एकेद्रियादिक पांच स्थावरना पांच दंमके एक मतिअज्ञान, बीजुं श्रुतअज्ञान अने त्रीजु अचकुदर्शन, ए (तियगं के० ) त्रयकं, एटले त्रण उ. पयोग होय. तथा संमूर्बिम मनुष्यने मतियज्ञान,
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६॥ श्रुतवज्ञान, चहुदर्शन अने अचकुदर्शन, ए चार उपयोग होय; तथा सिद्धना जीवोने एक केवलज्ञान, बी. रॉ केवलदर्शन, ए बे उपयोग होय ॥२५॥ ए चोवीश दमके पंदरमुं उपयोगहार का.
हवे सोलमुं प्रत्येक दमकने विषे एक समयमा केटला जीव आवी उपजे, तेनी संख्यानुं धार तया सत्तरमुं प्रत्येक दंमकमांथी एक समयमा केटला जीव च्यवे, तेनी संख्यान छार, ए बे साथे कहे . संखमसंखा समए, गन्नयतिरिविगल नारयसुरा य॥मणु नियम संखा, वणऽणंता
थावर असंखा ॥२३॥
गाथा २३ मीना छुटा शब्दना अर्थ. संखमसंखा-संख्याता अनेमणुआ-मनुष्यो.
. असंख्याता. |नियमा-नियमथी, निश्चे. समए-समयने विषे. संखा-संख्याता. गम्पयतिरि-गर्भज तिर्यच. वण-वनस्पतिकाय. विगल-विकलेंद्रिय.
अणता-अनंता. नारय-नारकी.
थावर-स्थावर. मुरा-देवता.
असंखा-असंख्याता. य-अने.
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विस्तारार्थः-(गप्पयतिरि विगल नारय सुरा केय) गर्भजतिर्यग्विकलनारक सुराः, एटले आ चौदराज लोकमां पण गर्भज तिर्यचनो एक ईमक तथा विकलें. प्रियना त्रण 'दंमक तथा नारकीनो एक दंमक अने देवताना तेर दमक, ए सर्व मली अढार दमकना जीव ते ( संखमसंखा के० ) संख्याताऽसंख्याताः, एटले एक, बे, त्रण, दश, वीश, एम संख्याता अथवा असंख्याता (समए के०) समये, एटले एक समयमांहे उपजता लाने (य के०) च, एटले तथा (मणुया के० ) मनुष्याः, एटले मनुष्यना एक दमकना जीव (नियमा के०) नियमात्, एटले नियमथकी एक समयने विषे (संखा के० ) संख्याताः, एटले संख्याता जीव उपजता लाने, ए गर्नज मनुष्य आश्रयी जाणवू. तथा पांच स्थावरमांहेला (वणऽणंता के० ) वनानंताः, एटले वनस्पतिकायना दमकना अनंता जीव एक समयमा उपजे, तथा एक वनस्पतिकाय विना बाकीना चार ( थावर के ) स्थावराः, एटले स्थावरना चार दमकना जीव एक समयमां (असंखा के०) असंख्याः , एटले असं.
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ख्यताज जीव उपजे, कारण के “ निच्चमसंखो नागो अणंतजीवो चयइए" एटले नित्य चार स्थावरना जी. वोमां असंख्यातमो जाग अनंतजीव उपजे, तेथी तेयो संख्याता के अनंता नथी. ॥ २३ ॥
असन्नी नर असंखा जद उववाए तदेव चवणेवि ॥ बावीस सग ति दस वास,-सहस्स नक्कि पुढवाई॥२४॥
___गाथा २४ मीना छुटा शब्दना अर्थ. असभी नर-असंज्ञी मनुष्यो. सग-सात. असंखा-असंख्याता. . ति-त्रण. जह-जेम.
दस-दश. . उववाए-उपजे.
वास-वर्ष. तहेव-तेमज.
सहस्स-हजार. चवणेवि-च्यवनने विषे पण. उकिट-उत्कृष्टी. बावीस-बावीश.
| पुढवाई-पृथिव्यादिकनी. विस्तारार्थः-तथा मनुष्यना दमक मांदेला (अ. सन्नी नर के ) असंही मनुष्यः, एटो संमूर्छिम मनुष्य ते एक समयमा (असंखा के० ) असंख्यातः, एटले असंख्याता उपजे. (जह के० ) यथा, एटले
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जेम चोवीसे दमकने विषे एक समयमां (उववाये के0) जपपाते, एटले उपजवामां संख्या कही (तहेव के०) तथैव, एटले तेमज चोवीश दमकोने विषे ( चवणेवि के ) च्यवनेऽपि, एटले च्यवनने विषे पण जाणवू; अर्थात् च्यववानी संख्या- छार पण एमज कहे. ए रीते सोलमुं उपपातछोर अने सत्तरमुं च्यववानुं द्वार, ए बे द्वार साथे कह्यां.
हवे अढारमुं चोवीशे दमकने विष श्रायुःस्थितिना प्रमाणनुं हार कहे . ___ (बावीस के० ) छाविशतिः, एटले बावीश अने (सग के० ) सप्स एटक्षे सात, ( ति के० ) त्रीणी, एटले त्रण ( दस के० ) दश, एटले दश ( वाससहस्स के० ) वर्षसहस्राणि, एटले हजार वर्ष सुधी अहीं वास शब्द अने सहस्स शब्द बावीसादि प्रत्येक शब्द साथे जोमवा, एटले बावीस हजार वर्ष, सात हजार वर्ष त्रण हजार वर्ष, अने दश हजार वर्ष, ए (नकिक के०) उत्कृष्टं, एटले उत्कृष्टी आउखानी स्थिति अनुक्रमे पांच स्थावरमाथी एक तेउकाय वर्जीने बाकी ( पुढ
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वाई के० ) पृथिव्यादीनां एटले पृथिव्यादिक चार स्थावरोना चार कोनी कहेवी. ते विवरी ने कहीए बीए. पृथ्वी कायनी बावीस हजार वर्षनी, अप्कायनी सात हजार वर्षनी, वायुकायनी त्रण हजार वर्षनी ने वनस्पतिकायनी दश हजार वर्षनी श्रायुःस्थिति जावी. ए चार स्थावरनुं वायु कह्यं ॥ २४ ॥ तिदिग्ग तिपल्लान, नरतिरि सुरनिरयसागरतितीसा ॥ वंतरपल्लं जोइस, वरिस लरका - दियं पलियं ॥ २५ ॥
गाथा २५ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
तिदिन -त्रण दिवस के आयु जेनुं | सागर-सागरोपम.
एवा.
तितीसा - तेत्रीश.
अग्गि- अग्निकाय. विपला-त्रण पल्योपम.
आउ - आयुष्यवाळा. नर- मनुष्य अने. तिरि-तिर्यच.
सुर-देवता अने. निरय- नारको.
वंतर- व्यंतरनुं.
पल्लं - पल्योपम.
जोइस - ज्योतिषीनुं.
वरिस - वर्ष.
|लख्क-लाख. अहियं-अधिक. पलियं - पल्योपम.
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७४ विस्तारार्थः-(तिदिण म्गि के०) त्रिदिनाग्निः, एटले त्रण दिवसनी उत्कृष्ट स्थिति जेनी , एवा अ. ग्निकाय जीवो जाणवा. तथा (नर तिरि के० ) नरतिर्यक, एटले मनुष्य अने तिर्यच ए बे दमकना जीव (तिपदान के०) त्रिपक्ष्यायुः, एटले त्रण पक्ष्योपमनी आयुःस्थितिवाळा जाणवा. तथा (सुर निरयसागरतितीसा के०) सुरनिरयसागरत्रयस्त्रिंशत्, एटले सुर ते वैमानिक देवता अने निरय ते नारकीनो दमक, एनी तेत्रीश सागरोपमनी उत्कृष्ट बायुःस्थिति जाणवी. तथा (वंतर पल्लं के०) व्यंतरपल्यं, एटले व्यंतर दे. वोर्नु एक पट्योपमनुं आयु जाणवू. तथा (जोइस के0) ज्योतिष्कस्य, एटले (वरिसलरकाहियं पलियं के० ) ज्योतिषी देवोनुं वर्षलदाधिकं पन्यं, एटले एक लाख वर्षे अधिक एक पढ्योपम चंद्रमानुं आयुष्य जाणवं, अने एक पक्ष्योपम एक हजार वर्षे अधिक सूर्यनुं आयुष्य जाणवू ॥ २५॥
____ हवे असुरनी आयुःस्थिति कहे छे. असुराणं अहिय अयरं, देमृणदुपल्लयं
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नव निकाए | बारसवासुलुप दिए, बम्मास किठ विगलान ॥ २६ ॥
गाथा २६ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
असुराणं- असुरकुमारोनुं. अहिय-अधिक.
अयरं - अतर, सागरोपम.
उणा (कांइक ओछु).
देसूग - देशे दुपल्लयं - वे पल्योपम. नवनिकाए - नव निकायने विषे.
बारसवास - बार वर्ष.
उणुपणदिण - उगणपचास दिवस.
छम्मास-छ महिना.
उकि - उत्कृष्ट. विगल - विकलेंद्रियनुं. आउ - आयुष्य.
विस्तारार्थः - (सुराणं के० ) असुराणं, एटले एक असुरकुमार निकाय संबंधी देवोना दंगकने विषे ( हिय यरं के० ) अधिकं अतरं, अधिकं एटले तर ते नहीं तराय जेनो पार न पमाय, तेने खतर एटले सागरोपम जाणवुं. माटे एक सागरोपमथी - धिक ते कांइक काजेरुं त्र्यायु जाणवुं; तथा ए एक असुरकुमार निकाय विना बाकी (नव निकाए के०) नव निकाये, एटले नव निकायने विषे देवोनुं श्रायु (देसू पल्लयं के० ) देशोन पिल्यकं, एटले देशे ऊणा अर्थात् कांइक उएं बे
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पस्योपमनुं श्रायु जाणवू. तथा बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चौरिप्रिय, ए त्रण (विगलान के० ) विकलेंप्रियायुः, एटले विकलेंजिय जीवोनुं वायु जेटवू डे तेटलुं कहे बे. (बारसवास के० ) द्वादशवर्ष एटले बार वर्ष ( नणुपणदिण के० ) एकोनपंचासदिनानि, एटले उगणपचास दिवस अने (बम्मास के० ) षण्मासं, एटले उ महिना, ए अनुक्रमे जाणवू. एटले बेइंपियन बार वपर्नु आयु तथा तेइंद्रियनुं गणपचास दिवस, आयु अने चौरिजियन ब महिनानुं बायु जाणवू. ए (नकित के०) उत्कृष्टं, एटले उत्कृष्ट आयुष्य कह्यं ॥२६॥
. हवे जघन्य आयुष्यनी स्थिति कहे छे. पुढवाइदसपयाणं, अंतमुहुत्तं जहन्नानविई॥ दससदसवरिसहिई, नवणादिवनिरयवितरीया॥२॥
गाथा २७ मीना छुटा शब्दना अर्थ. पुढवाइ-पृथ्वीकायादि. जहन्न-जघन्य. दसपयाणं-दश पदोनी. आउ-आयुष्य. अतमुटुत्तं-अंतमूहुर्त. |ठिई-स्थिति.
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दससहसवरिस-दश हजार वर्ष. निरय-नारकी. डिई-स्थितिवाळा.
वितरिया-व्यंतर देवो. भवणाहिव-भवनपति.
विस्तारार्थः-(पुढवाश् दसपयाणं के० ) पृथिव्यादिदशपदानां, एटले पृथ्वीकाय ने आदि जेमां, एवां पृथ्वीकायादिक दश पद, तेमां पांच स्थावरना पांच दमक, तथा त्रण विकलेंद्रियना त्रण दंगक, अने तिर्यच पंचेंद्रियनो एक दंमक, तथा मनुष्यनो एक दंगक, एवं दश पदरुप दश दमकने विषे (जहन्नथाउठिई के०) जघन्यायुःस्थितिः, एटले जघन्यथकी आयुनी स्थिति (अंतमुहुत्तं के ) अंतर्मुहूर्त एटले 'एक अंतमुहूर्तनी जाणवी, तथा (जवणादिव निरयवितरीया के० ) जवनाधियनिरयव्यंतरिकाः, एटसे अनुक्रमे जवनाधिप ते जवनपतिना दश दंगक अने निरय नारकीनो एक दमक, तथा व्यंतर देवोनो एक दमक, एवं बार दंगकना जीवो (दससहसवरिसहिई के०) दशसहस्रवर्षस्थितयः, एटले दश हजार वर्षनी स्थितिवाळा जाणवा ॥१७॥
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हवे वैमानिकनी आयुःस्थिति कहे छे. वेमाणियजोइसिया, पल्लतयहंस आना हुँति॥सुरनरतिरिनिरएसुब, पजत्ती थावरे चनगं॥२०॥
गाथा २८ मीना छुटा शब्दना अर्थ. वेमाणिय-वैमानिक. नर-मनुष्य. जोइसिया-ज्योतिषी. तिरि-तिर्यच. पल्ल-पल्यापम.
निरएसु-नारकीने विषे. तयलुस-तेनो आठमो भाग. छ पज्जत्ती-छ पर्याप्ति. आउआ-आयुष्यवाळा. थावरे-स्थावरने विषे. हुंति-थाय छे.
चउगं-चार. सुर-देवता.
विस्तारार्थः-( वेमाणिय जोसिया के०) वैमा. निक ज्योतिष्को, एटले वैमानिक देवो अने ज्योति. षी देवो ( पल्लतयहंस आउआ के० ) पक्ष्यतदष्टांशायुषी, एटले एक पट्योपम तथा तदष्टांश एटले पूर्वोक्त एक पक्ष्योपमनो अष्टमांश अर्थात् पाठमो नाग, एटला जघन्य थायुवाळा ( हुंति के० ) जवतः, एटले होय . ए अढारमुं आयुःस्थितिनुं हार कडूं.
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पए हवे ओगणीशमुं छ पर्याप्तिनुं द्वार कहे छे. . ( सुर नरतिरिनिरएसु के० ) सुरनरतियग्निरयेषु, एटले देवताना तेर दमक मनुष्यनो एक दमक, तिर्यंचनो एक दमक अने नारकीनो एक दमक, एम सोल दमकने विषे (उपजत्ती के०) षट्पर्याप्ति, एटले बए पर्याप्ति होय, अने. ( थावरे के० ) स्थावरे, एटले पृथिवीकायादिक पांच स्थावरना पांच दंमके एक जाषा अने बीजु मनए बे पर्याप्ति विना बाकी ( चगं के० ) चतुष्कं, ए. चार पर्याप्ति होय, अपर्याप्त जीवो पण त्रण पर्याप्ति पुरीकरीनेज मरे , ते पहेला मरता नथी ॥२०॥
हवे विकलेंद्रिय जीवोने पर्याप्ति कहे छे. विगले पंचपजत्ती, बद्दिसिआदार होइ सवेसिं ___पणगाइपए जयणा, अद सन्नितियं
जणिस्सामि ॥ २ ॥
गाथा २९ मीना छुटा शब्दना अर्थ. विगले-विकलेंद्रियने विषे. छदिसि-छ दिशानो. पंच-पांच.
आहार-आहार. पजत्ती-पर्याप्ति.
होइ-होय.
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G०
| अह-हवे.
सव्वेसिं-सर्वने विषे. पणगाइ-पंचकादि.
समितियं-त्रण संज्ञा. पए-पदने विषे.
भणिस्सामि-कहीश. भयणा-भजना.
विस्तारार्थः-(विगले के०) विकले, एटले विकलेंद्रियने त्रण दंगके एक मनःपर्याप्ति विना बाकीनी (पंचपजत्ती के०) पंचपर्याप्ति, एटले पांच पर्याप्ति होय ए उंगणीशमुंउ पर्याप्तिनुं हार कह्यु,
हवे वीशमुं आहारद्वार कहे छे. ( सव्वेसिं के०) सर्वेषु, एटले सर्वे चोवीशे दंगकोने विषे चार दिशा अने अधोदिशा तथा ऊर्ध्वदिशाए (बहिसियाहार के०) षदिशाहारः, एटले गए दिशानो आहार (होश के०) नवति, एटले होय, परंतु (पणगाइपए के0) पंजकादिपदे, एटले पृथिव्यादिक पांच स्थावरना पदने विषे (जयणा के०) जजना, एटले जजना जाणवी. एने उ दिशानो आहार होये पण, अने न पण होय, केमके लोकने अंते रह्या एवाजे सूक्ष्म पांच स्थावर, ते त्रण दिशानो तथा चार
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दिशानो तथा पांच दिशानो पण आहार ले बे. तथा दमकविचारनी अवचूर्णीमां का डे के, लोकनी अंदर रहेला जीवोने पांच दिशानो आहार होय. तथा लोकना निष्कुटोमांरहेला जीवोने त्रण तथा चार दिशानो आहार होय जे शरीरे फरसे, ते उजाहार कहीए; त्वचाए करी फरसे, ते लोमाहार कहीए; कवलादिकनो प्रक्षेपाहार कहीए; तेमां नारकी जीवोने उ. जाहार अने लोमाहार ए बेन अहार मनमां चिंतव्या पड़ी बेन अमनोज्ञ परिणमे, तथा देवताने उजाहार अने लोमाहार शुजमनोज परिणमे; एकेंद्रियादिक पांचे थावग्ने अोजाहार अने लोमाहीर होय; तथा त्रण विकलेंद्रिय, चोया तिर्यच पंचेंद्रिय अने पांचमा मनुष्य, एमने उजाहार, लोमाहार अने कवलाहार, ए त्रणे थाहार होय. ए वीशमु आहारद्वार कह्यु. ___(अह के० ) अथ, एटले हवे ( सन्नितियं के०) संझात्रिकं, एटले त्रण संझार्नु एकवीशमुं धार (जणिस्सामि के० ) नणिष्यामि, एटले कहीश ॥२॥ चनविदसुरतिरिएसु, निरएमु अ दीदकालिगी
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सणा ॥ विगले देउवएसा, सन्ना
रहिया थिरा सवे ॥३०॥
गाथा ३० मीना छुटा शब्दना अर्थ चउविह-चार प्रकारना. सणा-संज्ञा. सुर-देवता अने.
