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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ-10
रुध् आदि सातवाँ गण 1. कर्तरि प्रयोग में शित् प्रत्यय लगते समय सातवें गण के धातुओं को स्वर के बाद
न (श्न) प्रत्यय लगता है और विकरण प्रत्यय लगने पर धातु में रहे न् का अथवा न् के स्थान पर हुए अनुस्वार या अनुनासिक व्यंजन का लोप होता है । उदा. रुध् + मि
रूनध् + मि = रुणध्मि
हिस् + ति = हिनस् + ति = हिनस्ति । 2. धा सिवाय के धातु के चौथे अक्षर के बाद प्रत्यय के त् तथा थ् का ध् होता है।
रुनध् + ति = रुनध् + धि रुनद् + धि = रुणद्धि
लभ् + त, लभ् + ध = लब्धः । लब्धवान् । 3. विकरण प्रत्यय न (श्न) के अ का अवित् शित् प्रत्यय पर लोप होता है।
रुनध् + तस् = रून्धः, रुन्धन्ति
रुनध् + थस् = रुन्द्धः । 4. व्यंजनांत धातु से हि प्रत्यय का धि होता है । इस गण में सभी धातु धुट् व्यंजनांत होने से सभी धातुओं में हि का धि होगा ।
रुनध् + धि = रुन्द्धि 5. व्यंजन के बाद में रहे धुट् व्यंजन का स्व धुट् व्यंजन पर विकल्प से लोप होता है।
उदा. रुन्धि, रुन्द्धि । रुन्धः, रुन्द्धः । 6. व्यंजनांत धातु के बाद द् (तृतीय पुरुष एकवचन-ह्यस्तनी) का लोप होता है
और धातु के अंत में स् व्यंजन का द् होता है । रुध् + द् अरुनध् + द् = अरुण अरुणाद्, अरुणात्
हिंस् का अहिनद्, अहिनत् 7. व्यंजनांत धातु के बाद स् (ह्यस्तनी दूसरा पुरुष एक वचन) का लोप होता है - और धातु के अंत में स्, र् या ध् व्यंजन हो तो उसका विकल्प से र् होता है।