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सप्तम परिच्छेद अग्निकुण्डा उसकी स्त्री ( थी ) ॥६॥ सूर्योदय जो बड़ा भाई होता है, वह इन दोनों का मनोज्ञ पुत्र हुआ । वह मूर्व श्रुति नाम से पुकारा गया। राजा चित्त से विरक्त होकर ऋषि हो गया ।।७-८।। कुलंकर उस मूर्ख श्रुति के साथ संयुक्त रूप से राज्य करता है ।।९।। एक दिन पीछे द्रोहिणी श्रीदामा ( रानी ) व्यभिचारियों में आसक्त देखी गयी ॥१०॥ जब तक दोनों को बैठाकर ( श्रीदामा ) उपशान्त करती है उसी समय वह व्यभिचारी को वहाँ से निकाल देती है ॥११।। वे दोनों-कुलंकर और श्रुति बहुत पर्यायों में भ्रमण करके तिर्यंचगति के दण्ड-स्वरूप निश्चित दुःखों को पाने के पश्चात् उसको परीक्षा के लिए राजगृही नगरी के एक ब्राह्मण के ( पुत्र ) हुए ।।१२-१३।। बड़े (भाई) का नाम विनोद और छोटे (भाई) का नाम ( माता-पिता ने ) आशीर्वाद देते हुए रमन कहा ।।१४।।
घत्ता-छोटा भाई रमन विदेश गया । बहत कष्ट से पढ़कर आया। वह नगर के बाहर मठ में रुक गया। रात्रि में बड़े भाई विनोद की पत्नी वहाँ आयी ।।७-३।।
[७-४] [त्रिलोकमण्डन हाथी और भरत के भवान्तरों में विनोद और रमन
___ तथा धनदत्त और भूषण पर्यायों का वर्णन ] पर-पुरुषों से रमण करने वह लम्पटी, दुष्टा, अनिष्ट व्यभिचारियों में आसक्त वहाँ आई ।।१।। उसका स्वामी/पति भी क्रोध में तलवार निकाल करके उसके पीछे लगकर वहाँ आया ॥२॥ उस व्यभिचारिणी ने पास में स्थित मुनि के पास यार को भेजकर कोई सोच विचार नहीं किया, उस पापिनी, स्वेच्छाचारिणी के द्वारा मन्दिर में फेक कर मारी गई अपनी तलवार से वह विनोद मारा गया ॥३-४।। इसके पश्चात् उसी विधि से उस दुष्टा ने रमन को भी मार डाला। संक्लेपित परिणामों से मरकर (विनोद और रमन ) तिर्यंचति में परिभ्रमण करने के पश्चात् वन में ( रमन ) हरिण और ( विनोद ) हरिणी हुए। इनमें हरिणी को क्षण भर में भील ने मार डाला ॥५-६।। वह हरिण उस भील के द्वारा बाँध करके घर ले जाया गया और उसका लालन-पालन किया गया ॥७॥ एक दिन संभूति राजा ने भील से इसे खूटी सहित लेकर और देवपूजा भवन के पास बांधकर उस रमण को प्रकाश / बोध युक्त किया ।।८-९।। जिनेन्द्रपूजा की रुचि तथा भाव-पूर्वक मरकर वह स्वर्ग-भवन को प्राप्त/उत्पन्न
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