विगले-विकलेंद्रियने विषे. तिरिएमु-तिर्यचने विषे. हेउवएसा-हेतुपदेशिको. अ-वली.
सन्नारहिया-संज्ञारहित. निरएम-नारकीने विषे. थिरा-स्थावर. दीहकालिगी-दीर्घकालिकी. सव्वे-सर्वे.
विस्तारार्थः-जवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक, ए ( चनविह सुरतिरिएसु के० ) चतुविधसुरतिरश्चौः, एटले चतुर्विध एटले चार प्रकारना देवता तेना तेर दंमके तथा तिर्यचनो एक दंमक तेने विषे, (अ केश) वली (निरएसु के० ) निरयेषु, एटले सात नारकीनो एक दमक, ए पंदर दंगके ( दोहकालिगी सणा के०) दीर्घकालिकी संज्ञा, एटले एक दीर्घकालिकी संझा होय; ए अमुक काम करयुं, अमुक काम करुं बुं, अमुक काम करीश, एम अतीत, अनागत अने वर्तमान, एत्रण काल विषयिक ज्ञान जेने विषे होय, तेने दीर्घकालिकी संज्ञा कहीए.
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(विगले के०) विकले, एटले विकलेजियना त्रण दंगके एक ( हेउवएसा के० ) हेतूपदेशा, एटले हेतू. पदेशिकी संज्ञा होय. एमने नाश्मन डे माटे, अने कांक मनोझान सहित वर्तमानकालने विषे श्ष्ट वस्तुमा प्रवृत्ति अने अनिष्ट वस्तुथी निवृत्तिरूप विष. यज्ञान होय, तेने हेतुपदेशीकी संझा कहीए. तथा ( थिरा सवे के०) स्थिराः सर्वे, एटले पांचे स्थावर ते ( सन्नारहिया के० ) संझारहिताः, एटले त्रणे संझाए रहित होय, केमके एने एकज काययोग डे, माटे त्रण संज्ञामांहेली एके संज्ञा न होय ॥ ३० ॥ मणुआण दीदकालिय, दिहीवाउँवएसिआ केवि ॥ पऊपणतिरिमणुअच्चिय, चन
विददेवेसु गबंति ॥ ३१ ॥
गाथा ३१ मीना छुटा शब्दना अर्थ. मणुआण-मनुष्यना. पणतिरि-पंचेंद्रिय तिर्यच अने. दीहकालिय-दीर्घकालिकी. मणुअ-मनुष्य. दिहीवाभोवएसिपा-दृष्टिवादोप- |च्चिय-निश्चे.
देशिकी. । चउविह-चार प्रकारना. केवि-केटलाकने, कोइएकने. देवेमु-देवताने विषे. पज्जा--पर्याप्ता.
गच्छंति-जाय छे.
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४ विस्तारार्थः-(मणुाण के० ) मनुष्याणां, एटसे मनुष्यना एक दंगकने विषे (दीहकालिय के०) दीर्घकालिकी, एटले एक दीर्घकालिकी संज्ञा होय, तथा बीजी (दिहीवाठवएसिया के० ) दृष्टिवादोपदेशिकी, एटले दृष्टिवादोपदे शिकी संज्ञा होय, ए बीजी संज्ञा. वाळा पण (केवि के0) केऽपि, एटले कोईएक दायोपशमिक आदिसमकित सहित सम्यग्दृष्टि चौदपूर्वधर प्रमुख होय, अनेत्रीजी हेतूपदेशिकी संज्ञा जे पूर्वे विकलेंद्रियना त्रण दमके कही , ते संज्ञा दीर्घ कालनी संझामांहे अंतर्जूत , माटे अहींयां जूदी कही नथी. ए त्रण संज्ञानुं द्वार कह्यु. ___हवे बावीशमुं गतिहार तथा तेवीशमुं आगतिछार ए बे छार साथे कहे - ___(पऊपण तिरि मणु के० ) पर्याप्तपंचेंद्रियतिर्यग्मनुष्याः, एटले पर्याप्ता पंचेंद्रिय तिर्यच अने पर्याप्ता मनुष्य ए बे दमकना जीव ( चनविहदेवेसु के0 ) च. तुर्विधदेवेषु, एटले चतुर्विधदेवोने विषे अर्थात् जवनपत्यादिक चार प्रकारना देवोसंबंधी तेर दमकने विषे
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(चय के० ) चैव, एटले निश्चे ( गढ़ति के० ) गबंति एटले जाय बे. एम देवताना तेर दमकने विषे गति कही ॥ ३१ ॥
हवे ए देवताना तेर दंडकनी आ गति कहे छे. संखानपऊपणिदि,-तिरिनरेसु तदेव पजत्ते ॥ जूदगपत्तेयवणे, एएसु चिय सुरागमणं ॥३॥
गाथा ३२ मीना छुटा शब्दना अर्थ. संग्खाउ-संख्याता वर्षना आयु- भु-पृथिवोकाय. .
प्यवाला. दग-अपकाय. पज्जपणिदि-पर्याप्ता पंचेंद्रिय.
पत्तेयवणे-प्रत्येक वनस्पतिकाय.. तिरि-तिर्यच.
एएस-ए (पांच ) ने विषे. नरेसु-मनुष्यने विषे.. [च्चिय-निश्चे. तहेव-तेमज.
सुरागमणं-देवतार्नु आगमन पज्जत्ते पर्याप्ता.
(उपजq.) विस्तारार्थः-असंख्याता वर्षना आयुष्यवाला युगलिया टालीने शेष ( संखाउ पज्जपणि दितिरिनरेसु के ) संख्यातायुः पर्याप्त पंचेंद्रियतिर्यग्नरयोः, एटले संख्याता वर्षना थायुवाला एवा पर्याप्तपंचेंघिय एटले पर्याप्ता पंचेंद्रिय एवा एक तिर्यच अने बीजा म
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नुष्यने विषे ( तहेव के० ) तथैव, एटले तेमज त्रीजा ( पहात्ते के० ) पयोते, एटले पर्याता एवा (जू दग. पत्तेयत्रणे के०) जूदकप्रत्येकवने, एटले पृथिवीकाय, चोथा उदक एटले अपकाय, पांचमा प्रत्येकवने ते प्रत्येक वनस्पतिकाय, ( एएसु चिय के० ) एतेषु एवा एटले एज पांच दंमकने विषे निश्चे तेर दमकवाल, (सुरागमणं के०) सुरागमनं, एटले देवतार्नु बागमन थाय, अर्थात् तेर दमकना देवता च्यवीने ए पांच दमक महेज उपजे ॥ ३ ॥
हवे नारकीनुं गति आगति द्वार कहे छे. पज्जत्तसंखगप्नय,तिरियनरा निरयसत्तगे जंति ॥ निरनवट्टा एएसु, उववजंति
न सेसेसु ॥ ३३ ॥
गाथा ३३ मीना छुटा शब्दना अर्थ. पज्जत्त-पर्याप्ता.
जंति-जाय छे. . संख-संख्याता वर्षना आयुवाला. निरउवट्टा-नरकमांथी नीकला. गभ्पय-गर्भूज
एएसु-ए (बे) ने विषे. तिरिय-तिर्यंच अने. उववज्जति-उपजे. नरा-मनुष्यो.
न-नथी. निरयसत्तमे-साते नारकीने विषे. सेसेमु-बाकीनाने विषे.
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विस्तारार्थः-असंख्याता वर्षना आयुष्यवाला युगलिया विना (पतसंखगप्जयतिरियनरा के० ) पर्याससंख्यायुगर्नजतिर्यग्नरौ, एटले पर्याप्ता एवा, तथा संख्याता वर्षना आयुवाळा गर्भज तिर्यच अने मनुष्य ए बे दमकना जीव ते (निरयसत्तगे के०) निरयसत्तके, एटले साते नारकीना दमकने विषे (जंति के०) यातः, एटले जाय , अने ( निरउवट्टा के० ) नरकोवृत्ताः एटले नरक थकी नीकल्या एवा जे नारकी जीव ते ( एएसु के ) एतयोः, एटले एक युगलिया विना संख्याता आयुष्यवाला एवा पर्याप्ता मनुष्य तथा तियेच ए बे दमकने विषे श्रावी ( उववेांति के० ) उ. पपद्यते एटले उपजे, पण ( सेसेसु के० ) शेषेषु, एटले शेष बावीश दंगकने विष नारकीना जीव (न के ) न उपजे. एज वात कांक विस्तारे कहे . नारकी. मांहे तिर्यच पंचेंद्रिय अने गर्नज मनुष्य यावी उपजे, अने नारकीनो नीकल्यो पण गर्नज तिर्यच अने गर्नज मनुष्यमा आवी उपजे.
हवे कया जीव कश् नरकपृथ्वी सुधी जाय ? ते
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कहे बे. संमूर्बिम तिर्यंच पंचेंद्रिय पहेला नरक पर्यंत जाप. जुजपरिसर्प बीजा नरक पर्यंत जाय. खेचर त्रीजा नरक पर्यंत जाय. चतुष्पद सिंह प्रमुख चोथा नरक पर्यंत जाय. उरःपरिसर्प पांचमां नरक पर्यंत जाय. स्त्री हा नरक पर्यंत जाय. मनुष्य अने मत्स्य सात मा नरक पर्यंत जाय.
हवे कर नारकीना जीव क्या यादी उपजे ? ते कहे बे-सातमा नरकनो नीकल्यो जीव गर्भज तिर्यचमाहे
आवे, अने समकित पण पामे. बहा नरकनो नीकल्यो जीव गर्नज तिर्यच अने गर्नज मनुष्यमां जाय, अने देशविरतिपणुं पामे, परंतु सर्वविरतिपणुं न पामे. तथा पांचमा नरकनो नीकल्यो जीव गर्नज मनुष्य थाय, अने सर्व विरतिपणु पामे, परंतु केवल न पामे. चोथा नरकनो नीकट्यो जीव गर्नज मनुष्य थाय, अने केवलझान पामे तो पामे, परंतु ते तीर्थकर न थाय. त्रीजा नरकनो नीकल्यो जीव गर्नज मनुष्य था य, अने तीर्थकर पण थाय, परंतु वासुदेव अथवा बलदेव न थाय. तथा बीजा नरकनो नीकल्यो जीव मनुष्य
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थाय, तेमज वासुदेव, बलदेव पण थाय, परंतु चक्रवर्ति न थाय. तथा पहेला नरकनो नीकट्यो जीव चक्रवर्त्यादिक समस्त पदवी पामे. ए नरकनुं गत्यागतिछार कह्यु ॥ ३३ ॥ हवे पृथिवी, अग् अने वनस्पति ए त्रण दंडकना जीवोनुं आगति
तथा गतिनुं द्वार कहे छेपुढवीआउवणस्सइ,--मद्ये नारयविवज्जिया जीवा ॥ सवे नववज्जति, नियनिय
कम्माणुमाणेणं ॥ ३४ ॥
गाथा ३४ मीना: छुटा शब्दना अर्थ. पुढवी-पृथिवीकाय. जीवा-जीवो. आउ-अपकाय.
सम्वे-सर्वे. वणस्सइ-वनस्पतिकाय. उववति -उपजे. मझे-मध्ये, मांहे.
नियनिय-पोतपोतानां. नारय-नारकी.
कम्माणुमाणेणं-कर्मना अनुमाने विवजिया-वर्जीने,
करीने विस्तारार्थः-एक (पुढवी श्रावणस्सश्मज्झे के०)
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पृथ्व्यब्वनस्पतिमध्ये, एटले पृथिवी केतां पृथिवीकाय, बीजो अप्काय, त्री जो वनस्पति एटले वनस्पतिकाय, ए त्रण दंझक मध्ये, एटले मांहे ( नारयविवजिया जीवा के ) नारकविवर्जिता जीवाः, एटले सात ना. रकोना एक दमकना जीवो वर्जीने शेष रह्या जे त्रेवीश दमकना जीव, ते ( सवे के० ) सर्वे, एटले सर्वे आवी ( उववति के० ) उपपद्यते एटले उपजे. (नियनिय. कम्माणुमाणेणं के० ) निजनिजकर्मानुमानेन, एटले निज निज कर्मानुमाने करीने अर्थात् पोतपातानां करेखां जे शूनाशुन कर्म, तेने अनुमाने करी, जे जीवे जेवां कर्म करयां होय, तेवे स्थानके जश् उपजे; ए पृथ्वी, अप् अने वनस्पति ए त्रणेनुं आगतिछार कह्यु ॥ ३४ ॥
___ हवे एज दंडकना जीव गतिद्वार कहे छे. पुढवाश्दसपएसु, पुढवीआळवणस्सई जंति ॥ पुढवाश्दसपएहिय, तेकवासु उववा ॥३॥
गाथा ३५ मीना छुटा शब्दना अर्थ. .
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पुढवाइ-पृथिव्यादि. दसपएसु-दश पदने विषे. पुढवी-पृथिवीकाय.
आऊ-अप्काय. वसई-वनस्पतिकाय. जंति-जाय, उत्पन्न थाय छे.
पुढवाइ-पृथ्वीकाय विगेरे. दसपएहिय-दश पदमांथो ( नो
कलेला.) तेज-तेउकाय.. वाऊसु-वायुकाने विषे. उववाउ-उपजq.
विस्तारार्थः-( पुढवाश्दसपएसु के० ) पृथिव्यादिदशपदेषु एटले पृथिव्यादिक दश पदने विषे अर्थात् पृथिव्यादिक पांच स्थावर, त्रण विकलेंप्रिय, एक म. नुष्य अने एक तिर्यच, ए दश दंगकने विषे ( पुढवीश्रावणस्सई के०) पृथिव्यप्वनस्पतिकाः, एटले पृथिवीकाय, अपकाय अने वनस्पतिकाय, ए त्रण दंमकना जीव (जंति के०) यांति, एटले जाय. पण नारकी अने देवमां न जाय. ए पृथिव्यादिक त्रण दमकना जीवनुं गतिहार कह्यु.
हवे तेजस्काय तथा वायुकायनी आगति कहे छे.
(पुढवाश्दसपए हिय के०) पृथिव्यादिदशपदेन्यः, एटले पूर्वोक्त पृथिव्यादिक दश पदना दशे दंगकथी
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नीकल्या जीवनुं ( तेऊवाकसु के० ) तेजोवाय्वोः, ए. टले तेउकाय अने वायुकायने विषे यावी (उववा के०) उपपातः, एटले उपजवू थाय. ए नेउकाय अने वायुकायनी आगति कही ॥ ३५ ॥
हवे तेउकाय अने वायुकायनी गति कहे छे. तेवागमणं, पुढवीपमुहम्मि दोइ पयनवगे॥ पुढवागणदसगा, विगलाइतियं
तिहिं जंति ॥ ३६॥
गाथा ३६ मीना छुटा शब्दना अर्थ. तेज-तेऊकाय.
ठाण-स्थानक. वाऊ-वायुकायर्नु.
दसगा-दशमां रहेला. गमणं-गमन, ज. विगलाइ-विकलादि. पुढवीपमुहम्मि-पृथिवी प्रमुख. तियं-तिक. होइ-थाय छे. . तिहि-तेहीज (दश दंडकमां ). पयनवगे-नव पदने विषे. जंति-जाय. पुढवाइ-पृथिव्यादिक.
विस्तारार्थः-( तेक वाउगमणं के० ) तेजो वायुगमनं, एटले एक तेजस्काय, बीजा वायुकोय ए बे दमकना जीवोनुं गमन ते जवं, अर्थात् तेउकाय अने
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ए३ वायुकायना जीवोनुं च्यवीने कया दमकने विषे जश् उपजवु थाय ? ते कहे . ( पुढवीपमुहम्मि के०) पृथिवीप्रमुखे, एटले पृथिव्यादिक पांच स्थावर अने त्रण विकलेंड्रिय तथा एक तिर्यच पंचेंद्रिय. ए सर्व मली (पयनवगे के० ) पदनवके, एटले नव पदने विषे उपजq (होश के० ) नवति, एटले घाय . ए रीते तेनकाय अने वायुकायनी गति तथा आगति कही. हवे त्रण विकलेंद्रियनां आगति अने गति मली बे द्वार साथे कहे छे.
