Book Title: Amarsenchariu
Author(s): Manikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 270
________________ सप्तम परिच्छेद २५७ [७-७] [ भरत-दीक्षा एवं सिद्ध पद-प्राप्ति तथा त्रिलोकमण्डन का अणुव्रत धारण ] मृदुमति ( मुनि ) स्वर्ग से चयकर सफेद शरीरवाला जगत्-भूषण/ त्रिलोकमण्डन श्रेष्ठ हाथी के रूप में उत्पन्न हुआ ॥१॥ भरत के दर्शन से हुए जातिस्मरण-लाभ से उसके द्वारा आहार-जल छोड़ा गया है ॥२।। उन देशभषण मुनि से ऐसा सुनकर भरत के द्वारा मुनि को नमस्कार किया गया और निःशल्य होकर निरावाध दीक्षित हुआ ॥३।। इसके पश्चात् अनेक राजाओं के द्वारा मोह-ममता ( राजमोह ) त्यागी गयी। अधम केकयी ने तप किया ॥४॥ सम्पूर्ण अणुव्रत राम के द्वारा लिए गये और हाथी को भी दिये गये तथा उसके द्वारा ग्रहण किये जाने पर उसके माथे पर तिलक लगाकर छोड़ दिया गया। वह कषाय-रहित होकर नगर में घूमता है ।।५-६।। जहाँ-जहाँ जाता है वहाँ-वहाँ लोग उसे लड्डू , पुआ का भोग (भोजन ) देते हैं ॥७॥ प्रसिद्ध कुसुमांजलि व्रत को ज्ञात करके उसका पालन करनेवालों में जो प्रसिद्ध हुए उनमें ( यह ) प्रसिद्ध हुआ ॥८॥ भरत भी तपश्चरण से केवलज्ञान प्राप्त करके अचल-स्थान ( मोक्ष ) में निरंजन-सिद्ध हुआ ॥९॥ घत्ता-वह भूषण इस कुसुमांजलि-पूजा से जब ऐसा सम्पदावान् हुआ, तब जो दूसरा कोई भी स्थिर मन से ( यह पूजा करेगा) फिर उसके निश्चय क्या नहीं होता है ॥७-७॥ यह सुनकर मगध-नरेश (श्रेणिक ) को याद आया कि गोपाल (ग्वाला-अहीर ) एकाग्र और स्थिर मन से जिनेन्द्र की इसी पूजा के करने से करकंडु नाम से उत्पन्न हुआ और संसार में विख्यात हुआ ॥छ।। [ ७-८] [जिनेन्द्र-पूजा के फलस्वरूप ग्वाल धनदत्त का करकंडु नृप होने का वृत्त-वर्णन ] इस जम्बूद्वीप के आर्यखण्ड में कुण्डल देश के पुरिमताल नामक नगर में राजनीतिज्ञ राजा नील के राज्य में वणिकपति वसुमित्र के द्वारा नाश को प्राप्त हुआ ॥१-२॥ उस वसुमित्र का ग्वाल धनदत्त नित्य वन में भ्रमण करके पृथिवी पर बैठ जाता है ।।३।। एक दिन उसके द्वारा जलाशय में खिला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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