(पुढवावाणदसगा के०) पृथिव्यादिस्थानदशगाः, एटले पृथिव्यादिक पांच स्थावर अने त्रण विकलेंद्रिय, एवं बाठ थया, तथा नवमा तियेच पंचेंद्रिय अने दशमा मनुष्य, ए दश स्थानकना जीव च्यवीने विकलेंद्रियने विषे आवे, अने (विगलातियं के०) विकलादित्रिकं, एटले ए त्रणे विकलेंजियवाला जीव मरीने (तिहिं के० ) तेषु, एटले तेहीज दश दमकमां (जंति के० ) याति, एटले जाय. ए विकलेंद्रियमां आगति तथा गति नामकबे हार कह्यां ।३६।
हवे गर्भज तिर्यंच तथा मनुष्य, ए बे दंडकवाला
जीवोनो गति अने आगति कहे छे.
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गमणागमणं गज्जय, -- तिरियाणं, सयसजीवासु ॥ सव्वच जंति मणुच्या, तेक्वाऊदिं नो जंति ॥ ३७ ॥
गाथा ३७ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
गमण - गमन, जबुं.
आगमणं - आगमन, आववुं, गप्भयतिरियाण - गर्भज तिर्यचनुं
सवच्छ-सर्वत्र..
जंति - जाय छे. मणुभा - मनुष्यो.
तेऊ - ते काय. वाऊहिं-वायुकाय थकी. नो जंति न आवे.
सयल - सघला.
जोवठाणेसु - जीवनां स्थानकने
विषे. विस्तारार्थ : - ( गनयतिरियाणं के० ) गर्भजतिरवां, एटले गर्जज तिर्यचनुं ( गमणागमणं के० ) गमनागमने, एटले जतुं खने आवकुं, ते ( सयलजीवठासुके० ) सकलजीवस्थानकेषु, एटले सघला जीवनां स्थानकने विषे होय; अर्थात् चोवीशे दंरुकने विषे होय. ए पंचेंद्रिय तिर्यचनी गति तथा आगति कही. दवे मनुष्यनी गति तथा यागति कहे बे. ( मणुश्रा के० ) मनुष्याः, एटले मनुष्यना दंककवाला जीव च्य
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वीने ( सब के० ) शर्वत्र, एटले चोवीशे दमकमां ( जंति के० ) यांति, एटले जोय बे, मूल गाथामां सवत्थ ' पदना सामर्थ्य श्री चोवीश दंरुकना जीवोमां काल, क्षेत्र ने संघयणनो योग थतां सिद्धिमां पण जाय, जो च्यवीने मनुष्यमां यावे, तो तेनुकाय अने वाकाय शिवाय बात्रीशमांथी यावे. अने ( तेकवाऊहिं के० ) तेजोवायुज्यां, एटले तेउकाय ने वायुकाय की जीव चवीने मनुष्यना दंककमां (नो जंति के०) नो यांनि, एटले न जोय. एटले तेनकाय छाने वायुकाय विना बाकी सर्वे बावीशे रुकना जीव च्यवीने मनुष्यमांहे यावे.
हवे चोवीशे के जीवोना ( ५६३) नेद बतावे बे. तेमां प्रथम (५६३ ) जीवोना नेद कही देखाडे बे. पृथ्वी, पू, तेज छाने वायु, ए चार सूक्ष्म छाने
चार बादर मली आठ भेद थया. तथा जे एक शरीरने विषे अनंता जीव होय. तेने साधारण वनस्पतिकाय कहीए. बीजो जे एक शरीरने विषे एक जीव होय, तेने प्रत्येक वनस्पतिकाय कहीए. त्रीजो निगो
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दने सुक्ष्म वनस्पतिकाय कहीए. ए त्रण नेद वनस्पतिना पूर्वोक्त आठ नेद साथे मेलवतां अगीयार नेद थाय. तेनी साथे बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चौरिंद्रिय ए त्रण विकलेंद्रिय मेलवीए, त्यारे चौद नेद थाय. ते चौद पर्याप्ता अने चौद अपर्याप्ता मल अग्यावीश नेद थया. तथा जलचर, स्थलचर, खेचर, जर परिसर्प अने जुजपरिसर्प, ए पांच गर्नज अने पांच संमू. र्बिम मेलवीए, त्यारे दश थाय. ते वली दश पर्याप्ता अने दश अपर्याप्ता मली वीश नेद पंचेंद्रिय तियेचना थया. ते पूर्वोक्त अग्यावीश नेद साथे मेलवतां अमतालीश नेद तिर्यंचना थाय.
तथा रत्नप्रनादिक सात नारकीना पर्याता अने अपर्याप्ता. नेदे चौद प्रकारे नारकीना जीव थाय, ते पुर्वोक्त ४७ साथे मेलवतां बासठ नेद थया.
तथा पांच जरत, पांच ऐरवत अने पांच महा. विदेह मली पंदर क्षेत्र कर्मजुमिना मनुष्यनां, अने पांच हिमवंत, पांच हिरण्यवंत, पांच हरिवर्ष, पांच रम्यकवर्ष, पांच देवकुरु अने पांच उत्तरकुरु, ए त्रीश
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देत्र अकर्मनूमिनां मनुष्यनां तथा उप्पन अंतरछीपनां मली ( १०१ ) जेदे गर्नज पर्याप्ता अने ( १०१ ) नेदे गर्भज अपर्याप्ता तथा १०१ नेदे संमूर्बिम मली (३०३) नेद मनुष्यना ते पूर्वोक्त बासठ साथे मेलवतां ३६५ नेद थया.
तथा पुर्वे कहेला नवाणुं प्रकारना देवाताने पयासा अने अपर्याप्ता नेदे करीए त्यारे (१ए७) भेद देवोना थाय, ते पूर्वोक्त (३६५) साथे मेलवतां (५६३) नेद जीवना थाय. हवे ( ५६३ ) भेदनी चोवीश दंडके गति अने' आगति कहे छे. ___ १ तेमा ते प्रथम साते नरकना दमकने विषे ग. ति अने आगति कहे जे. पंदर नेदवाला कर्मऋमिना मनुष्य अने जलचर, स्थलचर, खेचर, उरःपरिसर्प अ. ने जुजपरिसर्प, ए पांच गर्भज अने पांच संमूर्बिम मली पचीश नेदनी अागति पहेला नरकने विषे जाणवी. हवे पहेला नरकथी नीकल्या जीवनी गति कहे . पहेला नरकवाला जीव पंदर कर्मचूमिना
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ए मनुष्य अने पांच गर्नज तिर्यच मली वीश पर्याता अने वीश अपर्याप्ता एवं चालीश नेदमा श्रावी अवतरे, ते गति जाणवी..
बीजा नरके पंदर कर्मचूमिना मनुष्य अने पांच गर्नज तिर्यच मली वीश नेदना जीव आवे, ते आगति जाणवी, अने ए बीजा नरकथी नीकलेला जीव एज पूर्वोक्त वीश पर्याप्ता अने वीश अपर्याता मली चालीश नेदना जीवोमां आवी उपजे, ते गति जाणवी.
३ त्रीजा नरकने विष पंदर कर्मचूमना मनुष्य तथा जलचर, स्थलचर, खेचर अने उरःपरिसर्प, ए उगणीश नेदना जीव श्रावी उपजे, ते आगति जाणवी, अने त्रीजा नरकथी नीकलेला जीव पंदर कर्मनूमिना मनुष्य तथा पांच गर्भज तिर्यच मली वीश पर्याप्ता तथा वीश अपर्याप्ता एवं चालीश नेदना जीवोमां आवी उपजे, ते गति जाणवी. .
__४ चोथा नरकने विषे पंदर कर्मऋमिना मनुष्य तथा जलचर, स्थलचर अने उरःपरिसर्प, ए अढार
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एए नेदना जीव आवी उपजे, ते श्रागति जाणवी, अने चोथा नरकथी नीकलेला जीव पंदर कर्मचूमिना मनुष्य अने पांच जातिना गर्भज तिर्यच मली वीश पर्याप्ता अने वीश अपर्याप्ता एवं चालीश नेदना जीवोमां आवी उपजे, ते चोथा नरकना जीवोनी गति जाणवी.
५ पांचमा नरकने विषे पंदर कर्मचूमिना मनुष्य तथा जलचर अने उर परिसर्प मली सत्तर नेदना जीव यावे, ते धागति जाणवी, अने ए पांचमा नरकथी नीकलेला जीव पंदर कर्मनूमिना मनुष्य अने पांच जातिना गर्भज तिर्यच एवं वीश पर्याप्ता अने वीश अपर्याप्ता मली चालीश ,जेदना जीवोमां श्रावी उपजे, ते पांचमा नरकना जीवौनी गति जाणवी.
६ हा नरकने विषे पंदर कर्मचूमिना मनुष्य अने जलचर मली सोल नेदवाला जीव आवी उपजे, ते सागति जाणवी, अने बहा नरकथी नीकलेला जीव पंदर कर्मनूमिना मनुष्य अने पांच गर्जज तिर्यच म. ली वीश पर्याप्ता अने वीश अपर्याप्ता एवं चालीश नेदना जीवोमा आवी उपजे, ते बही नरकना जीवोनी गति जाणवी.
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१०० ७ सातमा नरकने विषे पंदर कर्म मिना मनुष्य अने जलचर भली सोल नेदना जीव आवी उपजे, ते आगति जाणवी, अने सातमा नरकथी नीकलेला जीव ते जलचर, स्थलचर, खेचर, उरःपरिसर्प अने जुजपपरिसर्प, ए पांच जातिना गर्नच तिर्यमचा (पर्याप्ता अने अपर्याप्ता मली दश नेद समजवा.) आवी उपजे, ते गति जाणवी. ए सात नरकनी आगति अने गति कही. ___ हवे देवोनी गति अने आगति कहे . तेमा प्रथम दश जातिना जवनपति, सोल जातिना व्यंतर, पंदर जातिना एरमाधामी अने दश प्रकारना तिर्यगू. जूंनक, ए एकावन जातिना देवोने विषे एकसो अगी. यार जातिना जीवो ओवी उपजे, तेमां (१०१ ) नेदवाला तो मनुष्य अने पांच गर्लज तिर्यंच जाणवा. तथा पांच संमूर्बिम तिर्यच मली (१११) नेदनी आ. गति जाणवी. तथा एज एकावन जातिना देवोमांथी नीकलेला जीव तालीश नेदमां जाय, तेनां नाम कहे डे. तेमां पंदर कर्मजूमिना मनुष्य अने पांच जातिना
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१०१ गर्नज तिर्यच तथा पृथिवी, अप् अने वनस्पति भनी त्रेवीश नेद पर्याप्ताना अने त्रेवीश अपर्याप्ताना एवं बेंतालीश नेदमा आवी उपजे, ते गति जाणवी. ए रीते सात नारकीनो एक दंमक तथा दश जवनपतिना दश दमक अने व्यंतर देवोनो एक दंक मली बार दमके गति आगति कही. ___ हवे पृथिवीकाय, अपकाय अने वनस्पतिकाय एत्रण दमकने विषे बसें त्रेतालीश नेदना जीव
आवे, तेनां नाम कहे . ४७ तिर्यच, १०१ संमूर्बिम मनुष्य तथा पंदर कर्ममिना मनुष्य पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एवं १७ए थया. तथा चौसठ जातिना देवो आवे, तेना नाम कहे . पंदर परमाधामी, दश जवनपति, सोल व्यंतर, दश तिर्यग्जूंजक, दश ज्यो-, तिषी तथो सौधर्म अने ईशान ए बे देवलोकना देवो अने एज बे देवलोकनी नीचे रहे , ते एक नेद किल्बिषीया देवोनो मली चोसठ नेद थया. ते पुर्वोक्त १७ए नेद साथे मेलवीए, त्यारे २४३ नेद थाय. हवे
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१०२ पृथिवी, अप् अने वनस्पति, ए त्रण दमकमांडेथी नीकल्या जीव पुर्वोक्त १७ए नेदमां जोय, एवं पंदर दमके गति आगति कही.
तथा तेउ अने वायु ए वे दमकने विषे पूर्वे कहेला १७ए नेदना जीव आवे, अने ए तेल तथा वायुकायना नीकल्या जीव ४७ जेदना तिर्यंचमां जाय. एवं सत्तर दमके गति ओगति कही.
दबे बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चारिप्रिय . ए त्रण दंगकने विषे पूर्वे कहेला १७ए भेदना जीव आवे, अने ए त्रण दंगकमांथी नीकल्या जीव पण एज १७ए जेदना जीवमां जैश उपजे. एवं वीश दमकनी गति
आगति कही. ____ असंझी पंचेंद्रिय तिर्यचमां एज पूर्वोक्त १७ नेदना जीव आवी उपजे, अने ए असंझी तिर्यचमाथी नीकल्या ३९५ नेदने विषे जाय, तेनां नाम कहे डे. पंदर परमाधामी,. दश जवनपति, सोल व्यंतर, दश तिर्यगजंजक, ए एकावन नेदना देवो तथा बप्पन
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१०३ अंतरछीप अने एक नारकी, एवं १०७ पर्याप्ता तथा १०० अपर्याप्ता मली २१६ थया. तेनी साथे १७ए पूर्वना नेलता ३७५ नेद थया. तेमां एनी गति जाणवी. तया गर्नज तिर्यच पंचेंज्यिमा २६७ नेदना जीव आवे, तेनां नाम कहे . तेमां पूर्वे कहेला १७ए नेद, तथा पंदर परमाधामी, दश नवनपति, सोल व्यंतर, दश तिर्यग्जूनक, दश ज्योतिषी, त्रण किल्बिषीया, नव लोकांतिक अने सौधर्मथी मामीने सहस्रार पर्यंत
आठ देवलोकना देवो मली र नेद देवलोकना तथा सात नारकी एवं जज नेद पूर्वोक्त १७ए साथे मेलवीए, त्यारे २६७ नेद थाय. तथा ए गर्नज तिर्यचमांथी नीकट्या जीव ते ५५७ नेदमां जाय, ते कहे . तेमां १७ए पूर्वे कहेला अने बीजा पण पूर्वे कहेला देवताना ७१ नेद अने सात नारकीना सात नेद मलीने अग्याशी नेदना जीवोने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता करीए, त्यारे १७६ नेद थाय. तथा त्रीश अकर्मचूमि अने बप्पन अंतरछीप मली ७६ नेदना मनुष्यने पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता गणतां १७२ नेद थाय. तेने पूर्वोक्त १७ए
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१०४ तथा १७६नी साथे मेलवीए, त्यारे ५५७ नेद थाय, ए जलचर जीवो आश्रयी जाणवा. ... हवे ए गर्नज तिर्यचना पांच नेद विवरीने कहे बे. तेमा प्रथम उरःपरिसर्पने विषे २६७ नेदना जीव आवे, अने सातमां तथा बहा मली बे नरकना पर्याप्ता तथा अपर्याप्ताना चार नेद पूर्वोक्त ५२७ मांश्री वीए, त्यारे शेष ५२३ नेदमां एनी गति जाणवी, तथा स्थलचरनी २६७ जेदनी आगति अने सातमा, बहा तथा पांचमा, ए त्रण नरकना पर्याप्ता अपर्याप्ता मली उ नेद ५२७ मांथी वर्जतां शेष ५१ नेदने विषे गति जाणवी. तथा खेचरनी ५५७ नेदनी आगति अने सातमां,
हा, पांचमा अने चोथा, ए चार नारकीने पर्याप्ता अपर्याप्ता करतां आठ नेद थाय, ते ५२७ मांथी वजीए, त्यारे शेष ५१ए नेदने विषे एनी गति जाणवी. तया जुजपरिसर्पना २६७ जेदनी आगति अने सातमा,
हा, पांचमा चोथा अने त्रीजा, ए पांच नारकीना पर्याप्ता अने अपर्याप्ता मली दश नेद ५२७ मांथी व.. र्जीए, त्यारे शेष ५१७ जेदने विषे एनी गति जाणवी.
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ए तिर्यचना दमक आश्रयी गति गति कही. एवं एकवीश दंकक थथा.
हवे मनुष्यना दंमकनी गति गति कहे बे. तेमां प्रथम संमूर्हिम मनुष्यने विषे १११ नेदना जीव वे, तेना नाम कड़े बे. पंदर कर्मभूमिना मनुष्यना पर्याप्ताने पर्याप्ता मली त्रीश नेद थाय, अने ते काय तथा वाउकायना सूक्ष्म तथा वादर ाने ते वली पर्याप्ता तथा पर्याप्ता करीए, त्यारे व नेद याय. ते तिर्यचना मालीश नेदमांथी वजए. बाकी चालीश नेद तिर्यचना, तथा १०१ संमूमि मनुष्यना मलीने १११ नेदना जीव संमूर्हिम मनुष्य मध्ये यावे, ए संमूमि मनुष्यमांथी नीकलीने तेजकाय तथा वायुकायना व नेद सुधां पूर्वोक्त १७ नेदमां जइ उपजे.
हवे पंदर कर्मभूमिना गर्नज मनुष्यने विषे २७६ नेदना जीव वी उपजे, तेनां नाम कहे बे. तेमां पंदर कर्मभूमिना पर्याप्ता ने अपर्याप्ता मली त्रीश नेद, तथा तेज ने वायुना आठ नेद वर्जीने शेष
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चोलीश नेद तिर्यचना तथा १०१ नेद संमूर्हिम मनुज्यना तथा नगणु प्रकारना देवोना पर्याप्ता जीव, एवं २७० थया. तथा बहा नरक सुधीना जीव पण कर्मनूमिना गर्नज मनुष्यमा आवे, ए सर्व मली ५७६ जेदनी आगति जाणवी, अने ए कर्मचूमिना गर्नज मनुष्योमांधी नीकलीने सर्व ५६३ नेदमा जाय, ते ए गति जाणवी.
हवे त्रीश अकर्मनुमिना मनुष्यने विषे पंदर कर्मचूमिना मनुष्य अने पांच गर्नज तिर्यच मली वीश नेदना जीव यावी उपजे, ते आगति जाणवी, अने ए त्रीश अकर्मचूंमिना मनुष्यमांधी नीकलीने चोसठ नेदना देवोमां जश् उपजे, तेना नाम कहे . पंदर परमाधामी, सोल व्यंतर, दश नवनपति, दश तिर्यग्जुनक, दश ज्योतिषी, पहेला अने बीजा देवलोकनी नीचेना रहेनारा किल्बिषीया देवोनो एक जेद तथा सौधर्म अने ईशान ए बे देवलोकना बे नेद मली चोसठ नेद थया. ____ तथा बप्पन्न अंतरछीपने विषे पचीश नेदना जीव
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१०७ यावे, तेमां पंदर कर्मजुमिना मनुष्य तथा पांच गर्नज तिर्यच अने पांच संमूर्डिम तिर्यच मली पचीश नेदनी
आगति जाणवी, अने ए बप्पन अंतरछीपमांथी नीकलीने देवोना एकावन नेदमां जाय, तेनां नाम कहे . पंदर परमाधामी, दश जवनपति, सोल व्यंतर अने दश तिर्यगर्जेजक मली एकावन नेदने विषे एनी गति जाणवी. एवं बावीश दमके गति आगति कही..
हवे दश प्रकारना ज्योतिषी देवोना दमकने विषे पंदर कर्मनूमि, त्रीश अकर्मनुमि अने पांच प्रकारना गर्नज तिर्यच मली पचास नेदना जीवो डावी उपजे, ते एनी आगति जाणवी, अने ए ज्योतिषीमांधी नीकस्या जीव ते पंदर कर्मचूमिना मनुष्य अने पांच गर्नज तिर्यच तथा पृथिवी, पाणी अने वनस्पति मली त्रेवीश नेद पर्याप्ताना अने त्रेवीश नेद अपर्याप्ताना एवं बेतालीश भेदने विषे एभनी गति जाणवी. एवं त्रेवीश दमके गति अने आगति कही. ____ हवे चोवीशमा वैमानिक देवोना दमकने विषे गति आगति कहे . सौधर्म तथा शान ए बे देव.
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१०० लोकना नीकल्या पृथिवी, पाणी अने वनस्पति, एत्रण पर्याप्ता तथा तिर्यच पंचेंजियना पांच नेद अने पंदर कर्मनुमि मनुष्यना पंदर नेद, एवं त्रेवीश नेदभां जाय, ते एनी गति जाणवी,
त्रीजा सनत्कुमारथी मांझीने आठमा सहस्रार पर्यंत उ देवलोकना नीकल्या जीव, ते पांच नेदवाला पंचेंद्रिय तिर्यच अने पंदर कर्मचूमिनां मनुष्य मली वीश नेदमां जाय.
तथा नवमा बानत देवलोकथी मामीने बारमा अच्युत पर्यंतना चार देवलोक अने नव ग्रैवेयक तथा पांच अनुत्तर विमान, ए सर्व मली अढार देवलो. कना नीकल्या जीव, ते पंदर कर्मचुमिना मनुष्यना पंदर नेदमा जाय. ए वैमानिक देवोनी गति कही.
हवे ए वैमानिक देवोनी आगति कहे . तेमां प्रथम सौधर्म देवलोकमां पंदर कर्मनुमिना मनुष्य अने त्रीश अकर्मनमिना मनुष्य तथा पांच गर्नज तिर्यच मली पचास नेदना जीव आवे.
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१०ए
तथा ए पचास नेदमांथी वली जंबूहिपर्नु एक हिमवंत क्षेत्र अने बीजं हिरण्यवंत क्षेत्र, तेमज घातकी खेमनां बे हिमवंत अने बे हिरण्यवंत तथा पु. कराईनां बे हिमवंत क्षेत्र अने बे हिरण्यवंत क्षेत्र मली दश युगलियाना क्षेत्रोना दश नेद अकर्मनूमि मनुष्यना वर्जिए, त्यारे शेष चालीश नेदना जीव ई. शान देवलोकमां आवे.
तथा त्रीजा सनत्कुमारथी मामीने आठमा सहस्रार देवलोक पर्यतना ब देवलोकमां पंदर कर्मचूमिना मनुप्यना अने पांच गर्भज तिर्यचना मली वीश नेदना जीव आवे. ___ तथा नवमा धानत देवलोकथी मामीने पांच अनुत्तरविमान पर्यंतना अढार देवलोकमां पंदर कर्मनूमि क्षेत्रना मनुष्य आवे. ए वैमानिक देवोना दमकने विषे गति आगति कही. ए बावीसमुं तथा त्रेवी. शमुं हार का ॥
हवे चोवीशमुं वेदद्वार कहे छे. वेयतिय तिरिनरेसु, इची पुरिसो अ
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११० चनविहसुरसु ॥ थिरविगलनारएसु, नपुंसवे दवइ एगो ॥ ३ ॥
___ गाथा ३८ मीना छुटा शब्दना अर्थ. वेय-वेद.
| सुरेसु-देवताने विषे. तिय-त्रण.
थिर-स्थावर. तिरिनरेसु-तिर्यच अने मनुष्यने |विगल-विकलेंद्रिय. विषे..
नारएसु-नारकीने विषे. इच्छी-स्त्री वेद. . नपुंसवेओ-नपुंसकवेद. पुरिसो-पुरुषवेद. हवइ-होय. अ-अने.
एगो-एक. चउविह-चार प्रकारना.
विस्तारार्थः-( तिरि नरेसु के०) तिर्यग्नरयोः, एटले तिर्यच अने मनुष्यने विषे (तिय वेय के० ) त्रिवेदं, एटले त्रण वेद होय. एटले पंचेंद्रिय तिर्यच अने मनुष्य ए बे दमकने विषेत्रणे वेद लाने, तथा ( चनविहसुरेसु के० ) चतुर्विधसुरेषु, एटले नवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक, चार प्रकारना देवो संबंधी तेर दंगकने विषे एक नपुंसकवेद टालीने बाकी
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एक (श्ली के०) स्त्री एटले स्त्रीवेद अने बीजो (पुरिसो केण) पुरुषः, एटले पुरुषवेद ए बे वेद होय. (अ के०) अकार , ते समुच्चयार्थवाचक बे. (थिर विगलनारएसु के०) स्थिर विकलनारकेषु, एटले स्थिर ते पांच स्थावरनां पांच दंमक अने विकल ते विकलेंद्रियनां त्रण दंमक अने ( नारएसु के० ) नारक ते नारकी, ए नव दंगके ( एगो के ) एकः, एटले एकज (नपुंसवे के ) नपुंसकः, एटले नपुंसकवेद (हवश के०) नवति, एटले होय. ए चोवीश दमके चोवीशमुं वेदधार कह्यं ॥ ३ ॥
हवे ए चोवीशे दंमकोर्नु पचीशमं अल्पबहुत्वद्वार बे गाथाए करी कहे जे. पऊमणुबायरग्गी, वेमाणियनवणनिरयविंतरि
आ ॥ जोइसचनपणतिरिआ, बेइंदिय तेंदिय नू आज ॥ ३० ॥ वाक वणस्सई चिय, अदिया अदिया कमेणमे हुँति॥सवेवि श्मे नावा, जिणा ! मए एंतसो पत्ता ॥४०॥
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गाथा ३९ मीना छुटा शब्दना अर्थ. पज्ज-(गर्भज ) पर्याप्ता. जोइस-ज्योतिषी. मणु-मनुष्य.
चउ-चौरिद्रिय. बायर-बादर.
पण-पंचेंद्रिय, . अग्गी-अग्निकाय.
तिरिआ-तिर्यच. वेमाणिय-वैमानिक. बेइंद्रिय-बेइंद्रिय. भरण-भवनपति.
तेंदिय-तेइंद्रिय. निरय-नारकी..
भू-पृथ्वीकाय. वितरिआ-व्यंतर.
भाऊ-अपकाय. ___ गाथा ४० मीना छुटा शब्दना अर्थ. वाऊ-वायुकाय. सव्वेवि-सर्वे पण. वणस्सई-वनस्पतिकाय., . इमे-आ. चिय-निश्चे.
भावा-भाव. अहिया अहिया-अधिक अधिक. | जिणा!-जिनेश्वरो !.. कमेण-अनुक्रमे.
मए-मारे जीवे.
अणंतसो-अनंती वार. इंति-होय.. ..
पत्ता-पाम्या.. विस्तारार्थः-(पऊमणु बायरग्गी के० ) पर्याप्त मनुष्य बादराग्नी, एटले गर्भज पर्याप्त मनुष्य बने वादर अग्निकाय जीव तथा (वेमाणियनवणनिरय
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१९३
वितरिया के० ) वैमानिकजवन निरयव्यंत रिकाः, एटले वैमानिक देव, जवनपति संबंधी दश दंमकना जीव, सात नारकीना जीव छाने व्यंतर देवो, तथा ( जोइसच पण तिरिया के० ) ज्योतिष्कचतुरिंद्रियपंचेंद्रिय ति
चः, एटले जोतिषी देवो, चरिंद्रिय, पंचेंद्रिय ने तिर्यचो, तथा ( बेइंद्रिय के० ) द्वीप्रियः, एटले बेईद्रिय, तथा ( इंद्रिय के० ) त्रींद्रियः, एटले तेंद्रिय, तथा (नू के० ) नूः, एटले पृथ्वी काय, तथा ( याउ के० ) आप:, एटले अकाय, तथा (वाज के ० . ) वायुः, एटले वायुकाय, तथा ( वणस्सई के० ) वनस्पतिः, एटले वनस्पतिकाय, ( कमेण मे के० ) क्रमेण इमे, (तेमां ) इमे एटले या सर्वे जीवो क्रमेण एटले
नुक्रमे ( चिय के० ) एव, एटले निश्चये करी (छाहिया अहिया के ० ) अधिका अधिकाः, एटले अधिक अधिक अर्थात् प्रथम प्रथमथी पढीना पीना वधारे वधारे ( हुंति के० ) जवंति, एटले होय, ते नीचे प्रमाणे विस्तारथी जाणवुं,
प्रथम सर्व थकी थोमा १ गर्न पर्याप्ता मनुष्य
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११४ जाणवा. ते थकी २ बादर अग्निकायिया जीव अधिक, ते थकी ३ वैमानिक देवता अधिक, ते थकी ४-१३ जवनपति देवो संबंधी दश दमकना जीव अधिक, ते थकी १४ सात नारकीना जीव अधिक, ते थकी १५ व्यंतरिक देवो अधिक, ते थको १६ ज्योतिषी देवी अधिक, ते थकी १७ चारिप्रिय जीव अधिक, ते थकी १७ पंचेंजिय तिर्यच जीव अधिक, ते थकी १ए बेई. जिय जीव अधिक, ते थकी २० तेइंद्रिय जीव अधिक, ते थकी १ पृथिवीकायिया जीव अधिक, ते थकी २५ अप्कायिया जीव अधिक ॥ ३७॥ ते थकी ५३ वायुकायिया जीव अधिक, ते थकी २४ वनस्पतिकोयिया जीव अधिक, निश्चये ए एक एक थकी अनु. क्रमे अधिक अधिक होय. ए चोवीश दमके अस्पबहुत्वछार कपु.
हवे ग्रंथकर्ता पोते ग्रंथ पूर्ण करता तो श्रीजि. नेश्वरनी स्तुति करे . ( जिणा के० ) हे जिनाः, एटले अहो तीर्थकर जगवंतो! (इमे के० ) श्मे, एटले चोवीश दमकोने विषे नमवारूप जे (जावा के०)
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११५
जावाः, एटले जावो ते ( सवेवि के० ) सर्वेऽपि, एटले सर्वे पण (मए के ० ) मया, एटले मारेजीवे (अणंत सोपत्ता के० ) अनंतशः प्राप्ताः, एटलेखनंति वार पाम्या ॥४० | संपइ तुम्ह जत्तस्स, दंरुगपयनमणजग्गदिययस्स || दंगतिय विरयसुखदं, लढु मम दिंतु मुखपयं ॥ ४१ ॥
गाथा ४१ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
दंडतिय-त्रण दंड. विरय- विरमंवे करीने.
संप-संप्रति, हमणां
तुम्ह-तमारा.
-
भत्तस्स - भक्तना. दंडगपय-दंडकपद. भ्रमण - भ्रमण करते. भगहिययस्स भग्न थयुं छे हृदय जेनुं. विस्तारार्थ :- माटे हे जिनेश्वरो ! ( संपइ के० ) संप्रति एटले सांप्रत काले हमला ( दंमगपय जमणजग्ग हिययस्स के०) दंकक पदमराजग्नहृदयस्य, एटले
सुलहं-सुलभ.
लहु-शिघ्र.
मम - मूजने. दिंतु आपो | मुक्खपयं-मोक्षपद.
.
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दंककपद ते चोवीश दमकरुप जे पद एटले स्थानक तेने विषे जे ब्रमण करवू, ते थकी जग्न थयुं जे हृद. य जेनुं अर्थात् ते नवज्रमण थकी निवृत्त ने मन जेनुं. एवा ( तुम्ह जत्तस्स के० ) तव नक्तस्य, एटले तमा. रा त्रिकरणशुझे जक्तिमंत एवा (मम के०) नम, एटले मुजने मन, वचन अने कायाए (दंमतिय के ) विरयसुलहं के० ) दंमत्रिकविरतसुलनं, एटले दंमत्रिक ते त्रण दंगक तेना विरत एटले विरमवे करीने सुखन एटले मनादिक त्रण दंग थकी विरमीए, तो सुखे पामीए एकुंजे (मुस्कपयं के०) मोक्षपदं, एटले मोक्षपद तेने (बहु के ) बघु एटले त्वरित (दितु के०) ददतु, एटले आपो॥४१॥
हवे ग्रंथकार पोता नाम कहे छे. सिरिजिणहंसमुणीसर,-रज्जे सिरिधवलचंदसीसेण ॥ गजसारेण लिदिया, एसा विन्नति अप्पदिया ॥४॥
गाथा ४२ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
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सिरि-लक्ष्मी, श्री.
गजसारेण-गजसार मुनिए. जिणहंस-जिनहंस.
लिहिया-लखी. मुणीसर-मुनीश्वरना. एसा-ए. रज्जे-राज्यने विषे. विन्नति-विज्ञप्ति. सिरिधवलचंद-श्री धवलचंदना. अप्पहिया-आत्माना हितने सीसेण-शिष्ये.
- करनारी. विस्तारार्थः-ज्ञानाचारादि (सिरिजिणहंसमुणीसररो के० ) श्रीजिनहंसमुनिश्वरराज्ये, एटले श्री ते ज्ञानाचारादि लक्ष्मी तेणे करी युक्त श्री जिनहंस नामे मुनीश्वर अर्थात् श्रीजिनहंस नामे श्राचार्यना राज्यने विषे ( सिरिधवलञ्चद सीसेण के०) श्रीधवलचंडशिष्येण, एटले चारित्ररूपी लक्ष्मीए करी युक्त एवा धवलचंद नामे उपाध्याय, तेमना शिष्य एवा जे (गजसा. रेण के०) गजसारेण, एटले गजसार नामे मुनि, तेणे श्रीवीर प्रनु शासनना नायकने (एसा के०) एसा, एटले श्रा (विन्नत्ति के०) विज्ञप्तिः, एटले विज्ञप्ति (अप्पहिया के०) यात्महिता, एटखे पोताना यात्माना हितने अर्थे पदबंधे करीने ( लिहिया के० ) लिखिता, एटले लखी
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११७ अथवा रचना करी था गाथामां जपावेला श्री जिन: हंसनामा श्राचार्य खरतरगढमां श्रीजिनचंद्रसूरि पनी तेमनी पाटे यएला प्रसिक छे. ॥ ४५ ॥ इति श्री दं. मकप्रकरणं बालावबोधसहितं संपूर्णम् ॥
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॥ श्रीलघुसंबयणी प्रकरण बालावबोध सहितप्रारंजः॥ ग्रंथना आरंजमां सूत्रकार श्री हरिजद्रसूरियाचार्य जगवानने नमस्कार करवारूप मंगल गाथाकहे जे. नमिय जिणं सवन्नूं, जगपुजं जगगुरुं महावीरं ॥ जंबुद्दीवपयजे, वुद्धं सुत्ता
सपरहेजें ॥१॥
गाथा १ लीना छुटा शब्दना अर्थ. नमिय-नमस्कार करीने. जंबुद्दीव-जंबूद्वीपने विषे रहेला. जिणं-श्री जिनेश्वर देवने. पयच्छे--पदार्थों. सम्बन्नु-सर्वज्ञ.
बुच्छं-कहीश. जगपुज्ज-त्रण जगतने पुज्य. सुत्ता-सत्रश्नकी. जगगुरुं-त्रण जगतना गुरु. सपरहेउं-स्वपर हेतुए. महावीरं-महावीर स्वामीने. ___ विस्तारार्थः-( जगपुङ के) जगत्पूज्यं, एटले त्रण जगतने पूज्य, (जगगुरुं के ) जगद्गुरुं, एटले त्रण जगतना गुरु अने ( सबन्नु के० ) सर्वझं एटले सर्वज्ञ एवा ( जिणं के० ) जिनं, एटले श्री जिनेश्वर देव जे श्री ( महावीरं के ) महावीरं, एटले महावीर
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स्वामी ते प्रत्ये ( नमिय के0 ) नमस्कार करीने (जंबुद्दीवपयत्थे के0 ) जंबछीपपदार्थान्, एटले जंबूछीपने विषे रहेला एवा जे शाश्वता पदार्थो, तेने (सुत्ता के०) सुत्रात्, एटले सुत्रथकी जाणीने ( सपरहेडं के० ) स्व. परहेतो, एटले. पोताना तथा परना हेतुए (वु के०) वयामि, एटले हुं हरिजद्रसुरि कहीश.
हवे जे पदार्थों कहेचाना छे, तेनां द्वार गाथाए करी कहे छे. खंमा जोयणवासा, पवयकूमा य तिबसेढो ॥ विजयदृहसविवार्ड, पिंमेसि होइ संघयणी ।।
__ गाथा २ जीना छुटा शब्दना अर्थ. खंडा-खांडुआ.
सेढोओ-श्रेणिओ. जोयण-योजन.
विजय-विजय. वासा-वासक्षेत्र.
दह-द्रह. पव्वय-पर्वत.
सलिलामो-नदीओ. कूडा-शिखरो.
पिंडेसिं-समुदाये करीने. य-अने.
होइ-थाय. तिच्छ-तीर्थो.
संघयणी-संग्रहिणी. विस्तारार्थः-प्रथम जरतक्षेत्रनो एक खांमवो एवा सर्व मली केटला (खंमा के० ) खंमानि, एटले खांमु.
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आ आ जंबूछीपमा जे? बीजुं(जोयण के०) योजनवर्षाणि, एटले योजननुं प्रमाण, केटबु डे ? त्रीजु नरतादिक वासक्षेत्र केटलां ? चो| वैताढयादिक ) पव्वय कूमा के० ) पर्वत कूटानि, एटले पर्वत केटला ले ? पांच, ते पर्वतोना उपर कूट एटले शिखरो केटला ? (य के०) एटले वली बहुं मागधादिक (तिब सेढीयो के०) तीर्थश्रेयणः, एटले तीर्थो केटलां ले ? सातमुं वैताढ्यादिक पर्वत उपर रहेली विद्याधरो तथा आजियोगिक देवानी श्रेणि केटली बे ? आउ{ कहादिक (विजय दहसलिलायो के०) विजयद्रहसलिलाः, एटले विजय केटलां ले ? नवमुं पद्मदहादिक द्रह के. टला जे ? दशभु गंगा सिंधु प्रमुख नदी केटली ? ते कहेवाशे. ए रीते ए दश पद अथवा दश हारने (पिंडेसिं के०) पिमैः, एटले एकठा करवे करीने एटले एना समुदाये करीने आ (संघयणी के ) संग्रहणी, एटले संग्रहिणी नामे प्रकरण ( होइ के ) जवति, एटले थाय ॥२॥
हवे जेवो उदेश तेवो निर्देश, ए न्याय वडे प्रण गाथावडे प्रथम जंबुद्दीपना खांडुआरों द्वार कहे छे.
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णनअसयं खंमाणं, नरदपमाणेण नाइए लख्खे ॥अहवा णउयसयगुणं, नरहपमाणं हवश्वरकं
गाथा ३ त्रीजीना छुटा शब्दना अर्थ. णउअसयं-एकसो ने नेवु. उणसयगुणं-एकसो ने नेवू खंडाणं-खांडुआ.
गणुं. भरहपमाणेण-भरतक्षेत्रना प्रमाणे..
भरह पमाणं-भरतक्षेत्रनुं प्रमाण. भाइए-भागाकार करीए. लक्खे-लाख.
हवइ-थाय, अहवा-अथवा.
लक्ख-लाख. विस्तारार्थः-या जंबूदीप ते (लके के० ) लदे, एटले एक लाख योजननो बे, ते(ने) पांचसे उवीश यो. जन अने ड कलानु घनुष्याकारे (जरहपमाणेण के०) जरतक्षेत्रनुं प्रमाण , तेणे करीने (जाइए के) नाजिते, एटले नांजीए एटले नागाकार करीए, तो (उअसयं खंमाणं के० ) नवतिशतं खंमानां, एटले एकसो ने नेवू खांमुया थाय. (अहवा के) अथवा, (पउयसय गुणं के०) नवतिशतगुणं, एटले एकसो नेवं गणु (जरहपमाणं के० ) जरतक्षेत्रनुं प्रमाण करीए, एटले पांचसें बवीश योजन ने उ कलाने एकसो ने नेबुंथी गुणीए तो ( लक्खं के०) लदं, एटले एक लाख योजन (हवश् के० ) जवति, एटले थाय ॥३॥
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ते या प्रमाणे गाथाना पूर्वार्धथी जागाकारनी
रीते खांमवा करवानी रीत. यो. क. भाज्य.
५२६-६) १००००० जंबुद्वीप, प्रमाण, ५२६-६) १००० (१
= ५२६-६
भाजक.
४७३-१३
५२६-६) ४७३६-१६ (९
-४७३६-१६ ५२६-६) ००००-०००
०००००००
४७३४१०-४७३०
॥४७३०+६ १६४७३६-१६
१९) १३० (६
१३-१०-१३०,
५२६-६
२-१६ ४७३४४
६४९-५४ १९) ५४ (२
- ४७३६-१६
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समज. एक लाखमांथी प्रथम एकडो अने त्रण मीडां १००० नो आंक लइ ५२६-६ वडे एक भाग काढ़वो एटले १००० माथी ५२६-६ वाला बाद करवी, एटले ४७३-१२ बाकी रहे, तेने चोथु मींडं उतारवा माटे १० वडे गुणवा, एटले ४७३६-१६ आंक आवे, तेने ५२६-६थी भाग देतां ९ भाग आवे, अने ते ९ भागनो गुणाकारनो ४७३६-१६ आंक आवे, ते उपरना ४७३६-१६मांथी सरखे सरखा बाद जतां कांइ शेष न रहे, पछी छेलं मींड़े उतारतां भाग नहि नीकळतां भागना स्थानभां मोंडु मुकाय, ए रीते १९ खांडवा थाय. गाथाना उत्तरार्धथी बीजी रीते गुणाकार प्रमाणे
खांमवा जाणवानी रीत. यो. क. ५२६-६...भरत प्रमाण. ४१९०............खांडवा.
६ कला. ४१९० खांडवा.
४७३४४ ५२६xx
क. १९) ११४० (६० यो. .
११४०
९९९४०
६० कलामांना योजन.
००००
१००००० जंबुद्वीपर्ने प्रमाण.
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समज. ५२६-६ कालना आंकने १९० थी गुणतां जंबुद्वीपन प्रमाण १००००० योजन पूर्ण रीते आव्युं. तेथी १९० खांडवाज थाय. ए एकसो नेवू खांडुआ वर्ष अने वर्षधर पर्वतोने आश्रीने त्रीजी रीते
विवरी देखाडे छे. अहवेग खंम नरदे, दो दिमवंते अ हेमवश् चनरो ॥ अह महादिमवंते, सोलस खंमाई
दरिवासे ॥४॥
गाथा ४ थीना छुटा शब्दना अर्थ. अहवा-अथवा.
| हेमवइ-हेमवंतमां. इग खंड-एक खांडुओ. | चउरो-चार भरहे-भरतक्षेत्र. | अठ-आठ. दो-बे.. ... ..
महाहिमवंते-महा हिमवंत पर्वतमां, हिमवंते-हिमवंत ( पर्वत )मां. सोलस खडाई-सोल खांडुआ. अ-तथा.
हरिवासे-हरिवर्षमां. विस्तारार्थः-( अहवा के० ) अथवा ( ग खम जरहे के० ) एकं खं नरते, एटले एक खांमुळे जरतक्षेत्रमा तथा ( दो हिमवंते के ) हे हिमवति, एटले बे खांमुया चुल हिमवंत पर्वतमां ( अ के० ) च, ए.
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टले तथा ( चउरो के०) चवारि, एटले चार खांमुया ( हेमवश् के० ) हैमवते, एटले हैमवंत नामे युगलि. याना क्षेत्रमा तथा ( अह के० ) अष्ट, एटले आठ खांमुथा ( महाहिमवंते के० ) महाहिमवति, एटले महाहिमवंत पर्वतमां, तथा (सोलस खंमाई के०) षोमश खंमानि, एटले सोल खांमुथा ( हरिवासे के० ) हरिवर्षे, एटले हरिवर्ष नामे युगलियाना देत्रमांजाणवा ॥४॥
बत्तीसं पुण निसड्डे, मिलिया तेसहि बीयपासेवि ॥ चनसहि विदेदे, तिरासि पिंमेइ नयसयं ॥५॥
___ गाथा ५ मीना छुटा शब्दमा अर्थ. बत्तीस-बत्रीश.
उ-वळी. पुण-वली,
| विदेहे-महाविदेह क्षेत्रना. निसड्डे-निषध पर्वतना. तिरासि-त्रण राशिना. मिलिया-मेलवीए.. पिंडे-एकठा करवामां. तेसही-त्रेसठ.
उ-तो . . बीयपासेवि-बीजी बाजुमां पण. णउयसयं-एकसो ने नेवू. चउसट्टी-चोसह.
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___विस्तारार्थः-(पुण के०) पुनः, एटले वली (बत्तीसं के०) द्वात्रिंशत् बत्रीश खांमुथा (निसले के० ) निषधे, एटले निषध पर्वतमां, ए सर्व (मिलिया के०) मिलितानि, एटले सरवालो करी एका मेलवीए, त्यारे (तेसहि के० ) त्रिषष्ठिः, एटले त्रेसठ खांमुया थाय. तेमज ( बीयपासेवि के ) द्वितीयपाश्वेऽपि, एटले बीजी बाजुना पण त्रेसठ खांमुथा थाय. ते आवी रीते. एक ऐरवत क्षेत्रनो, बे शिखरी पर्वतनां, चार हिरण्यवंत देवना, आठ रुक्मी पर्वतना, सोल रम्यक देवना, बत्रीश नीलवंत नामे त्रीजा वर्षधर पर्वतना, एवं त्रेस थया, तथा ( चनसही न के०) चतुःषष्टिस्तु, एटले वली चोसठ खांमुआ (विदेहे के) विदेहे, एटले महाविदेह क्षेत्रमां. ए रीते ए (तिरासि पिंडे उ के०) त्रिराशिपिंडे तु, एटले त्रण राशिने एका करीए, तो सर्व मलीने (जयसयं के०) नवतिशतं, एटले एकसो ने नेवू खांमुत्रा थाय. इति प्रथमं छारं समाप्तं ॥५॥ हवे जंबूद्दोपमा योजनप्रमाण खंड केटला थाय? इत्यादि घनीकृत
योजनप्रमाणनुं बोजु द्वार पांच गाथावडे कहे छे.
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जोयणपरिमाणाई, समचरंसाइंश्च कमाई॥ लरकस्स य परिदीए, तप्पायगुणेणय हुँतेव॥६॥
__ गाथा ६ ठीना छुटा शब्दना भर्थ. जोयणपरिमाणाई--एक योजनना लख्कस्स य-लाख. प्रमाणवाला.
परिहोए-परिधिनो. समचउरंसाई-समचतुरस्त्र. तप्पाय-तेनो पा, चोथो भाग. इच्छ-अहींयां.
गुणेणय-गुणाकार करे छते. खंडाई-खांडुआ.
हुंतेव-निश्चे थाय. विस्तारार्थः- (श्च के० ) अत्र, एटले अहीयां जंबुछीपने विषे ( जोयणपरिमाणाई के०) योजनप्रमाणानि, एटले एक योजनना प्रमाणवाला एवा समच(उरसाइं के०) समचतुरस्राणि, एटले, समचतुरस्र ( खमाई के० ) खमानि, एटले खांमुया करवा, ते केटलो थाय ? तेनी रीत कहे ते. (लरकस्स य के०) लदस्य च, एटले एक लाख योजननी (परिहिए के०) परिधेः, एटले परिधिनो जे वांक थाय, तेनो (तप्पाय गुणेण य के०) तत्पादगुणेन च, एटले तत्पाद ते लाख योजननो जंबूढीप तेनो चोथो नाग पचीश
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हजार योजन थाय, तेनी साथे गुणाकार करवा वडे जे गणितपद आवे, तेटला खांमवा (हुंतेव के० ) जवंत्येव, एटले निश्चे थाय ॥ ६ ॥
___ हवे परिधि करवानो उपाय देखाडे छे. विकंनवग्गददगुण, करणी वट्टस्स परिरजे दोई ॥ विख्नपायगुणिजे, परिर तस्स गणियपयं ॥ ७॥
गाथा ७ मीना छुटा शब्दना अर्थ. विख्कंभ-विष्कंभ.
होइ-थाय. वग्ग-वर्ग.
|विख्कंभ-विष्फभना दहगुण-दश गुणो.
पायगुणिओं-चोथे भागे करी . करणी-करणी.
गुणीए.
परिरओ-परिधि. . वट्ठस्स-बाटला, गोल क्षेत्र.
तस्स गणियपयं-ते वाटलाक्षेत्रनुं परिरओ-परिवि.
गणितपद. विस्तारार्थः-जंबूझीपनो (विरकंन वग्गदहगुण करणी के ) विष्कंजवर्गदशगुणकरणी, एटले विष्कंज एटसे वाटला क्षेत्रनो विस्तार जेटलो होय, तेनो वर्ग
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करीए, एटले जेटलो वाटला क्षेत्रना विस्तारनो आंक होय, तेने तद्गुणो करीए, त्यारे वर्ग थाय, पड़ी ते वर्गना बांकने दश गुणो करता जे आंक आवे, तेने “ विसमसमपवश्वग्गो” ए रीते मोटा क्षेत्रसमासनी गाथाने विषे जे (करणी के०) करणी करवान कह्यु बे, ते आम्नाये करणी करीए, अर्थात ते आंकनुं मूल शोधीए, त्यारे ते वाटला एटले गोल क्षेत्रनी (परिरथो के०) परिधिः, एटले परिधि (होय के०) नवति, एटले थाय, अने पड़ी ते (परिर के० ) परिधिः, एटले परिधिना योजलनो जे आंक आवे, ते वाटला क्षेत्रना (विस्कंन पायगुणि के० ) विष्कंपादगुणितः, एटले विष्कंजना योजननो जे आंक होय, ते आंकना चोथे जागे कर। गुणीए, त्यारे (तस्स गणियपयं के० ) तस्य गणितपदं, एटले ते वाटला क्षेत्रनुं गणितपद थाय, एटले क्षेत्रफल थाय ॥७॥
हवे जंबूद्वीपनी परिधि केटला योजन थाय ? ते कहे छे. परिद तिलक सोलस, सहस्स दो य सय
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१३ सत्तवीसहिया ॥ कोसतिगठावीसं,
धणुसय तरंगुल इहियं ॥ ७॥
____ गाथा ८ मीना छुटा शब्दना अर्थ. परिही-परिधि.
अठ्ठावीसं-अठ्यावीश. तिलक्ख-त्रण लाख.
धणु-धनुष्य. सोलस सहस्स-सोल हजार.
सय-एकसो. दो य सय-बसें ने.
| तेरंगुलद्धहियं-साडा तेरअंगुल सत्तवीसहिया-सत्यावीशे अधिक।
अधिक. कोसतिग-त्रण कोस.
विस्तारार्थः-जंबूछीपनो विष्कंन एक लाख योजननो बे, तेनी ( परिही के० ) परिधिः, एटले परिधि करीए, त्यारे (तिलक के०) विलक्षं, एटले त्रण लाख, (सोलससहस्त के० ) षोमशसहस्रं, एटले सोल हजार, (दो य सय के०) हे च शते, एटले बे सो अने (स. त्तवीसहिया के0 ) सप्तविंशतिरधिका, एटले सत्यावीश अधिक, तथा ( कोशतिग के०) क्रोश त्रिकं, एटले ऋण गाउ, तथा ( अहावीसं धणुसय के ) अष्टाविंशतिधनुःशतं, एटले एकसो अहावीश धनुः, तथा ( तेरंगु
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लहियं के०) त्रयोदशांगुलमर्धाधिकं, एटले सामा तेर अंगुल अर्थात् (३१६२७) योजन उपर त्रण कोश अने (१२७) धनुष्य उपर सामा तेर अंगुल एटली जंबूछीपनी परिधि थाय ॥७. ते जाणवानी रीत या आगळ बताववामां आवे .
नोट-बाजुमा परिधि संबंधी गणित जाणवानी वीधिना पेज ८ जुदा आपेला छे त्यार पछी संबंध चालु छे.
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॥परिधि संबंधी गणित जाणवानी विधि ॥
जंबुद्वीपनो विष्कंभ. १००००० वर्ग करवा सारु एज रकमयी गुणाकार. १०००००००००० वर्ग ( तेने)
दश गुणा करवा.
दश गुणा करतां आवेल अंक. - |- | - | - | - | - | १००००००००००० विषम सम करवा.
१० उपरना आंकमांथी पेसो आंक त्रण त्रिक
९-३ नव गया, एक रखो. ते एक पासे .बे (६) १००-१ मीडां उतायो. ६ णना बमणा छनो भाग आषतां छ
एका छ. १ भाग आव्यो, माटे एक एका एकना
आंकने छनी नीचे मांडवो छना आंक ६१ नीचे एक मांडतां ६१ थया. ३९ सोमांयी ६१ बाद करतां ३९ रमा
तेनी आगळ. (६२) ३९००-६ उपरना मोटा आंकमांधी जीजा आंक
वाळा बे मोंडां उता.
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मूळमां त्रणने नीचे एक मोडतां ३१ थाय
तेना बमणा ६२ नो. भाग़ देतां बासठ ३७२ छक्का ३७२ थया. . ३६ छनो भाग आब्यो माटे छ छक छत्रोश
नो आंक नीचे चांमी मुकरा. ३७५६
सरवालो तेने - १४४ । ३९०० माथी बाद करतां १४४ रखा. ६३२) १४४०० (२ ते १४४ नी आगळ मोटा आंकमांथी
चोथा आंक सुधीनां बे मींडा उतार्या.
मुलना ३१६ ना बमणा ६३२ भाग १२६४ देतां ६३२ दु १२६४ ।
४ बेनो भाग आव्यो माटे बे दु ४ १२६४४. चारने नीचे चांपी मुकतां सरवाळो. तेने
१७५६ १४४०० मांथी बाद करतां शेष ६३२४) १७५६०० (२ बधेला १७५६ आगळ उपरनी मोटी
संख्यामांथी ५ मां आंक सुधीनां बे मीडां उतार्या.
मूल शोधवा माटे ३१६२ ना बमणा १२६४८ ६३२४ भाग आपतां ६३२४ दु १२६४८
थया.
बेनो भाग आव्यो माटे २ दु चारनो ४ आंक नीचे चांपी मुक्यो.
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१२६४८४ सरवालो तेने १७६६०० मांथी बार
४९११६ करतां शेष राशि ४९११६ रह्या. ६३२४४) ४९११६०० (१ मोटी संख्यामांथी छठा आंक सुधीनां
बे मीडां उतर्या मुल शोधवा माटे ३१६२२ ना बमणां
६४२४४ थया तेनो साते भाग देतां ४४२७०८ ४४२७०८ थया.
सातनो भाग आव्यो माटे सतीयुं सतीयु ४९ नीचे चांपी मुक्या. ४४२७१२९ सरवाळो तेने ४८४४७१ ४९११६०० ना आंकमांथी बाद करतां
बाकी शेष ते शेष यीजनना कोश करवा
४ माटे चारे गुणवा. १९३७८८४ गुणाकार राशि. . ६३२४५४ ) १९३७८८४ (३ मुल शोधवा माटे ३१६२२७
नो आंक आन्यो छे तेना बगणा ६२२४५४ ना आंके
भाग देतां ३ गाउना भांक . .१८९७६६२ १८९७३६२ थाय ते उप
४०५२२ रमांथी नाद करतां वध्या .. . २०००
तेना धनुष करवा माटे ८१०४४००० .. २००० गुणवा गुणाकारनो
राशि.
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६.३२४६४ ) ८१०४४००० (१२८ उपर प्रमाणे मुल आंक ८
मणा करी भागतां १२ ने
धनुष- भाग आव्यो तेना ८०९५४११२ गुणाकारनी राशि. ८९८८८ बाद करतां शेष धनुष तेना
अंगुल करवा माटे ९६ ए
गुणवा. . ६३२४५४ ) ८६२९२४८ (१३॥ गुणाकार राशि अंगुल तेने
६३२४५४ भाग देतां १३॥ अंगुलनो गुणाकार बाद करतां शेष अंगुल क्षय
करवा सारु आठे गुणवा गु७२८९५२ णाकार करतांक्षयनीराशि. ६३२४५४) ७२८९५२ (१ एक भाग देतां तेटलाज
६३२४५४ ६३२४५४ गया. ९६४९८ शेष यव राशि.
यका करवा सार ८ गुणा. ७७१९८४ गुणा करतां युकानी राशि.. ६३२४५४) ७७१८८४ (१ षक भाग देतां तेटलाज ६३२४५४
६३२४५४ बाद गया शेष . १३९४३० युकानी रासि.
तेनी लीख करवा माटे
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१११६२४०
६३२४५४ ) १११६२४० (१
६३२४५४
४८३७८६
८
३८७०२८८
६३२४५४ ) ३८७०२८८ (६
३७९४७२४
७५५६४
६०४५१२
६३२४५४ ) ६०४५१२ (०
८
६३२४५४ ) ४८३६०९६ (७
४४२७१७८
४०८९१८
ሪ
३२७१३४४
गुणवा गुणाकार करतां लीख राशि.
एक भाग देतां तेटलाज
बाद करवा.
शेष लीख राशि. वीभाग करवा माटे आठे
गुपया गुणाकार करतां वालागु राशि.
छ भाग देतां ६३२४५४ ने छ गुणा करतां राशि. वाद करतां शेष वालाग राशितेने रथरेणु करवा ८ गुण्या गुणाकार करतां रथरेणुं राशि. रथरेणुंनो एक भाग न आन्यो तेना त्रसरेणुं करवा आठे गुण्या.
साते भाग देतां ६३२४५४
ने साते गुणतां राशि.
बाद करतां शेष त्रसरेणुनी राशि व्यवहारिक ब्रादर
परमाणु करवा आठे
गुण्या
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१७४ .
गुणाकार करतां व्यवहारकि
बादर परमाणुनी राशि. ६४२४५४ ) ३२७१३४४ (५ । पांच भाग देतां ६३२४५४
३१६२२७० ने पांचे गुणतां राशि. १०९०७४ बाद करतां व्यवहारिक
बादर परमाणुनी शेष राशि
. एकेका परमाणुनी १७४ १८९७८८७६ खंड करवा १७४थी गुणवा.
गुणाकार करतां एकसो
चुम्मोतेरीया खंडनी राशि ६३२४५४) १८९७८८७६ (३० त्रीस भाग देतां ६३२४५४
१८९७३६२० ५२५६ बाद करता एकसो चुम्मो
तेरीया खंडनी राशि रही. १८९७४१६ दरेफ खंडना ३६१ कटका
करवा ३६१ ठे गुण्या गुणाकार करतां १७४ तेरीया खंडवा ३६१ ठीया
कटनी राशि ६३२४५४ ) १८९७४१६ (३ त्रण भाग देतां ६३२४५४
१८९७३६२ ने त्रणे गुणतां राशि.
ने त्रीसे गुण्या.
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५४ फटका रह्या तेनो भाग
पहोंचे नहि.. . योजन. गाउ. धनुष्. अंगुल.. यव. का. लीख. वीभाग. ३१६२२७ ३ १२८ १३॥ १ १ १ ६ रथरेणु, त्रसरेणु, बादर परमाणु, तेना १७४ भाग, तेना३६१ भाग, शेष.
जंबलीपनी परिधि मळवाना करणनो यंत्र. विष्कंभ योजन
१००००० (एक लाख) वर्ग योजनरासि . १०००००००००० (दश अवज) तेना दशगुणराशि १००००००००००० (एक खर्व) . वर्ग मुलथी आवेल योजन राशि ३१६२२७ शेष राशि
४.४१७१ छेद राशि
६३२४५४ कोश माटे शेषराशिने चारे। गुणतां आवेल राशि.
१९३७८८४ छेदांकनो भाग देतां आवेला कोत्र.
३ शेष राशि
४०५२२ धनुष माटे २००० गुणतां आवेल राशि ८१०४४००० छेदांकनो भाग देता आवेला अंगुल. १२८ शेष राशि.
८९८८८ अंगुल माटे ९६ गुणतां आवेल राशि ८६२९२४८
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छेदांकनो भाग देतां आवेला अंगुल.. १३॥ शेष राशि.
९१११९ ____गाथामा अंगुल सूधीनुं प्रमाण कहेढं छे. पण छेक्टमा 'अहिय' अधिक पदना उच्चारवाथी अंगुल पछी यव, यूका, लीक्षा, वालाग, रथरेणु, प्रसरेणु, व्यवहारिक बादर परमाणु, एकसो चुम्मोतेरीया भाग तथा तेना पण त्रणसो एकठीया भाग सुगमती माटे काढी बताव्या छे !!
हवे ए जंबूद्वीपनो विष्कंन एक लाख योजननो बे, तेनो चोथो जाग करीए, ते वारे पचीश हजार योजन थाय. ते पचीश हजार साथे पूर्वोक्त जंबूछीपनी परिधिना यांकने गुणीए, त्यारे ए जंबूछीपनुं गणितपद अथवा देत्रफल थाय. तेनो आंक आगली गाथाए करी कहे जे ॥ ७॥ सत्तेव य कामिसया, णना बप्पन्नसयसहस्साई॥ चनणनयं च सहस्सा, सयं
दिवढंच साहियं ॥५॥
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१५ गाथा ९ मीना छुटा शब्दना अर्थ. सत्तेव-सात.
सहस्साई-हजार. य-अने.
चउणउयं च सहस्सा-अने चोराणुं कोडी-कोडी.
__ हजार. सया-सैकडा.
सयं दिवडं-दोढसो. णउआ-नेवू.
|च-अने... छप्पन्नसय-छप्पनसो. साहियं-झाझेरु.
विस्तारार्थः-( सत्तेत्र के०) सप्त एव एटले सात (कोमिसया के०) कोटीशतानि एटले सैकमा कोमी अर्थात् सातसें कोमी उपर (णग्या के० ) नवतिः, एटले नेवू कोमी तथा उपर ( उप्पन्नसय सहस्साई के०) षट्पंचाशच्छतसहस्राणि, एटले बप्पनसो हजार एटले बप्पनसोने हजारे गुणीए, त्यारे बप्पन लाख थाय. (च के० ) वली (चउणज्यं च सहस्सा के०) चतुर्णव तिश्च सहस्राणि, एटले चोराणुं हजार तथा ( सयं दिवढं के०) शतं व्यर्ध, एटले दोढसो ए उपरे (साहियं के० ) साधिकं, एटले जालं ॥५॥
गाउअमेगं पनरस, धणुसया तद धणूणि
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पनरस्स ॥ सहिं च अंगूलाई, जंबुद्दीवस्स गणियपय॥१०॥
गाथा १० मीना छुटा शब्दना अर्थ. गाउअमेग-एक गाउ. च-वली. पनरस धणुसया-पंदरसें धनुष्य. सर्हि अंगुलाई-साठ अंगुल. तह-तेमज.
|जंबूद्दीवस्स-जंबूद्वीपy. धणि पनरस्स-पंदर धनुष्य. गणियपयं-गणितपद.
विस्तारार्थः-(गानअमेगं के०) गव्यूतमेकं, एटले एक गाउ अने (पनरस धणुसया के०) पंचदश धनुशतानि, एटले पंदरसें धनुष्य (तह के ) तथा. एटले तेमज वली (धण्णि पनरस्स के० ) धनुषि पंचदश, एटले पंदर धनुष्य (च के० ) वली (सहिं अंगुलाई के०) षष्ठिरंगुलानि, एटले साठ अंगुल एटले ( ५६ ए४ १५०) योजन एक गाउ अने ( १५१५) धनुष्य उपर साठ अंगुल, एटर्बु (जंबूद्दीवस्स के०) जंबूहीपस्य, एटले जंबूद्वीपर्नु (गणियपयं के० ) गणितपदं, एटले गणितपद जाणवू. ते आआगळ बताव्या प्रमाणे थाय. ए योजन प्रमाणनुं बीजं द्वार कहे जे.
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सातमी गाथामां कह्या मुजब जंबुद्विपना परिधिने जंबुद्वीपना विष्कंभ १००००० ना चोथा भाग २५००० साथे गुणवानो यंत्र।
योजन.
गार
३१६२२७ ४२५०००
४२५००० यो.
४) ७५००० (१८७५०
०
०
००००००
* / *
१५८११३५ ६३२४५४
७९०५६७५०००
१८७५० गाउ माथी .. ४०० धनुषमाथी
*
कुल ७९०५६९४१५० योजन.
००० गाउ.
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४ .
धनुष.
अंगुल.
१३॥ ४२५०००
१२८
x२५०००
-
-
०००
००
०००
६४० २५६
३२६००० १२५०० धनुष
८०००) ३२००००० (४००
३२०००००
९६) ३३७५०० ( ३५१५
२८८
०४९५ ०४८०
१५०
५४०
४८०
६० अंगुल.
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१५ जंबुद्विपनो परिधि तेने विष्कभना चोथा भाग २५००० वडे गुणवा.
धनुष २०००) ३५१५ ( : गाउ
१५१५ धनुष. योजन. गाउ. धनुष. अंगुल. ७९०५६९४१५०-१--१५१५-६०-जंबूद्वीप, गणितपद.
समज. (१) योजनना अंकने २५००० गुण्या. तेमां ॥ (२) त्रण गाउने २५००० गुणी ४ रे भागीए, त्यारे १८७५०
भाग योजनना आवे, ते (१) योजननी मोटी संख्यामां उमेरवा।। (३) एकसो अठयावोस धनुषने २५००० गुणतां ३२००००० थाय,
तेने ८००० धनुषनें एक योजन गणी ८००० थी भागाकार करीए, तो ४०० भाग योजनना आवे, ते (१) योजननी
मोटी राशिमां उमेरवा ॥ (४) साडा तेर अंगुलने २५००० थी गुणतां ३३७५०० थाय, तेने
९६ अंगुलनु एक धनुष गणी ९६ थी भागाकार करीए, तो ३५१५ भाग धनुषना आवे. अने ६० अंगुल शेष रहे. तथा ३५१५ धनुषमाथी २००० धनुषनो एक गाउ काढी लइए, तो गाउनों १ भाग थाय, अने १५१५ धनुष शेष बाकी रहे, ए रीते उपर कहेलं प्रमाण थाय ॥
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हवे जंबुद्धीपने विषे केटलां वासक्षेत्र छे ? तेनु त्रीजु द्वार तथा
पर्वतो केटला छे १ तेनुं चो) द्वार कहे छे. नरदाइ सत्त वासा, वियचन चनर (ति) तिस वमियरे ॥ सोलसवस्कारगिरि, दो चित्तविचित्त दो जमगा॥११॥
गाथा ११ मीना छुटा शब्दना अर्थ. भरहाइ-भरतादिक. वस्कारगिरि-वकारा पर्वत. सत्त वासा-सात वासक्षेत्र. दो-बे. वियद्-चउ-वाटला वैताढ्य चार. चित्तविचित्त-चित्र विचित्र. चउरतिस-चोत्रीश.. दो-बे. वडियरे-वाटला वैताव्यथी बीजा. जमगा-जमग अने समग. सोलस-सोल.
विस्तारार्थः-(जरहा सत्तवासा के0) जरतादोनि सप्त वर्षाणि, एटले जरतादि सात वासक्षेत्र के तेनां नाम कहे . एक नरत, बीजं हिमवंत, त्रीजु हरिवर्ष, चोधुं महाविदेह, पांचमुं रम्यक, बहुं हिरएयवंत अने सातमुं ऐरवत, ए त्रीजु क्षेत्रछार का.
तत्र.
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हवे चोथु शाश्वता पर्वतोनी संख्या- तार कहे डे. देवकुरु, उत्तरकुरु, ए वे युगलियानां देत्र मूकीने बाकीनां चार क्षेत्रमांहे (वियतु चन के० ) वैताढ्य चतुष्कं, एटले वाटला वैताढ्य चार बे, अने (वमियरे के०) वृत्तेतरे, एटले ते वाटला वैताढयथी इतर एटले बीजा वली ( चनरतिस के0 ) चतुस्त्रिंशत्, एटले चोत्रीश वैताढ्य लांबा ने, तथा ( सोलसवस्कारगिरि के० ) षोमश वक्षस्वत्रागिरि, एटले सोल तो वकारा पर्वत विजयांतरी जे. वली (चित्तविचित्त के०) चित्रविचित्रौ, एटले एक चित्र अने बीजो विचित्र, ए (दो के० ) दो, एटले बे पर्वत , अने (जमगा के० ) यमको, एटले एक जमग अने बीजो समग ए (दो के० ( द्वौ, एटले बे पर्वत ने ॥ ११ ॥ दो सय कणयगिरीणं, चन गयदंता यतह सुमेरू य॥ब वासहरा पिंमे, एगुणसत्तरि
सया दुन्न ॥१२॥ गाथा १२ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
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दो सम-बसें.
य-अने कणयगिरिणं-कंचनगिरि छ वासहरा--छ वर्षधर चउ गयदंता-चार गजदंता पिंडे-एकठा करीए य--अने
| एगुणसत्तरि--ओगणोतेर तह--तेमज
सया दुनी--बसें सुमेरू-सुमेरु पर्वत
विस्तारार्थः-देवकुरु अने उत्तरकुरु, ए बे युगलियानां देवसंबंधी एकेका देत्रमा पांच पांच प्रह बे, अने ते एकेका प्रहने उनय पासे दश दश कंचनगिरि बे, त्यारे बेड क्षेत्रना मली (दो सय कणयगिरीणं के० ) द्विशते कनकगिरिणां, एटले बसें कंचनगिरि . ( य केट) च, वली (चन गयदंता के० ) चत्वारो गजदंताः, एटले चार गजदंता पर्वत . (तह के०) तथा, एटले तेमज सुमेरू ( के० ) सुमेरुः, एटले एक सुमेरु पर्वत (य के० ) च, अने बे पासेना त्रण त्रण मली (उ वासहरा के०) षम वर्षधराः, एटले ब वर्षधर पर्वत बे. ए सर्वने (पिंडे के०) पिंडे, एटले एकग करीए, तो (सया पुन्नी के०) शते छ, एटले बसें ने ( एगुणसत्तरि के० ) एकोनसप्ततिः, एटले जंग.
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२३
णोतेर उपर, एटला पर्वतनी संख्या जंबूटीपमां थाय. ए चोथु पर्वतद्वार कां ॥ १५ ॥ हवे पांचमु कया पर्वमां केटलां कुट होय तेमांनी संख्या द्वार कहे छे. सोलसवकारेसु, चन चन कूमा य ढुंति पत्तेयं॥
सोमणसगंधमायण, सत्त
रुप्पिमददिमवे ॥१३॥
गाथा १३ मोना छुटा शब्दना अर्थ. सोलस -सोल.
सोमणस-सौमनस. वकारे--सुवक्षस्कार पर्वतने विषे, गंधमायण-गंधमादन. चउ चउ-चार चार.
सत्त-सात. कूडा-कूट.
अठ-आठ.. य-अने.
य-अने.
रुप्पि-रूपो. पत्तेय-प्रत्येके.
महहिमवे-महाहिमवंतने विषे. विस्तारार्यः- (सोलसवरकारेसु के०) शोमशवदस्कारेषु, एटले सोल वक्षस्कार पर्वतने विषे (पत्तेयं के०) प्रत्येकं, एटले प्रत्येके ( चन चन कूमा के०) चत्वारि चत्वारिकूटानी एटले चार चार कूट (हुंति के०) नवंति, एटले . ते वारे सोल पर्वतनां चोसठ कूट थयां.
हुंति-छे.
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२४ (य के०) च, तथा (सोमण सगंधमायण के०) सौमनसगंधमादने, एटले एक सौमनस अने बीजोगंधमादन, ए बे गजदंत गिरिने विषे प्रत्येके (सत्त के०) सप्त, एटले सात
सोत कूट बे, (य के०) च, एटले तथा (रुप्पि महा. - हिमवे के) रुक्मिमहाहिमवति, एटले एक रुक्मि
पर्वत अने बीजो महाहिमवंत पर्वत, ए बे पर्वतने विषे प्रत्येके (अह के०) अष्ट, एटले आठ आठ कूट बे, एवं चोराणुं कूट थयां ॥ १३ ॥ चन्तीसवियझेसु विजप्पदनिसढनीलवंतेसु ॥ तह मालवंतसुरगिरि, नव नव कूमाइं पत्तेयं॥१४॥
गाथा १४ मीना छुटा शब्दना अर्थ. चउतीस-चोत्रीश.
तह-तेमज वियद्वेसु-वैतात्यने विषे. मालवंत-माल्यवंत अने. विज्जुप्पह-विद्युत्प्रभ. मरगिरि-मेरु पर्वतमां. निसढ-निषध अने. नव नव कूडाइ-नव नव कूट. नीलवंतेसु-नीलवंतने विषे. पत्तेयं-प्रत्येके.
विस्तारार्थः-( चलतीसवियढेसु के०) चतुस्त्रिंशदैताढयेषु, एटले चोत्रीश वैताढ्य पर्वतने विषे तथा
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(विअप्पह निसढनीलवंतेसु के० ) विद्युत्प्रननिषधनीलवत्सु, एटले विद्युत्प्रन नामे गजदंत गिरि तथा निषध पर्वत अने नीलवंत पर्वतने विषे (तह के०) तथा एटले तेमज (मालवंत सुरगिरि के०) मान्यवत्सुरगिरिणि, एटले माल्यवंत नामे गजदंत पर्वत तथा मेरु पर्वत ए उंगणचालीश पर्वतने विषे ( पत्तेय के०) प्रत्येकं, एटले प्रत्येके (नव नव कूमाई के० ) नव नव कूटानि, एटले नव नव कूट बे, ते वारे (३५१) कूट थयां. तेनी साथे पूर्वलां (ए४) कूट मेलवतां (४४५) कूट थाय ॥ १४ ॥ दिमसिहरिसु इक्कारस, श्य गसहीगिरीसु कूमाणं ॥ एगत्ते सबधणं, सयचनरो
सत्तसहीय ॥१५॥
__ गाथा १५ मीना छूटा शब्दना अर्थ. हिम-हिमवंतगिरि अने. इगसही-एकसठ. सिहरिसु-शिखरी पर्वतने विषे. गिरीसु-पर्वतने विषे. इक्कारस-अगीयार. कूडाणं-कुट इय-ए रीते.
एगत्ते-एकठा करीए.
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सव्वधणं-सर्व संख्याए सत्तसही-सडसठ सयचउरो-चारसें.
य-वळी. विस्तारार्थः-(हिम सिहरिसु के०) हिम वलि. खरिणोः, एटले हिमवंत गिरि तथा शिखरी पर्वतने विषे प्रत्येके (श्कारस के०) एकादश, एटले अगीयार अगीयार कूट , (श्य के०) इति, एटले या रीते (इगसहीगिरीसु के० ) एक षष्टि गिरिषु, एटले एकसठ पर्वतने विषे जे (कूमाणं के०) कूटानां, एटले कूट , तेने ( एगत्ते के०) एकत्वे, एटले एकठा करीए, तो ( सवधणं के ) सर्वधनं, एटले सर्व संख्याए (सयच उरो के०) शतचत्वारि एटले चारसें (य के०) चं एटले अने (सत्तसही य के०) सप्तषष्टिः, एटले समसठ कूट थाय ॥ १५ ॥ ते आवी रीतेः
चनसत्तअनवगे,--गारसकूमेदि गुणद जदसंखं ॥सोलसदुदुगुणयालं, ज्वे य सगसहि सयचनरो ॥१६॥ गाथा १६ मोना छुटा शब्दना अर्थ.
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चउ-चार.
सोलस-सोल सत्त-सात
दु-बे अठ्ठ-आठ नवगे-नव.
गुणयाल-ओगणचालीश. एगारस-अगीयार
दुवे-बे पर्वतने. कुडेहि-कुटे
य-अने. गुणह-गुणाकार करो सगसहि-सडसठ. जहसंख-यथासंख्याए. | सयचो -चारसें.
विस्तारार्थः-(सोलस उगणयालं वे य के० ) षोमशद्वियेकोन . चत्वारिंशत् छौ च, एटले सोळ, बे, बे, उंगणचालीश अने बे, ए पांच . पर्वतोनी संख्याना अंकोने ( चनसत्त अहनवगे कारस कुडेहिं के०) चतुः सप्ताष्टनवके कादशकुटैः, एटले चार, सात, आठ, नव अने अगीयार, ए पांच कुटना अंको साथे ( जहसंखं के०) यथासंख्यं, एटले अनुक्रमे (गुणह के०) गुणयत, एटले हे गणितने जाणनारा पंमितो! तमें गुणाकार करो. तो सर्व मळी (सगसहि य सय चउरो के०) सप्तषष्टिः शत चत्वारि, एटले ४६७ कुट थाय, अर्थात सोल पर्वतने चार कुटे गुणतां चोसठ थाय.
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श्
तथा बे पर्वतने सात कूटे गुणतां चौद याय, तथा बे
पर्वत व कूटे गुणतां सोल थाय, तथा उंगणचा - लीश पर्वतने नव कूटे गुणतां ३५१ याय, तथा वे पर्वतने गयार कूटे गुणतां बावीश थाय. ए रीते जे जे पर्वतोनी उपर पूर्वे कूटनी संख्या कही बे, ते ते पर्वतोने तेटला कूटे गुणतां यथासंख्याए समसठ सहित चार सें थाय. ए पर्वतो उपर कूट बे, ते कह्यां ॥ १६ ॥ हवे साठ भूमिकुट छे, ते कहे छे.
चतीसं विजएसु, नसदकुमा ठमेरुजंबूमि ॥ य देवकुरा (इं) ए, दरिकुहरिरसदे सही ॥ १७ ॥
गाथा १७ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
चडतीस - चोत्रीश विजसु - विजयने विषे
उसह कुडा - रुषभकुट
अट्ठ-आठ.
मेरु- मेरु पर्वत तथा जंबुमि - जंबुवृक्षनां
अठ्ठय-आठ
देवकुराए - देवकुरुमां
हरिकुड - हरिकुट
हरिस्सहे - हरिसहकुट
(सठ्ठी - साठ
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ए विस्तारार्थः-(विजयेसु विजएषु, एटले के०) चक्रवर्तीनां चोत्रीश विजयने विषे प्रत्येके एकेक झपनकूट करतां (चनतीसं के० ) चतुरस्त्रिंशत्, एटले चोत्रीश (उसहकूमा के० ) ऋषजकूटानि, एटले रुषजकूट ले. तथा (मेरु जंबुमि के0) मेरु जबोः, एटले मेरु पर्वतमां अने जंबूवृदमा (अह के०) अष्ट, एटले आठ आठ कूट , तथा (देवकुराए के0 ) देवकुरौ, एटले देवकुरु मध्ये (अध्य के०) अष्टकं एटले आठ कूट , तथा शालिवृक्ष मध्येना (हरिकूम हरिस्तहे के०.) हरिकूट हरिसहे, एटले हरिकूट अने हरिसहकूट ए बे स. हित (सही के ) षष्टिः, एटले साठ नूमिकूट ले. ए पांचमुं कूटनी संख्यानुं द्वार का ॥१७॥
हवे छठु मागधादि तीर्थोनी संख्या- द्वार कहे छे. मागहवरदामपन्ना,-सतिब विजएसु एरवयनरदे॥चनतीसा तिहिं गुणिया, दुरुत्तरसयं तु तिवाणं ॥१७॥ गाथा १८ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
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मागह - मागध. -
वरदाम - वरदाम
पभास-प्रभास तिच्छ-तिर्थ. विजसु - विजयने एरवय - ऐरवत क्षेत्र अने
विषे
भर - भरत क्षेत्रने विषे
३०
चडतीसा-चोत्रीश. तिहिंत्रणे
गुणिया-गुणीए
| दुरुत्तरसयं - वे अधिक एकसो एटले एकसो वे.
तु-वली | तिच्छाणं-तीर्थ.
(वस्तारा : - ( विजसु के० ) विजयेषु, एटले aata (वजयने विषे तथा ( एरवय जरहे के० ) ऐ. बत्रीश रवत जरते, एटले ऐरवत क्षेत्र ने जरत क्षेत्र मली चोत्रीश स्थानकने विषे प्रत्येके एक ( मागद वरदाम पनासतित्थं के० ) मागध वरदाम प्रजास तीर्थ, एटले मागध, बीजु वरदाम ने त्रीजु प्रजास, ए त्रण तीर्थ बे, माटे ए ( चढतीसा के० ) चतुस्त्रिंशत, एटले चोत्रीशस्थानक बे. ते ( तिहिं के० ) त्रिमिः, एटले त्रणे ( गुणिया के० ) गुणी, त्यारे ( तु के० ) वली ( पुरुत्तरसयं तिठाणं के० ) इयुत्तरशतं तीर्थानां, एटले, बेधिक एकसो तीर्थ थाय ॥ १८ ॥
हवे सात मुं श्रेणिओनी संख्यानुं द्वार कहे छे.
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विद्याहरअनिगिये, सढी मुन्नि मुन्निवेयने ॥श्य चनगुण चऊतीसा, बतीससयं तु सेढीणं ॥१॥
गाथा १९ मीना छुटा शब्दना अर्थ. विद्याहर-विद्याधर. |चउगुण-चार गुणा करतां. अभिओगिय-आभियोगिक, चउतीशा-चोत्रीश. सेढीओ-श्रेणिओ.
छत्तीससयं-एकसो ने छत्रीश. डुनि डुनि-बे वे.
तु-वली. वेयडे-वैताढ्यने विषे. सेहीण-श्रेणिओ. इय- ए रीते.
विस्तारार्थः-( वेयले के०) वैताढये, एटले वै. ताढयने विषे एक ( विधाहर अनियोगियसेढीओ के ) विद्याधरानियौगिक श्रेण्यौ, एटले विद्याधर अने बीजा अनियोगिक देवोनी श्रेणि (मुन्नी मुन्नी के०)
हे, एटले बे बे . एटले एकेका वैताढयनी उपर बे श्रेणि विद्याधरोनी अने बे श्रेणि आजियोगिक देवोनी मलीने चार चार श्रेणि बे, त्यारे (श्य के) इति, एटले था प्रमाणे (चतीसा के०) चतुस्त्रिंशत् ,
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३२
एटले बोत्री दीर्घ वैताढ्य ते ( चनुगुण के० ) चतुगुणा, एटले चार गुणा करतां (तु के० ) वली (बत्तीससयं सेढी के० ) पत्रिंशत्रुतं श्रेणीनां, एटले एकसो नेत्री श्रेणि जंबूद्वीपमां थाय ॥ १९ ॥ हवे आठ बिजयनी संख्यानुं द्वार अने नवसुं मोटा द्रहनी संख्यानुं द्वार एक गाथाए करी कहे छे
चक्कीजेवाई, विजयाई इच हुंति चतीसा ॥ मदद्दद ब पडमाई, कुरुसु दसगं ति सोलसंग ॥ २० ॥
गाथा २० मीना छुटा शब्दना अर्थ.
चकीजेअव्वाई - चक्रवर्तीने
जीतवा योग्य.
छ- छ.
पउमाइ - पद्मादिक.
कुरु-कुरुने विषे.
दसगं - दश.
ति - एम. सोळसगं - सोल.
विजयाई - विजय.
इच्छ-इहां.
हुंति-छे, चउतीशा - चोत्रीश.
महद्दह = मोटा द्रह.
विस्तारार्थ : - ( चक्की जेवाई के० ) चक्रिजेतव्याः एटले चक्रवर्त्ती जीतीने जे क्षेत्रने विषे राज करे एवा
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चक्रवर्तीने जीतवा योग्य ( विजया के०) विजयाः, एटले विजय ते (श्व के० ) अत्र, एटले था जंबूढीपने विषे बत्रीश तो महाविदेहना अने एक ऐरवत तथा एक जरत मली (चनतीसा के० ) चतुस्त्रिंशत् , एटले चोत्रीश (हुंति के० ) जवंति, एटले .
हवे (पउमाश् महदह के०) पद्मादिका महा. द्रहाः, एटले बीजा द्रहोनी अपेक्षाए मोटा द्रढो, ते एक पद्म, बीजो महापद्म, त्रीजो तिगिति, चोथो केसरी, पांचमो घुमरिक अने बहो महापुमरिक, ए (के०) षट्, एटले बजे, तथा (कुरुसु के०) कुर्वोः, एटले दे. वकुरु अने उत्तरकुरुने विषे (दसमंति के०) दशकं इति, एटले दश अह ले. ए रीते सर्व मली (सोलसंगं के ) षोमशकं, एटो सोल मोटा पह जंबूछीपमा जाणवा ॥२०॥
हवे दशसु नदीओनो संख्या- द्वार कहे छे. गंगा सिंधू रत्ता, रत्तवई चन नई पत्तेयं॥ चनदसहिं सहस्सेहि, सम वंच्चति
जलदिम्मि ॥२१॥
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गंगा-गंगा. सिंधू- सिंधु
३४
गाथा - २१ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
रत्ता-रक्ता रत्तवइ - रक्तवती
चउ-चार
नइओ - नदीओ
| पत्तेयं - प्रत्येके चउदसहिं सहस्सेहिं-चौद
हजार नदीओना परिवारे
समगं-साथे वचंति-मले छे, जाय
जलहिम्मि- समुद्रमां
छे
विस्तारार्थ :- जंबूद्वीपमादे दक्षिण दिशावर्त्ती जरत नामे विजयमां एक (गंगा के०) गंगा, एटले गंगा अने बीजी (सिंधू के० ) सिंधुः, एटले सिंधु ए बे नदी बे, तथा जंबूद्वीपमांहे उत्तर दिशाए ऐरवत नामे विजयमां एक (रता के० ) रक्ता, अने बीजी ( रत्तवई ho ) रक्तवती, र बे नदी बे. एम (चन के० ) चत सुः, एटले चार ( न के० ) नद्यः, एटले नदीजं ते ( पत्तेयं के० ) प्रत्येकं, एटले प्रत्येके एकेकी नदी (च उदसहिं सहस्सेहिं के० ) चतुर्दशभिः सहस्रैः, एटले चौद हजार नदीना परिवारे छे, तेनीं (समगं के० ) समकं, एटले साथे अर्थात बप्पन हजार नदी उनी साथे ( जल हिम्मि के० ) जलधौ, एटले समुद्रमादे
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३५ वच्चति के० ) व्रजंति, एटले जाय बे ॥ २१ ॥
एवं प्रति (रिया) रगा चत्तरो पुण अठवीससदस्सेदिं ॥ पुरवि बप्पन्नहिं, सदस्सेदिं जंति च सलिला ॥२२॥
गाथा २२ मीना छुटा शब्दना अर्थ.
एवं-- एम अद्भितरगा - अभ्यंतर क्षेत्रनी
चउरो-चार पुण वली
अठवः ससहस्सेहि--अठ्यावीश हजारना परिवार सहित
•
पुणरत्र वली पण छप्पन्नेहिं सहस्सेहि-- छप्पन्न ह जारना परिवार सहित जंति - जाय छे
चउ - चार
सलिला - नदीओ
विस्तारार्थ : - ( एवं के० ) एवं, एटले ए प्रमाणे हिमवंत ने हिरण्यवंत ए बे युगलियानां ( निंत रंगा के० ) अज्यंतरगाः, एटले अभ्यंतर क्षेत्रनी नदीउ एक रोहिता, बीजी रोहितांशा, त्रीजी रूपकूला अने बोथी सुवर्णकूला, ए ( चउरो के० ) चतस्रः, एटले चार नदी ते (पुण के० ) पुनः, एटले वली एकेकी नदी ( वीससहस्सेदिं के० ) अष्टाविंशतिसहस्रैः,
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एटले अव्यावीश हजार नदोउना परिवार सहित समुद्र मध्ये जले बे. ( पुणरवि के०) पुनरपि, एटले वन) पण एक हरिवर्ष अने बीजु रम्यक ए बे अत्यंतर युगलियानां देवनी एक हरिकांता, बीजी हरिसलिला, त्रीजी नरकांता अने चोथी नारीकांता, ए (चन सलिला के ) चतस्रः सलिलाः, एटले चार नदो ते प्रत्येके एकेकी नदी (उप्पन्नहिं सहस्सेहिं के०) षट्पंचाशता सहस्त्रैः, एटले उप्पन हजार नदीना परिवार सहित समुऽ मध्ये (जंति के०) यांति, एटले जाय ।।
___ हवे महाविदेहनी नदीओ कहे छे:कुरुमद्ये चनरासि, सहस्साई तह य विजयसोलससु ॥ बत्तीसाण नईणं, चनदस
सहस्साई पत्तेयं ॥२३॥
गाथा २३ मीना छुटा शब्दना अर्थ. कुरुमद्ये-उत्तरकुरु देवकुरु मांहेली. विजयसोलससु-सोल विजयम. चउरासि-चोराशी.
बत्तीसाण नईणं-वत्रीश नदीओ. सहस्साइं-हजार.
चउदससहस्साई-चौद हजार. तह य-तेमज.
पत्तेयं-प्रत्येक.
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विस्तारार्थः-(कुरुमध्ये के० ) कुरुमध्ये, एटले उत्तरकुरु, देवकुरु नामे युगलियानां देत्रमाहेली सीता अने सीतोदा नदीमा प्रत्येके उ उ अंतर नदी जले बे. ते उ नदीनो परिवार ( चउरासि सहस्साई के०) चतुरशीतिः सहस्राणि, एटले चोराशी हजार नदडे ( तह य के० ) तथा च, एटले तेमज पश्चिम महाविदेहना (विजयसोलससु के०) विजयषोमशषु सोल विजयमा प्रत्येक रक्ता अने रक्तवती एवी बे नदी गणतां (बत्तीसाण नईणं के०) द्वात्रिंशतो नदीनां, एटले बत्रीश नदी थाय. ते (पत्तयं के० ) प्रत्येकं, एटले एकेकी नदीनो (चनदस सहस्साईके ) चतुर्दश सही स्राणि, एटले चौद हजार नदी समुपमा जाय ॥२३॥ आगळ कही गया, ए रीते व्याखान करतां विजयने छेदनारी
ग्राहवती विगेरे छ नदीओनी प्ररूपणा उपेक्षित थाय छे. माटे ते नदीओk वर्णन अन्य आचार्योना मते बीजी रीते कहे छ । चउदससहस्सगुणिया, अमतीस नइ विजयमधिल्ला ॥ सीउयाए निवमंति, तद य सीयाई
एमेव ॥२४॥
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गाथा २४ मीना छटा शब्दना अर्थ.
चउदससहस्स– चौद हजार. गुणिया-गुणतां अडतीस - आडत्रीश.
नइओ - नदीओ.
विजयमघिल्ला - ( सोल ) विजय मांहेली.
| सीओयाए - सीतोदा नदीमां. निवडंति-भले छे.
तह य - तेमज .
सोयाई - सोता नदीमां. एमेव - एमज.
विस्तारार्थ :- ए रीते ( विजयमघिल्ला के० ) त्रिजयमध्यवर्तिन्यः, एटले सोन विजयमांदेली ( श्रमतीस न के० ) अष्टात्रिंशन्नयः, एटले श्रमतीश नदी बे, तेने ( . च दस सदस्सगुणिया के० ) चतुर्दशसहस्रगुणिताः, एटले चौद हजारे गुणतां (५३२००० ) नदी थाय, ते ( सी याए के० ) सीतोदायां, एटले सीतोदा नदीमां ( निवडंति के० ) निषतंति, एटले जळे बे, (तह य के० ) तथा च, एटले तेमज (सीयाई के० ) सीतायां, एटले सीता नदीमां पण ( एमेव के० ) एवमेव, एटले एमज पूर्व महाविदेदनां सोल विजयनी ( ५३२००० ) नदी मले वे ॥ २४ ॥
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३ए
सूत्रकार एज अर्थने स्पष्ट करतां जंबूद्वीपनी सर्व नदीनो संख्या कहे छे.
सीयासीउयावि य, बत्तीससहस्स पचलखेटिं॥सवे चनदस लका, उप्पन्न सदस्स मेलविया ॥३॥
गाथा २५ मीना छुटा शब्दना अर्थ. सीया-सीता नदो. सम्वे-सर्वे. सीओयावि-सीतोदानदी पण. | चउदस लक्खा-चौद लाख. य-अने.
छप्पन्न सहस्स-छप्पन्न हजार. बत्तीससहस्स-बत्रीश हजार. | मेलविया-मेलवता. पंचलक्खेहि-पांच लाख. विस्तारार्थः- तथा ( सीया सीउयावि य के ) सीता अने सीतोदा ए बे नदी पण प्रत्येके ( बत्तीससंस्ह पंचलकेहिं के० ) द्वात्रिंशत्सहस्रपंचलः, एटले पांच लाख ने बत्रीश हजार नदी सहित समुअमां जाय बे. एम ( सवे के ) सर्वाः, एटले सर्वे मली जंबूछीप मध्ये ( चनदश लरका के ) चतुर्दश लक्षाणि, एटले चौदलाख अने ( बप्पन्न सहस्स के० ) षट्पंचाशत्सह
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४० साणि, एटले बप्पन हजार नदी ( मेलविया के०) मेलिताः, एटले मेलवी थकी थाय ॥ २५ ॥ हवे ए नदीओना प्रवाह अने मुखनुं पहोलपणुं कहे छे. बोयणे सकोसे, गंगासिंधूण विबरो मूले ॥दसगुणि पजंते, श्य दुदु
गुणणेण सेसाणं ॥२६॥ ___ गाथा २६ मोना छुटा शब्दना अर्थ. छञ्जोयणे-छ योजन. . दसगुणिओ दश गुणो. सकोसे-एक कोस सहित... पन्जते--पर्यंत, छेडे. गंगासिंधण--गंगा अने सिंधु ए इय--एम.
बे नदीऔना. दुदुगुणणेण--बमणो बमणो गुणतां. विच्छरो--विस्तार.
सेसाणं-शेष, बाकी रहेली. मूले--मूलमां. विस्तारार्थः-(गंगासिंधूण के०) गंगासिध्वोः, एटले गंगा अने सिंधु एबे नदीउना (मूले के० ) मूलमां (विबरो, के०)विस्तरः, एटले विस्तार बोयणे षम योजनानि एटले उ योजन ( सकोसे के०) सक्रोशानि, एटले एक कोश सहित एटले सवा योजननो मूलमां
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४१ ज्यां पद्मप्रहथकी नीकली, त्यां एटलो विस्तार डे. पड़ी तेथकी वधतो वधतो ( दसगुणिले के० ) दशगुणितः, एटले दश गुणा करतां सामी बासठ योजननो विस्तार समुद्रमा मली, त्यां (पजते के० ) प. यंते, एटले बेडे विस्तार . ( श्य के ) शति, एटले ए रीते ( मुगुणणेण के० ) विहिगुणनेन, एटले बमणो बमणो गुणतां ( सेसाणं के० ) शेषाणां, एटले शेष नदीना जेवा क्रमे पूर्वे कह्यु बे, ते प्रमाणे निर्गमन अने प्रवेश अनुक्रमे एक बीजाथकी बमणा बभणा जाणवा ॥२७॥ हवे सूत्रकार मुग्ध जनोने बोध थवा माटे वर्षधर पर्वतोनो उचाइ तथा वर्ण कहे छेजायणसयमु (चिहा) विशा, कणयमया सिहरिचुल्लदिमवंता ॥ रुप्पिमहाहिमवंता, दुसच्चा रुप्पकणयमया ॥ २ ॥
गाथा २७ मीना छुटा शब्दना भर्थ. जोयण-योजन.
कणयमया-कनकमय, सोनाजेवा. सयं-एकसो.
उचिट्ठा-उंचा.
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४२ सिहरि-शिखरी.
दुसउच्च.-बसो योजन उंचा. चुल्लहिमवंता-लघुहिमवंत. रुप्प-रूपानो. रुप्पि-रूपी.
कणयमया-सोनानो. महाहिमवंता-महाहिमवंत.
विस्तारार्थः-(सिह रिचुहिमवंता के० ) शिख. रितुल्ल हिमवंती, एटले एक शिखररी अने बीजो हुल एटले लघुहिमवंत ए बे पर्वत, ते (जोयण सयं के ) योजनशतं, एटले एकसो योजन (उचिहा के०) नहिती, एटले उंचा बे, अने ए बे पर्वत (कणयमया के० ) कनकमयौ, एटले सुवर्णमय वर्णवाला . तथा (रुप्पि महाहिमवंता के० ) रुकिन महाहिमवंतौ, एटले एक रूक्मी अने बीजो महाहिमवंत, ए बे प. र्वत (सच्चा के ) द्विशतोच्ची, एटले बन्ने अनु. क्रमे बसें योजन ऊंचा बे. ते ( रुप्पकणयमया के० ) सप्पकनकमयौ, एटले रुकमी पर्वत रूपानो बे, अने महाहिमवंत पर्वत कनकमय एटले सुवर्णनो डे ॥२७॥ चत्तारि जोयणसए, चिठो निसढ नीलवंता य
॥ निसढो तवणिजम वेरुलिउँ नील
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य-अने.
वं ( तगिरि ) तो य ॥॥
गाथा २८ मीना छुटा शब्दना अर्थ. चत्तारिजोयणसए-चारसे योजन. तवणिज्जमओ-सपावेला सुवर्णउचिटो-उंचपणे. । मय, राता सोनानो. निसढ-निषध.
वेरुलिओ-वैडुर्य. नीलवंतो-नीलवंत. नीलवंतो-नीलवंतगिरि.
य-अने. निसढो-निषध पर्वत.
विस्तारार्यः-(निसढ के०) निषध एटले एक निषध पर्वत, अने (य के०) च, एटले वली बीजो (नीलवंतो के०) नीलवान्, एटले नीलवंत पर्वत, ए बे पर्वत ते (चत्तारि जोयणसए के) चत्वारि योजन शतानि एटले चारसे योजन (उच्चहो के०) उच्छितः, एटले उंचा . तेमां (निसढो के०) निषधः, एटले निषध पर्वत ते (तवणिजम के ) तपनीयमयः, ए. टले तपावेला सुवर्णमय एटले राता सोनानो . (य के०) च, एटले वली बीजो (नीलवंतो के) नीलवान्, एटले नीलवंत पर्वत जे , ते (वेरुलिन के) वैमुर्यः, एटले नीला रत्नमय डे ॥७॥
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सवेवि पञ्चयरा, समयखित्तम्मि मंदरविहूणा॥ धरणितले मु(ज)वगाढा, उस्सहच
उन्नायम्मि ॥२॥ ___ गाथा २९ मीना छूटा शब्दना अर्थ. सव्वेवि-सर्वे पण.
उवगाढा-अवगाह्या छे. पव्वयरा--पर्वत
उस्सेह-उंचपणाथी समयखित्तम्मि--काल अने क्षेत्रमा चउच्छभायम्मि-चोथा भाग मंदरविहुणा-(पांच) मेरु विना
जेटला. धरणितले-पृथ्वीतलमां
विस्तारर्थः-था (समय खित्तम्मि के० ) समयदेत्रे, एटले समय एटले काल अने क्षेत्र ते बढीछीप के जेमां मनुष्यनी वस्ती , तेमा मात्र ( मंदिर विहुणा के०) मंदिर विहीनाः, एटले पाच मेरु पर्वत विना बाकी जेटला शाश्वता (पवयरा के०) पर्वताः, एटेले पर्वत बे, तेटला (सक्वेवि के०) सर्वेऽपि, एटले सर्वे पण पोताना (उस्सेद चउबनायम्मि के०) उन्सेध चतुर्थ लागे, एटले उंचाश्ना चोथा जाग जेटला (धरणितले के०) धरणीतले एटले जूमिमांहे ( उव
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गाढा के० ) अवगाढाः, एटले अवगाह्या बे, एटले जे पर्वत चारसे योजननो उँचो कह्यो बे, ते चारसे योजननो चोथो लाग एकसो योजन थाय, तेटलो पृथिवीतलमा उमो अवगाही रह्यो बे, अने पांच मेरु पर्वत जे , तेमा जे जंबूछीपनो मध्य मेरु बे, ते नवाएं हजार योजन ऊंचो , अने एक हजार योजन धरतीमा बे, सर्व मली लाख योजन ऊंचो . तथा बीजा चार मेरु जे बे, ते प्रत्येके एक हजार योजन नूमिमां बे, अने व्याशी हजार योजन ऊंचा ने ॥॥ खंगाईगादाए, दसहिं दारेहिं जंबुद्दीवस्स ॥
संघयणी समत्ता, रश्शा
हरिनदसूरी दि॥३०॥
गाथा ३० मीना छुटा शब्दना अर्थ. खडाईगाहाए-खांडुआदिकनी संघयणी-संग्रहिणी
गाथाए. समत्ता-समाप्त थइ दसहि-दश.
रइआ-रचना करी दारेहि-द्वारे करीने हरिभद्दमुरीहि-श्री हरिभद्र :: जंबुद्दीवस्स-जंबूद्वीपनी
सरिए.
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४६ विस्तारार्थः-ए रीते (खमाईगाहाए के०) खमादिगाथायां, एटले "खमा जोयणवासा " ए खांसु आदिकनी बीजी गाथाए (दसहिं दारेहिं के०) दशमिर्धारः, एटले दश छारे करीने (जंबुद्दीवस्स के० ) जंबछीपस्य, एटले जंबूछीपनी ( संघयणी संमत्ता के०) संग्रहणी समाप्ता, एटले संग्रहिणी समाप्ता थर, ते (हरिजद्दसूरिहिं के०) हरिजद्रसूरिभिः, एटले श्रीहरिजप्रसूरिए (रश्या के०) रचिता, एटले रची वे ॥ ३० ॥
GADGOOOOOGGIGGeoGODDOOD
॥ इति लघुसंग्रहिणी समाप्ता ॥
4WI
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